Sunday, August 26, 2018



        _*इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*_
                           _*हिस्सा- 1*_
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_*वैसे तो मैं इल्मे ग़ैबे मुस्तफा ﷺ पर सिर्फ कुरान की आयतों से पोस्ट बनाकर सेंड कर चुका हूं पर फिर भी कुछ सवाल मेरे पास आये जो हदीसो के ताल्लुक से था जिन्हें वहाबिया अक्सर सुन्नियो को दिखा दिखाकर कहते नज़र आते हैं कि अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो इन हदीसों का क्या मतलब है,पहले वो सवाल मुलाहज़ा फरमा लें*_

_*01). वहाबी कहता है कि बैरे मऊना के मुनाफिकों के कहने पर हुज़ूर ﷺ ने उनके साथ 70 सहाबा को क्यों भेजा जिन्हें उन लोगों ने शहीद कर दिया, अगर आपको ग़ैब होता तो आप ऐसा ना करते और अगर ऐसा है तो फिर उनको शहीद करने का इलज़ाम भी आपके सर पर है*_

_*02). वहाबी कहता है कि खैबर के रोज़ आपको ज़हर वाला गोश्त दिया गया जिसे आपने खा लिया अगर आपको ग़ैब होता तो आप ना खाते*_

_*03). वहाबी कहता है कि अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो आपको अपने मोज़े के अंदर का सांप होना मालूम होता*_

_*04.) वहाबी कहता है कि जब उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा पर तोहमत लगायी गयी तो हुज़ूर ﷺ 1 महीने तक खामोश क्यों रहे और परेशानी में मुब्तेला क्यों हुए अगर उन्हें ग़ैब होता तो उनकी बरा'अत ज़ाहिर फरमाते*_

_*05). वहाबी कहता है कि हुज़ूर ﷺ एक निकाह में तशरीफ ले गए वहां कुछ बच्चियां ये शेअर पढ़ रही थीं कि ये वो नबी हैं जो कल की बात जानते हैं तो आपने उन्हें मना फरमा दिया कि ऐसा ना कहो, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें मना न फरमाते*_

_*06) वहाबी कहता है कि खुद सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमाती हैं कि जो ये कहे कि हुज़ूर ﷺ ग़ैब जानते हैं वो झूठा है*_

_*07). वहाबी कहता है कि हौज़े कौसर पर कुछ लोग आयेंगे जिन्हें हुज़ूर ﷺ बुलायेंगे तो फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि या रसूल अल्लाह ﷺ ये मुनाफ़िक़ है तो हुज़ूर ﷺ उन्हें दुत्कार देंगे, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें पहले ही खबर हो जाती*_

_*08). वहाबी कहता है कि बुखारी शरीफ की रिवायत है हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि मैं खुद नहीं जानता कि मेरे साथ क्या किया जायेगा, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो हरगिज़ ऐसा ना कहते*_

_*09). वहाबी कहता है कि अज़्वाजे मुतहहरात के कहने पर आपने शहद को मगाफीर समझकर अपने ऊपर हराम कर लिया, अगर आप ग़ैब जानते तो हरगिज़ ऐसा ना करते*_

_*10). वहाबी कहता है कि हुज़ूर ﷺ ने किसी सहाबी को फलों की काश्त करने को कहा मगर उस साल फल पिछले साल से भी कम आये, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब था तो ऐसा क्यों फरमाया*_

_*वग़ैरह वग़ैरह, और भी बहुत कुछ कहते हैं मगर मेरे ख्याल से अगर इनका जवाब दे दिया जाए तो बाकी सवाल का जवाब भी अपने आप ही अदा हो जायेगा, अब इन सबका जवाब भी पढ़ लीजिये*_

_*1). बेशक हुज़ूर ﷺ को बैरे मऊना वालों की मुनाफिक़त का इल्म था और ये भी खबर थी कि वो 70 सहाबा इकराम शहीद कर दिए जायेंगे मगर उनकी क़ज़ा टल नहीं सकती थी और यही मरज़िये इलाही थी और हुज़ूर ﷺ अपने खुदा की रज़ा पर राज़ी थे, और अगर थोड़ी देर के लिए वहाबियों की जिहालत भरी दलील मान भी ली जाए कि हुज़ूर ﷺ को ग़ैब नहीं था तो क्या माज़ अल्लाह खुदा को भी ग़ैब नहीं था, अरे जो खुदा बात बात में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुज़ूर ﷺ की बारगाह में भेज दिया करता था यहां तक की रिवायतों में आता है कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम 24000 मर्तबा मेरे आक़ा ﷺ की बारगाह में हाज़िर हुए हैं तो एक बार और भेज देता, हुज़ूर ﷺ नहीं जान रहे थे तो रब तो जान रहा था कि बैरे मऊना वाले मुनाफ़िक़ हैं और ये मुनाफ़िक़ 70 सहाबा को ले जाकर क़त्ल कर देंगे तो क्यों नहीं वही के ज़रिये अपने महबूब ﷺ को खबर दी, या माज़ अल्लाह वहाबियों का खुदा के बारे में भी यही अक़ीदा है कि वो भी ग़ैब नहीं जानता, क्योंकि उनकी इस दलील से तो यही ज़ाहिर हो रहा है कि माज़ अल्लाह खुदा को भी इल्म नहीं था और अगर मान लिया जाए कि खुदा को इल्म था जैसा कि हुज़ूर ﷺ को भी था, तो भी खुदा ने हुज़ूर ﷺ को सहाबा इकराम को उनके साथ जाने से क्यों नहीं रोका तो माज़ अल्लाह जो इलज़ाम नबी ﷺ पर लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर 70 सहाबा को क़त्ल करवा दिया अब वही इलज़ाम खुदा पर भी आयद हो जाता है कि उसने भी जानते हुए कि ये सहाबा शहीद हो जायेंगे फिर भी अपने महबूब ﷺ को खबर ना दी और उन्हें जाने से ना रोक, अब इसका जो जवाब वहाबी देगा वही जवाब हमारी तरफ से समझ ले*_

_*और राज़ी बरज़ाये इलाही वहाबियों की समझ में नहीं आता है तो अंधों को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अपने मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के गले पर छुरी चलाना याद कर लेते, क्या वहाबी का ये कहना है बाप ने बेटे पर ज़ुल्म किया अगर माज़ अल्लाह ज़ुल्म कहता है जब तो काफिर हुआ कि खुदा को ज़ालिम कहता है कि ये हुक्म खुदा का था और अगर इसको ज़ुल्म नहीं बल्कि मरज़िये इलाही कहता है तो यही मरज़िये इलाही उन 70 सहाबा की शहादत पर हुज़ूर ﷺ की भी थी*_

_*📕 जा'अल हक़,हिस्सा 1,सफह 124*_

_*2). और खैबर में उस गोश्त में ज़हर का भी आपको इल्म था मगर वही रज़ाये इलाही मक़सूद था,आपको ये भी इल्म था कि इसका असर अभी नहीं होगा बल्कि बवक़्ते वफात इसका असर लौटेगा और इसी ज़हर से मेरा विसाल होगा कि शहादत का मनसब भी आपकी ज़ात में जुड़ जाये*_

_*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 2,सफह 242*_

_*अलहासिल किसी बात को ज़ाहिर ना करना ये नहीं माना जाता कि उसको उस बात का इल्म भी नहीं है,ये वहाबियों की कमज़र्फी है कि वो हुज़ूर ﷺ के सुकूत को उनके इल्म की नफी करार देते हैं*_

_*जारी रहेगा.....*_
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