_*हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम हिस्सा - 2*_
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_*उधर हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम बस्ती से बाहर निकल चुके थे ये सोचकर कि अब उनकी क़ौम पर अज़ाब तो आ ही चुका है सो मेरा यहां क्या काम मगर वो सब तो माफ हो चुके थे, आप कश्ती में बैठकर सफर को निकले जब कश्ती बीच दरिया में पहुंची तो चारों तरफ से मौजों ने कश्ती को घेर लिया उस वक़्त उनके माअमूल के मुताबिक अगर कोई ग़ुलाम अपने मालिक से दूर जा रहा होता था तो ही ऐसा होता था और उससे बचने का तरीका ये था कि उसे दरिया में फेंक दिया जाए तो सब बच जाते थे, अब उस शख्स के बारे में जानने के लिए कि कौन यहां ऐसा है क़ुरआ निकाला गया और तीनों ही बार हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम आया तो आप खुद ही दरिया में कूद पड़े, मौला ने फौरन एक मछली को हुक्म दिया कि मेरे नबी को अपने पेट में जगह दे मगर ख्याल रहे कि वो तेरा लुक़्मा नहीं है इसलिए उन्हें तकलीफ ना हो चुनांचे एक मछली आपको निगल गई और आपको लिए इसी तरह इधर उधर समंदर में फिरती रही, आप मछली के पेट में 3 दिन से लेकर 40 दिन तक ठहरने के क़ौल हैं फिर वहीँ से आपने ये दुआ पढ़ी तो मौला ने आपकी दुआ सुन ली और आपको मछली के पेट से निजात मिली इस तरह कि वो आपको साहिल पर छोड़कर चली गयी वहां पर मौला ने एक कद्दू यानि लौकी का दरख्त उगाया जिसके साये में आप आराम फरमाते थे, कद्दू का पेड़ उगाने में हिकमत ये थी कि आप जब मछली के पेट से बाहर आये तो एक नव मौलूद बच्चे की तरह थे कि आपकी खाल बहुत नर्म थी जिस पर मक्खियां बैठती तो आपको परेशानी होती और आप काफी कमज़ोर भी हो चुके थे लिहाज़ा मौला ने कद्दू का पेड़ उगाया कि उस पर मक्खियां नहीं बैठती और उसके पत्ते बड़े बड़े होते हैं जो आपको ढककर रखते और एक बकरी रोज़ाना आकर आपको दूध पिला जाती थी इस तरह आप पहले जैसे सेहतमंद हो गए*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 199-201*_
_*📕 अलइतकान,जिल्द 2, सफह 178*_
_*📕 खाज़िन, जिल्द 4, सफह 258*_
_*ⓩ ये पूरा वाक़िया आपने पढ़ लिया अब कुछ वो बातें बताता हूं जिसमे लोगों ने खयानत से काम लिया, सबसे बड़ी बात तो ये कि जो आयत मैंने शुरू में पेश की उस आयत का तर्जुमा करने में बहुतों ने गलतियां की मसलन किसी ने हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का मौला के बारे में क़ौल युं लिखा कि हम उन पर काबू ना पा सकेंगे या उस पर गिरफ्त ना कर सकेंगे या हम उसे पकड़ ना सकेंगे मआज़ अल्लाह ये सारे तर्जुमे गलत और सरासर बातिल हैं, ये मुमकिन ही नहीं एक नबी खुदा के बारे में ऐसा अक़ीदा रखे कि उसका खुदा उसे पकड़ नहीं सकता जबकि एक जाहिल से जाहिल मुसलमान भी ये खूब अच्छी तरह जानता है कि उसका खुदा उसे कहीं भी गिरफ्त में ले सकता है, मगर कुछ लोगों ने तो इस आयत के तर्जुमे से खुदा को भी मआज़ अल्लाह आजिज़ क़रार दे दिया हालांकि ये खुला हुआ कुफ्र है*_
_*एक मर्तबा हज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुलाक़ात की और कहा कि कल सारी रात मैं क़ुर्आन में गर्क रहा मगर मुझे खलासी ना मिली आप बतायें क्या अल्लाह का नबी ये गुमान कर सकता है कि अल्लाह उसे पकड़ नहीं सकेगा इस पर हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये लफ्ज़ क़द्र से लिया हुआ है कुदरत से नहीं इसका मायने तंगी ना करना है क़ुदरत ना रखना नहीं जैसा कि क़ुर्आन में कई जगह आया है कि अल्लाह जिसके लिए चाहे रिज़्क़ कुशादा करता है और जिस पर चाहे तंग करता है तो यहां भी वही मायने मुराद है*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 199*_
_*ⓩ एक तर्जुमा ये किया गया जिसमे हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को ज़ालिम कहा गया मआज़ अल्लाह याद रखें कि महबूब और मुहिब यानि रब और उसके महबूब बन्दे आपस में जो बात करे और जैसी बात करें किसी को कोई हक़ नहीं पहुंचता कि वो उस बात को दलील बनाये मसलन आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_
_*जारी रहेगा......*_
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