Sunday, August 26, 2018



_*मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायजो हराम है.!*_
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_*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है*_

_*और छोड़ दे उनको जिन्होंने अपना दीन हंसी खेल बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने फरेब दिया*_

_*📕 पारा 7, सूरह इनआम, आयत 70*_

_*जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन्हें फरेब दिया तो आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा कि उन्होंने इस दिन के मिलने का ख्याल छोड़ा था और हमारी आयतों से इनकार करते थे*_

_*📕 पारा 8, सूरह एराफ, आयत 51*_

*_क्या आज ताज़ियादारी के नाम पर यही खेल तमाशा नहीं किया जाता, क्या ढ़ोल ताशे नहीं बजाये जाते, क्या लाठियां नहीं नचाई जाती, क्या करतब नहीं दिखाए जाते, क्या मेले ठेले झूले नहीं लगते, क्या अलम के नाम पर नाजायज़ों खुराफात नहीं होती, क्या औरतों और मर्दों का नाजायज़ मेला नहीं लगता, उसमें हराम कारियां नहीं होती क्या इन सबको तमाशा नहीं कहेंगे, और उस पर सबसे बढ़कर ये कि लकड़ियों खपच्चियों से 2 क़ब्रें बनाकर उन पर लाल-हरा कपड़ा चढ़ाकर माज़ अल्लाह एक को हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र और दूसरी को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र समझकर उन पर फूल डालना, नाड़ा बांधना, मन्नत मांगना क्या ये सब खुली हुई जिहालत नहीं है, ऐ इमाम हुसैन के नाम निहाद शैदाईयों क्या इन्ही सब खुराफात के लिए इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने करबला में भूखे प्यासे रहकर शहादत पेश फरमाई थी, क्या यही माज़ अल्लाह मसलके इमाम हुसैन था क्या उन्होंने यही कहा था कि भले ही नमाज़ें फौत हो जाएं मगर ऐ जाहिलों तुम अपने कांधों पर से मस्नूई जनाज़ा ना उतारना, तू अपने आपको इमाम हुसैन का शैदाई तो ज़रूर कहता है मगर तू अपने दावे में बिलकुल झूठा है अगर तू सच्चा होता तो वो करता जो मेरे इमाम ने फरमाया बल्कि जो करके दिखाया क्या तुझे याद नहीं कि 3 दिन के भूखे प्यासे इमाम के जिस्म पर 72 तीर और तलवार के ज़ख्म मौजूद थे मगर जब नमाज़ का वक़्त आया तो आपने अपने दुश्मनों से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त चाही और नमाज़ अदा की, ताज़िया बनाने उठाने वालों अगर तुम सच्चे शैदाईये हुसैन होते तो याद करते कि बैयत करना सिर्फ एक सुन्नत ही तो है अगर आप चाहते तो युंही यज़ीद की बैयत कर लेते बाद को तोड़ देते मगर आपने उस मक्कार झूठे फरेबी फासिको फाजिर ज़ालिम शराबी ज़ानी बदकार बदकिरदार यज़ीद की बैयत ना की और पूरा घर का घर लुटा दिया मगर दीने मुहम्मद पर आंच ना आने दी, क्या इमाम हुसैन की तरफ से भी ढ़ोल ताशे नगाड़े बजाए जाते थे क्या उनकी तरफ से भी नमाज़ों को फौत किया जाता था क्या उनकी तरफ से भी नाजायज़ों खुराफात हुआ करती थी माज़ अल्लाह, नहीं और हरगिज़ नहीं, वो सच्चे उनका दीन सच्चा तू झूठा, और अगर तू सच्चा है तो मान जा वो बात जो उन्होंने मना फरमाई और जो उनके नाना जान हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मना फरमाई, आप फरमाते हैं कि_*

_*जो मय्यत के ग़म में गाल पीटे गिरेहबान फाड़े और ज़माना जाहिलियत की सी चीखों पुकार करे वो हममे से नहीं*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 173*_

*_दूसरी जगह हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

_*उम्मे अतिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं कि हुज़ूर ने हमें मय्यत पर नोहा करने से मना किया*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 175*_

_*लोगों में 2 बातें ज़मानये जाहिलियत यानि कुफ्र के दौर की निशानियां है एक तो किसी के नस्ब पर लअन तअन करना और दूसरा मय्यत पर मातम करना*_

_*📕 मुस्लिम शरीफ, जिल्द 1, सफह 58*_

_*हुज़ूर ने नोहा करने वाले और सुनने वाले दोनों पर लानत फरमाई*_

_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 90*_

*_और ताज़ियादारी मातम करने का ही एक तरीक़ा है जिसे हिंदुस्तान में शिया फिर्क़े के एक शख्स तैमूर लंग जो कि 1336 ईसवी में पैदा हुआ और 68 साल की उम्र में यानि 1405 में मरा ने रायज की, ये हर साल अशरये मुहर्रम में ईरान जाया करता था मगर एक साल बीमारी के सबब ना जा सका तो उसके मानने वालों ने यहीं ताज़िये की शक्ल में एक शबीह बना दी जिससे ये बहुत खुश हुआ और धीरे धीरे यही मरदूद रस्म पूरे हिन्दुस्तान में फैल गयी जिससे आज शायद ही कोई गली मुहल्ला बचा हो, हालांकि मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है जिस पर आलाहज़रत के ज़माने से कई साल पहले के एक जय्यद आलिम हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

_*अशरये मुहर्रम में जो ताज़ियादारी होती है कि गुम्बद नुमा ताज़िये बनाये जाते हैं और तरह तरह की तस्वीरें बनायीं जाती है यह सब नाजायज़ है, और इसमें किसी तरह की मदद करना गुनाह है*_

_*📕 फतावा अज़ीज़िया, जिल्द 1, सफह 75*_

_*और उससे भी कई सौ साल पहले सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने अपने ज़माने में तमाम ताज़ियों मेंहदियों और झूलों को बनाने और निकालने पर सख्ती से पाबन्दी लगाई थी*_

_*📕 औरंगज़ेब आलमगीर, सफह 274*_
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