Sunday, August 26, 2018



    _*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 1*_
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_*आपका नाम इब्राहीम और लक़ब अबुज़्ज़ैफ यानि बहुत बड़े मेहमान नवाज़ और अबुल अम्बिया यानि नबियों के बाप है क्योंकि 8 अम्बिया इकराम यानि हज़रत आदम हज़रत शीश हज़रत इदरीस हज़रत नूह हज़रत हूद हज़रत सालेह हज़रत लूत और हज़रत यूनुस अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के अलावा बाकी सारे नबी आप ही की नस्ल से हुए, आपके 2 साहबज़ादे नबी हुए हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं और दूसरे हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं*_

_*📕 नुज़हतुल कारी,जिल्द 6, सफह 501*_
_*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1, सफह 373*_

_*आपका नस्ब नामा ये है इब्राहीम बिन तारख बिन नाखूर बिन सारू बिन रऊ बिन तातेय बिन आमिर बिन सालेह बिन रफह बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, और आज़र आपका चचा जो कि काफिर था कुछ लोग उसे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का बाप कहते हैं ये बे अस्ल है, क्योंकि किसी भी अम्बिया अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के आबा व अजदाद में कोई भी काफिर ना हुआ सब मोहिद मोमिन थे, चुंकि अरब क़ौम में चचा को भी बाप ही कहते हैं इसी लिए क़ुरान ने आज़र को आपका बाप यानि अबियह कहा जैसा कि खुद हदीसे पाक में है कि एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने युं फरमाया कि "मेरे बाप अब्बास को मुझ पर पेश करो" हालांकि वो आपके बाप नहीं बल्कि चचा हैं, आप तूफाने नूह के 1709 साल बाद और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 2300 साल पहले अमवाज़ के इलाक़े मक़ामे सोस में पैदा हुए*_

_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1, सफह 810*_

_*आपकी वालिदा के नाम मे इख्तिलाफ है सानी या नूफा या लेवसा या अमीलिया या बूना बिन्त करबन मज़कूर है*_

_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2, सफह 186*_
_*📕 अलबिदाया,जिल्द 1, सफह 140*_

_*नमरूद बिन कुंआन जाबिर बादशाह था जो कि लोगों से अपनी परशतिश करवाता, उसके दरबार के नुजूमियों ने उसे बताया कि एक बच्चा पैदा होने वाला है जो कि तेरी हलाक़त का बाइस होगा, उसने ये सुनकर फौरन ही जो बच्चे पैदा हुए थे सबको मरवा दिया और जो हमल में थे सबका हमल गिरवा दिया और मियां बीवी को मिलने पर भी पाबंदी लगवा दी, मगर तक़दीरे इलाही को कौन टाल सकता है आपकी वालिदा मोहतरमा हामिला हो गईं मगर उम्र कम थी सो हमल पहचान में ना आता था जब आपकी विलादत का वक़्त करीब आया तो आपके वालिद उन्हें शहर से दूर एक तहखाने में ले गए जो उन्होंने पहले ही खोद रखा था, वहीं आपकी विलादत हुई आपकी वालिदा आपको रोज़ाना उसी तहखाने में दूध पिला आती और आते हुये गार के मुंह को पत्थरों से ढ़क दिया करती, आप एक महीने में इतना बढते थे जितना एक आम बच्चा साल भर में बढ़ता था, आप तहखाने में कितनी मुद्दत रहे इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 7 बरस बाज़ ने 13 और बाज़ ने 17 भी लिखा है*_

_*📕 खज़ाएनुल इर्फान, पारा 7, रुकू 15*_

_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ 3 झूठ की निस्बत की जाती है पहली बात आपका ये कहना कि मैं बीमार हूं हालांकि आप बीमार नहीं थे, दूसरा बुतों को तोड़कर इनकार करना, तीसरा अपनी बीवी को बहन कहना, मगर एक नबी हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकता आईये उसकी पूरी तफसील देखते हैं*_

