Sunday, August 26, 2018



        _*इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*_
                           _*हिस्सा- 2*_
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_*03). वहाबी कहता है कि अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो आपको अपने मोज़े के अंदर का सांप होना मालूम होता*_

_*03). वाक़िया ये है कि एक मर्तबा ﷺ हुज़ूर वुज़ु फरमा कर उठे और अपना मोज़ा पहनना चाहा, इत्तेफाक से उस मोज़े में एक सांप छिपकर बैठा था आपने ख्याल नहीं किया और उसे पहनना ही चाहा कि अचानक एक चील उड़ती हुी आयी और आपके हाथों से वो मोज़ा लेकर उड़ गयी, अब वहाबी को तो बस मौक़ा चाहिए कि कैसे हुज़ूर ﷺ के ग़ैब का इनकार करे सो इसको भी दलील के तौर पर पेश कर देता है कि देखो अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो वो मोज़ा क्यों पहनते और आधी अधूरी हदीस सुनाकर मुसलमानो को बहकाता फिरता है,अब आगे का भी किस्सा भी सुन लीजिए जिसे हज़रते अल्लामा जलालउद्दीन रूम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी किताब मसनवी शरीफ जिल्द सोम में फरमाते हैं कि उसके बाद हुज़ूर ﷺ ने उस चील को बुलाया और पूछा कि क्या तुझे ग़ैब का इल्म है तो वो फरमाती है कि नहीं हुज़ूर मुझे हरगिज़ ग़ैब का इल्म नहीं मगर बात ऐसी है कि जब मैं उड़ते हुए आपके ऊपर से गुजरी तो आपके सर से लेकर आसमान तक एक नूर की लहर दौड़ रही थी जब मैं उसमे से गुज़री तो मुझे आपके मोज़े के अंदर का सांप नज़र आ गया, तो हुज़ूर फरमाते हैं कि बेशक तूने सच कहा मैं इस वक़्त खुदा की याद में महव था जिसकी वजह से मेरा ख्याल इस तरफ नहीं गया*_

_*📙 बुज़ुर्गो के अक़ीदे, सफह 287*_

_*वहाबी ने ये तो पढ़ लिया कि हुज़ूर ﷺ ने मोज़े के अंदर का सांप नहीं देखा मगर ये पढने से अंधा हो गया कि हुज़ूर ﷺ के सर पर से एक परिंदा भी अगर गुज़र जाए तो वो भी ग़ैबदां हो जाता है तो फिर हुज़ूर ﷺ के इल्म का क्या कहना*_

_*खैर ये जान लीजिये कि इंसान की तीन हालतें होती हैं जहल, निसयान और ज़हूल*_

_*जहल 👉🏻 यानि किसी बात का इल्म न होना इससे अम्बिया इकराम पाक हैं*_

_*निसयान 👉🏻 यानि किसी बात का इल्म तो है मगर भूल गया अहकामे इलाही में अम्बिया से ये भी मुहाल है*_

_*ज़हूल 👉🏻 यानि किसी बात का इल्म तो है मगर उस वक़्त उसकी तरफ तवज्जोह नहीं, इसको युं समझिए कि क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि कहीं बाहर जाने की जल्दी में कुछ ढूंढ रहे हैं और मिल नहीं रहा  है और आपने घर में क़यामत मचा रखी है मगर कोई आकर आपके सामने से ही वो चीज़ आपको उठाकर देता है और आपसे कहता है कि "सामने रखी है देख नहीं सकते" मेरे ख्याल से ये ऐसी चीज़ है जो अक्सर बेशतर इंसान के साथ होती रहती है तो क्या इससे ये साबित होता है कि इंसान उस वक़्त अंधा हो गया था जो सामने रखी चीज़ भी नहीं दिख रही थी, नहीं बल्कि इसका मतलब ये है कि हमारा सारा ध्यान जल्दी बाहर निकलने के ऊपर था इसी वजह से उसकी तरफ ख्याल नहीं गया, बस उसी तरह हुज़ूर ﷺ अपने खुदा के जलवे में उस वक़्त इस क़दर डूबे हुए थे कि आपको ख्याल ही नहीं गया कि मोज़े के अंदर सांप भी मौजूद है वरना मुहाल है कि हुज़ूर ﷺ को क़यामत की छोटी बड़ी सारी निशानियां तो मालूम हो मगर अपने मोज़े के अंदर सांप का होना मालूम ना हो*_

_*📕 जाअल हक़, सफह 122*_

_*जारी रहेगा.....*_
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