Sunday, August 26, 2018



                _*मुज्जद्दिद की अहमियत*_
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_*🔘मुज्जद्दिद का माय्ने - तज्दीद करने वाला होता यानि की इस्लाम में जो एह्काम मिट रहे होते है और सुन्नतो को ख़त्म किया जा रहा होता है उस वक़्त ये शख्स मबऊस किया जाता है अल्लाह की जानिब से जो , ज़माने में फैली बिद्दतो को खत्म कर देता है और सुन्नत को फिर से कौम में रायेज कर देता है ।*_

_*ये दींन में नई पैदा बिद्दतो को मिटा देता है । सुन्नतो को बहाल कर देता है ।*_
_*मुजद्दिद कहलाता हैं !*_

_*मुजद्दिद होने के लिए जो चीज़ सबसे ज्यादा अहम होती है वो है इल्म और मुहब्बते रसूल क्योंकि जिसपर नबी की इनायत ना हो वो इल्म की गहराई को पहुँच नहीं पाता इस्लिये इल्म का वुसुल और इनायते रसूल् बहोत ज़रुरी ही !*_

_*1). उल्मा में कई दर्जे (Categry) होती है जैसे -*_

_*आलिम*_
_*फाज़िल*_
_*मुफ्ती*_
_*मुझ्तहिद फि मसाएल*_
_*मुझ्तहिद फि मज़हब*_
_*और भी बहोत से दर्जे उल्मा में होते है ।*_

_*2). इसी तरह वलियो में भी कई दर्जे (Categry) होते है जैसे👇🏻*_

_*गौस*_
_*कुतुब*_
_*अब्दाल*_
_*नज्बा*_
_*अव्तात*_
_*अब्किया*_
_*सुल्हा*_
_*सुफीया !*_

_*🔸उल्मा और औलिया में एक दर्जा आता है (मुजद्दिद) का और ये दर्जा बहोत ही बुलन्द ओ बाला है -उस वक़्त रुहे ज़मीन के (सबसे बड़ा वली) और (सबसे बड़ा आलिम) जो होता है वो मुज्जद्दिद होता है !*_

_*मुजद्दिद् अपने वक़्त का सबसे बड़ा आलिम और सबसे बड़ा वली होता है !*_

_*🔹इमाम "मुजद्दिद अल्फे-सानि शेख अहमद सर-हिंदी रहमतुल्लाह ताला अलैह "अपनी किताब*_
_*📕 मक़्तुबाते-रब्बानी*_
_*में लिखते हैं कि मुजद्दिद एक ऐसा मकाम है कि उस ज़माने का गौस भी उस मुजद्दिद के मातेहत (Under) होता है !*_

_*🔸यानी के जब की आलिम किसी मसले को सम्झ्ने से कासिर (Confuse) हो जाते है । तो उस वक़्त वो उस मुजद्दिद की तरफ रुजु करते है ।*_

_*🔹इसी तरह जब कोई वली किसी सुलुक के मसले को समझ नहीं पाता और सुलुक् की मंज़िल को पाने के लिए उस मुजद्दिद की तरफ रह्नुमाई के लिए जाता है ।*_

_*👉🏻जैसा कि मुजद्दिद का एक काम सुन्नत को हया करना यानि की ज़िंदा करना होता है तो अब हम पहले सुन्नत पर बात करेंगे ।*_

_*📚 हदीस-ए-पाक हुज़ूर صلى الله عليه وسلم*

_*🌹हज़रत सय्यद्ना इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_
_*हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद -फरमाया*_

_*"मन तम्स्सुक़ा बे सुन्नती-इन्दा फसादी उम्मती''*_
_*📝तर्जमा- जब मेरी उम्मत में फित्ने फ़ैल जाए और हर तरफ फसाद हो तो उस फसाद के ज़माने में जो शख्स मेरी किसी मुर्दा सुन्नत को जिन्दा करेगा उस शख्स को अल्लाह तआला 100 शहीदों के बराबर सवाब अता फ़रमायेगा !*_

_*इमाम बेहकी- रदियल्लाहोअन्हु ने इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 KITAAB-UZ-ZUHAD, Jild 2, Page 118, Hadees No: 207*_

_*‍ह़ज़रत इमाम अबू नोऐम रहीम-उल्लाह ने इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 HIDAYATUL-AULIYA, Jild 2, Page 200*_

_*इमाम देअल्मी रहीम-उल्लाह इस हदीस को अपनी किताब में लिखा..!👇🏻*_

_*📕 MASNADUL-FIRDOUS, Jild 4, Page 198*_

_*💡यही हदीस और भी किताबो में आयी है !*_

_*📕 IBNE-MAJAH, Jild 3, Page 360*_
_*📕 SHAHRUSODOOR, Page No 31*_

_*उल्मा के कौल-* *मुहद्देसीन फर्माते है कि इस हदीस् के मुताबिक जो शख्स नबी صلى الله عليه وسلم की किसी सुन्नत को ज़िंदा करता है  और फिर उस सुन्नत को उम्मत में रायेज करता है वो मुजद्दिद होता है !*_

_*जितना सवाब उस सुन्नत को ज़िंदा करने पर मिलता है फिर जितने लोग उस सुन्नत को फॉलो करते उन लोगों को तो 100 शहीदो का सवाब तो मिलता है साथ साथ उतना ही सवाब उस सुन्नत को फालो करवाने की वजह से उस मुज्जदिद को भी मिलता है !*_

_*शहीद को कितना सवाब मिलता है ?*_

_*हुज़ूर صلى الله عليه وسلم इर्शाद फरमाते हैं कि 1 शहीद का सवाब अल्लाह पाक इतना देता है कि उस शख्स के 'गुनाहे कबीरा' और 'गुनाहे सगीरा' सब को माफ फरमा देता है और उसे बगैर हिसाब - किताब के जन्नत अता फरमाता है !*_
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