_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने चचा से कहा कि क्यों इन बुतों की पूजा करते हो जो ना सुन सकते हैं और ना बोल सकते हैं पर वो नहीं माने उधर क़ौम का एक सालाना मेला लगता था जिसे वो ईद कहते थे उन्होंने जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से उस मेले में चलने को कहा तो आपने आसमान की तरफ देखा और फरमाया कि "मैं बीमार होने वाला हूं" इस पर वो समझें कि ये बीमार हैं और आपको छोड़कर मेले में चले गए इधर आपको हालात मुनासिब नज़र आये और आपने उन सब बुतों को तोड़ डाला और वो हथौड़ा एक बड़े बुत के कांधे पर रख दिया और उसे नहीं तोड़ा,उधर क़ौम को जब ये पता चला तो भागती हुई आई और कहा कि किसने हमारे खुदाओं का ये हाल किया इसपर आपका नाम आया कि आप ही उनकी मुखालिफत करते हैं और आज गांव में सिर्फ आप ही मौजूद थे, आपको बुलाकर जब पूछा गया कि इन बुतों को किसने तोडा तो आपने फरमाया "उनके इस बड़े ने किया होगा"*_

_*पहला क़ौल ये कि मैं बीमार होने वाला हूँ - आपके कहने का ये मतलब हरगिज़ नहीं था कि मैं कल ही बीमार होने वाला हूं,आखिर ज़िन्दगी में आदमी कभी तो बीमार होगा ही इस कलाम को "तौरियह" कहते हैं यानि कहने वाला अपनी बात की मुराद दूर की ले अगर चे सुनने वाला क़रीब समझे और अगर इसको युं भी कहें कि मैं बीमार ही हूं तब आपके कहने का मतलब ये था कि तुमने एक अल्लाह को छोड़कर ना जाने कितने बातिल माबूद बना रखे हैं इसी वजह से मैं ज़हनी परेशानी में मुब्तेला हूं और मेरा क़ल्ब बीमार है अगर चे लोग इसका माने कुछ भी समझें*_

_*दूसरा क़ौल ये कि इस बड़े ने किया है इसकी 7 शरहें हैं 👇🏻*_

_*1). पहला ये कि आपने ये नहीं फरमाया कि ये काम इस बुत ने ही किया है बल्कि इससे आपने अपनी ज़ात ही मुराद ली इसको युं समझिये जैसे मेरा ये मश्ग आप पढ़ें और फिर मुझसे पूछें कि क्या इसे आपने लिखा है तो मैं कहुं कि नहीं तुमने लिखा है तो यहां ऐतराज़न कहा कि अरे भाई तुमने तो लिखा नहीं तो ज़रूर मैंने ही लिखा होगा इस कलाम को "तारीज़" कहते हैं,मतलब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से क़ौम ने पूछा कि क्या ये सब तुमने किया है तो आपका ये फरमान कि नहीं इस बड़े ने किया है दर असल उनको यही बताना था कि जब ये बोल नहीं सकता सुन नहीं सकता जवाब नहीं दे सकता तो बुतों को क्या खाक तोडेगा ज़ाहिर सी बात है मैंने ही किया है, मगर इस कलाम को वो नहीं समझें*_

_*2). दूसरा ये कि कभी कभी काम करने की निस्बत भी करवाने वाले की तरफ की जाती है मसलन आप क़ुरान पढ़ रहे है अचानक आपका बेटा कमरे में दाखिल हुआ और आकर टी.वी चालू करके बैठ गया आप उठे और दो थप्पड़ रसीद कर दिए जब घर वालो ने पूछा तो आपने टी.वी को ही ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सब इसी ने किया है बस उसी तरह क़ौम के लोग उन बुतों को माबूद समझते और उन्हें खूब सजाते और उस बड़े बुत को कुछ ज़्यादा ही तवज्जोह देते जिसकी वजह से आपको गुस्सा आया और सारे बुतों को तोड़कर उसी की तरफ निस्बत कर दी क्योंकि गुस्सा उसी की वजह से आया था*_

_*3). तीसरा ये कि जब क़ौम बुतों को माबूद मानती है तो फिर उसको क़ुदरत भी होनी चाहिए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का उसकी तरफ निस्बत करना कि इसने ये किया है फिर क़ौम का ये कहना कि ये तो कुछ हरकत नहीं कर सकता दर असल उनको समझाना मुराद था कि जब तुम खुद जानते हो कि वो ऐसा नहीं कर सकता तो क्यों उसको माबूद समझकर पूजा करते हो*_

