_*शादी हिस्सा - 5*_
―――――――――――――――――――――
_*मियां बीवी के एक दूसरे पर हुक़ूक़*_
_*(बीवी के हुक़ूक़)*_
*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*
*_1. अपनी बीविओं से अच्छा बर्ताव करो_*
_*📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19*_
*_2. और औरतों का हक़ शरह के मुआफ़िक जो है उसे अदा करो_*
_*📕 पारा 2,सूरह बक़र,228*_
*_और हदीसे पाक में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*
*_3. ईमान में सबसे ज़्यादा कामिल वो है जिसके अख़लाक़ अच्छे हों और अपनी बीवी के साथ नरमी बरते_*
_*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 138*_
_*📕 मिश्क़ात,जिल्द 2,सफह 282*_
*_4. औरत टेढ़ी पसली से पैदा की गई है लिहाज़ा उसको एकदम सीधा करने की कोशिश करोगे तो तोड़ दोगे तो ऐसे ही टेढ़ी रखकर उससे फायदा उठाओ_*
_*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 779*_
*_5. औरत के ये 4 हक़ हैं जिसे शौहर को अदा करना है_*
*_! जिस हैसियत का खाना खुद खाये वैसा ही अपनी बीवी को खिलाए_*
*_! जिस हैसियत का कपड़ा खुद पहने वैसा ही उसे भी पहनाए_*
*_! रहने का मकान हस्बे हैसियत हो_*
*_! और उसकी ज़रुरत (हमबिस्तरी) पूरी करता रहे_*
_*📕 अबु दाऊद,सफह 291*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5, सफह 907*_
_*( शौहर के हुक़ूक़ )*_
*_6. मर्द अफसर यानि हाकिम हैं औरतों पर_*
_*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 34*_
*_एक शौहर का अपनी बीवी पर इतना बड़ा हक़ है कि उसको समझने के लिए ये एक ही हदीसे पाक काफी है हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*
*_7. अगर ख़ुदा के सिवा किसी को सजदा जायज़ होता तो मैं औरतों को हुक्म देता की अपने शौहरों को सजदा करें और ख़ुदा की कसम कोई औरत ख़ुदा का हक़ अदा नहीं कर सकती जब तक कि अपने शौहर का हक़ न अदा कर ले_*
*📕 इब्ने माजा,सफह 133*
*_8. जिस औरत को मौत ऐसी हालत में आये की उसका शौहर उससे राज़ी हो तो वो जन्नती है_*
_*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 138*_
*_9. कोई औरत बगैर शौहर की मर्ज़ी के हरगिज़ नफ्ल रोज़ा न रखे अगर रखेगी तो गुनाहगार होगी और हरगिज़ उसकी मर्ज़ी के बिना घर ना छोड़े वरना जब तक कि पलट कर ना आएगी इन्सो जिन्न के सिवा अल्लाह की तमाम मख़लूक़ उसपर लानत करेगी_*
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 197*_
*_10. बेहतरीन औरत वो है जो हमेशा अपने शौहर को खुश रखे और शौहर जो हुक्म दे उसे पूरा करे_*
_*📕 निसाई,जिल्द 2,सफह 60*_
*_11. औरत का अपने शौहर की नाफरमानी करना गुनाहे कबीरा है बग़ैर शौहर को राज़ी करे व बग़ैर तौबा के हरगिज़ माफ़ न होगी_*
_*📕 किताबुल कबायेर,सफह 291*_
*कहते हैं कि अक़्लमंद को इशारा ही काफी होता है इसी को सामने रखकर ये चन्द जुमले क़ुरानों हदीस से बयान कर दिए,मौला तआला से की दुआ है कि मुआशरे की इस वक़्त की सबसे बड़ी खराबी को दूर फरमा दे और जिन मियां बीवी में न इत्तेफाक़ी हो उसे इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत में बदल दे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम*
_*जारी रहेगा.....*_
*______________________________________*
No comments:
Post a Comment