_*हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम हिस्सा - 3*_
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_*ⓩ एक तर्जुमा ये किया गया जिसमे हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को ज़ालिम कहा गया मआज़ अल्लाह याद रखें कि महबूब और मुहिब यानि रब और उसके महबूब बन्दे आपस में जो बात करे और जैसी बात करें किसी को कोई हक़ नहीं पहुंचता कि वो उस बात को दलील बनाये मसलन आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_
_*हज़रते हारून अलैहिस्सलाम नबी हैं और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बड़े भाई मगर जलाले मूसा की ताब में वो भी आ गये कि जब आप तूर से वापस आये और अपनी क़ौम को बुतपरस्ती करते देखा तो अपना होश खो बैठे और जलाल में उनकी दाढ़ी पकड़कर खींचने लगे जबकि नबी की ताज़ीम फर्ज़ है खैर चलिये छोड़िये वो तो उनके भाई ही थे शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सुना कि कोई शख्स तेज़ आवाज़ में रब से बातें कर रहा है तो आपने जिब्रील अलैहिस्सलाम से फरमाया कि ये कौन है जो रब पर तेज़ी करता है तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ये मूसा अलैहिस्सलाम हैं मौला जानता है कि उनके मिज़ाज में तेज़ी है चलिये इसे भी जाने दीजिये वो जो उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपने रब से फरमाती हैं कि ये सब तेरे ही फितने हैं यहां क्या कहियेगा, जो अलफाज़ ये नुफूसे क़ुदसिया जलाल में कह गये अगर दूसरा कहे तो गर्दन मारी जाये मगर अन्धो ने तो शाने अब्दियत ही देखी शाने महबूबियत देखने से तो उनकी आंखें फूट गई*_
_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 3, सफह 6*_
_*और साहिबे बहारे शरीयत फरमाते हैं कि "अम्बिया-ए किराम से जो लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये तिलावते क़ुर्आन और रिवायते हदीस के कहीं और करना हराम और सख्त हराम है दूसरों को उन पर लब कुशाई करने की क्या मजाल, मौला उनका मालिक है जिस तरह चाहे ताबीर करे और वो मौला के प्यारे बन्दे हैं अपने आपको जिस तरह चाहें उसके सामने तवाज़े करें तो जो उसको सनद बनायेगा वो मरदूदे बारगाह होगा, फिर जिसको लग़्ज़िश समझा जाता है उसमे भी हज़ार हिकमतें छिपी होती हैं एक लग्ज़िशें आदम को ही देखिये अगर वो ना होती जन्नत से ना उतरते दुनिया आबाद ना होती किताबें ना उतरती रसूल ना आते जिहाद ना होते गर्ज़ कि लाखों करोड़ो नेकियों के दरवाज़े हमेशा के लिए बन्द ही रहते इसिलिये फुक़्हा फरमाते हैं कि अम्बिया की लग्ज़िशें सिद्दीक़ीन की नेकियों से भी अफज़ल है*_
_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 23*_
_*ⓩ फिर दूसरी जगह तर्जुमा करने वालो ने लिखा कि वो भाग गये माज़ अल्लाह, ये भी एक नबी की शान के लायक़ नहीं कि वो अपनी उम्मत को छोड़कर भाग जायें जबकि मेरे आलाहज़रत ने लिखा कि "बेशक युनुस पैगम्बरों से हैं जबकि वो भरी कश्ती की तरफ निकल गया" यानि हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने अपने इज्तिहाद से फैसला किया कि अब तो अज़ाब आ ही गया है अब यहां रूककर क्या फायदा और यही सोचकर आपने बस्ती छोड़ दी और ये ख्याल किया कि मौला मुझसे उनके तअल्लुक़ से बाज़ पुर्स ना करेगा हालांकि उनको अज़ाब आने तक ठहरना चाहिये था क्योंकि मौला ने उनको लाखों से ज़्यादा आदमी की तरफ नबी बनाकर भेजा था, फिर किसी ने तर्जुमा किया गया कि उन पर ये अज़ाब आया कि मछली ने उन्हें निगल लिया जबकि आलाहज़रत फरमाते हैं कि "और हमने उसे लाख आदमियों बल्कि ज़्यादा की तरफ भेजा तो वो ईमान ले आये और हमने उन्हें एक वक़्त तक बरतने दिया" यानि ये अज़ाब नहीं था बल्कि एक यार का यार को इताब था और इताब सज़ा को नहीं कहते बल्कि हिस्से को कहते हैं और ये रब के मुताबिक इसलिये था कि ऐ मेरे प्यारे हमने आपको लाखों का नबी बनाया और आप हमारा अज़ाब आने तक ना रुके और युंही चल दिये हो सकता था कि वो ईमान ले आते और जैसा कि हुआ भी*_
_*कंज़ुल ईमान - फिर उसे मछली ने निगल लिया और वो अपने आपको मलामत करता था, तो अगर वो तस्बीह करने वाला ना होता, ज़रूर उसके पेट में रहता जिस दिन तक लोग उठाये जायेंगे*_
_*📕 पारा 23, सूरह साफ्फात, आयत 142-144*_
_*आयते करीमा - لَا إلٰہَ إلَّا أَنْتَ سُبْحَانَکَ إنِّیْ کُنْتُ مِنَ الظَّالِمِیْنَ यही वो तस्बीह थी जिसे हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने मछली के पेट में पढ़ी और मौला ने आपको हर ग़म से आज़ाद कर दिया जबकि फरमाता है कि अगर ये तस्बीह ना पढ़ते तो क़यामत तक वहीं रहते लिहाज़ा अब कोई मुसलमान कितनी भी बड़ी मुसीबत में गिरफ्तार हो या कैसी भी परेशानी हो तो सच्चे दिल से तायब होकर उसकी बारगाह में इसी आयत का कसरत से विर्द करे तो मौला तआला उसकी तमाम मुश्किलें ज़रूर ज़रूर आसान फरमा देगा, इन शा अल्लाह*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 200*_
_*जो बीमारी की हालत में 40 मर्तबा आयते करीमा पढ़े शिफा होगी पर अगर मौला ने उसे हयात ना बख्शी और मर गया तो उसे शहादत का दर्जा मिलेगा*_
_*📕 क्या आप जानते हैं, सफह 572*_
_*आपकी मज़ार मक़ामे निनेवाह में है*_
_*📕 आईनये तारीख, सफह 123*_
_*खत्म......*_
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