_*4). चौथा ये कि आपका कलाम ये था कि जिसको करना था वो कर चुका अब अगर इसके अंदर बोलने की सलाहियत है तो इसी से पूछ लो कि किसने किया है*_

_*5). पांचवा ये कि "कबीरहुम" पर वक़्फ है और फिर कलाम की शुरुआत "हाज़ा" से है मतलब आपका ये कहना कि इनके बड़े ने किया है मतलब आपने बड़े से अपनी ही ज़ात मुराद ली कि मैं ही वो बड़ा हूं क्योंकि बुत कितना भी बड़ा हो पर इंसान से बड़ा नहीं हो सकता*_

_*6). फेअल की इज़ाफत बड़े बुत की तरफ मशरूत के तौर पर है मतलब ये कि अगर ये बोलता है तो इसने किया है और नहीं बोलता तो ज़ाहिर है कि नहीं बोलता तो इसने नहीं बल्कि मैंने किया है क्योंकि कलाम में तक़दीम व ताख़ीर है*_

_*7). एक क़िरात "फअलहु कबीरहुम" भी आई है मतलब ये कि शायद इनके बड़े ने किया हो*_

_*तीसरा क़ौल आपका अपनी बीवी को बहन कहना - जब क़ौम आपकी बात नहीं मानी तो नमरूद के हुक्म से आपको आग में डाला गया आग आप पर गुलज़ार हो गयी, जब आप बाहर आये तो आप क़ौम से बहुत ना उम्मीद हो गए और सब कुछ छोड़कर आप अपने चचा हारान के पास चले गए, आपकी सदाक़त को देखकर आपके चचा ने अपनी बेटी हज़रते सारा का निकाह आपसे करा दिया मगर आपने वहां भी हक़ की सदा बुलंद करनी शुरू करदी जिस पर आपके चचा ने आपको वहां से चले जाने को कहा आप जब शहर फलस्तीन से गुज़रे तो वहां का बादशाह जो कि बहुत ज़ालिम था और हर आदमी की बीवी को अपने कब्ज़े में ले लेता था, जब उसको आपकी और हज़रत सारा के आने की खबर हुई तो दोनों को दरबार में बुलवाया और आपसे पूछा कि ये औरत कौन है चुंकि वो आपके चचा की बेटी थीं सो आपकी बहन भी थीं इसी निस्बत से आपने कहा कि ये मेरी बहन है, मगर उस बादशाह ने फिर भी उनको ना छोड़ा और बुरी नियत से उनकी तरफ बढ़ा तो अल्लाह ने उस पर अज़ाब मुसल्लत कर दिया वो गिड़गिड़ाने लगा और आपसे माफी चाही तो आपने उसे माफ कर दिया तब उस बादशाह ने एक कनीज़ यानि हज़रते हाजरा को दोनों को दिया और रुखसत किया*_

_*अलहासिल कलाम आपका तीनो सच्चा था मगर लोगों ने उसके माने अपनी अक़्ल के हिसाब से तय किये और उसे झूठ समझा*_

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 82--85*_

_*आपने 4 निकाह किये हज़रते सारा व हज़रते हाजरा इन दोनों के विसाल के बाद कन्तूरा बिन्त यक़तन और उनके इन्तेक़ाल के बाद हिजून बिन्त ज़हीर से, जिस तरह मर्दो में सबसे ज़्यादा हसीन हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम हुए हैं उसी तरह औरतों में सबसे ज़्यादा खूबसूरत हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा हुईं हैं बल्कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का हुस्न भी आपकी दादी हज़रते सारा का ही सदक़ा था*_

_*📕 अलकामिल फित्तारीख, जिल्द 1, सफह 50*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 99*_

_*आपने जिन बुतों को तोड़ा उनकी तादाद 72 थी*_

_*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1, सफह 76*_

_*जिस वक़्त आपको आग में डाला गया उस वक़्त आपकी उम्र 16 साल थी और आग में आप 7 दिन रहे*_

_*📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 163*_

_*जारी रहेगा.....*_
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