_*ज़बान की हिफाज़त*_
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_*हज़रत माज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ऐ माज़ क्या तुझे सारे उमूर की असल ना बताऊं फिर आपने अपनी ज़बान को पकड़कर फ़रमाया कि इसकी हिफाज़त कर लोगों को जहन्नम में उनकी ज़बान की ग़ुफ्तुग़ू ही तो पहुंचाएगी*_
_*📕 मिश्क़ात, सफह 14*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन उस शख्स का अंजाम सबसे बुरा होगा जिसको लोग उसकी बद कलामी की वजह से छोड़ देंगे*_
_*📕 अलइतहाफ, जिल्द 6, सफह 88*_
_*आक़ाए करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो दिन को रोज़ा रखे और रात भर नमाज़ पढ़े मगर उसकी ज़बान से लोग परेशान होते हों तो उसमें कोई भलाई नहीं बल्कि ये उसे जहन्नम में ले जायेगी*_
_*📕 अलमुस्तदरक, जिल्द 4, सफह 166*_
_*चुगलखोर का ठिकाना जहन्नम है*_
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 70*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने एक क़ौम को देखा कि वो अपने नाखूनों से अपने चेहरे और सीनों को छील रहे थे ये वो लोग थे जो अपने भाई का गोश्त खाते हैं यानि ग़ीबत करते हैं*_
_*📕 अलइतहाफ, जिल्द 7, सफह 533*_
_*बेशक यही ज़बान है जिससे हम झूठ बोलते हैं, चुग़ली करते हैं, ग़ीबत करते हैं, गालियां बकते हैं, वादा करके तोड़ते हैं, बिला वजह कसमें खाते फिरते हैं, झूठी गवाही देते हैं, बोहतान तराशी करते हैं, एहसान करके जताते हैं,औलाद अपने मां-बाप की और औरतें अपने शौहरों की नाफ़रमानियां करती हैं गर्ज़ कि नाजायज़ों हराम व कुफ्रो शिर्क तक इसी ज़बान से बका जाता है, मुसलमानों के दिल को मुनव्वर करने का ये उसूल हमेशा याद रखें*_
_*! कम खाना*_
_*! कम सोना*_
_*! कम बोलना*_
_*! झूट से बिलकुल परहेज़ करना*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चुप रहा उसने निजात पाई*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो चीज़ इंसान को जन्नत से ज़्यादा क़रीब करने वाली है वो तक़वा और अच्छा इख़लाक़ है*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो ज़बान और शर्मगाह की हिफाज़त का ज़ामिन हो जाए मैं उसके लिए जन्नत का ज़ामिन हूं.!*_
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 16, सफह 138*_
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