_*मसलके आला हज़रत*_
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_*🔖 कुछ गैरों ने पूंछा आलाहज़रत को इतना क्यों मानते हो -*_
_*✍🏻 तो कहा : कान खोल के सुनो*_
_*इस दुनियां में बहुत कलमगार आये,*_
_*किसी ने कलम उठाया लैला का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने कलम उठाया मजनूं का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने क़लम उठाया शीरी का ज़िक्र किया,*_
_*किसी ने क़लम उठाया फरहाद का ज़िक्र किया,*_
_*📌 लेकिन आलाहज़रत ने जब-जब क़लम उठाया किसी दुनियादार की नहीं बल्कि मदीने के ताज़दार हुज़ूर ﷺ के बारे में ज़िक्र किया..*_
_*आप देखो तो सही क्या खूब फ़रमाते हैं आलाहज़रत :*_
👇🏽
_*❤ उन्हें जाना, उन्हें माना, न रखा गैर से काम, लिल्लाह हिल हम्द मैं दुनियां से मुसलमान गया..*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी की पेशानी के बारे में लिखा :*_
_*❤ जिस के माथे शफ़ाअत का सेहरा रहा, उस ज़बीने सआदत पे लाखों सलाम.*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी के गोशे मुबारक के बारे में लिखा :*_
_*❤ दूरो नज़दीक के सुनने वाले वो कान, काने लाले करामत पे लाखों सलाम.*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का लवे मुस्तफ़ा के बारे में लिखा :*_
_*❤ पतली, पतली गुले क़ुदस की पत्तियां, उन लवों की नज़ाक़त पे लाखों सलाम.*_
_*✒ जब क़लम उठा आलाहज़रत का आमदे हुज़ूर के बारे में लिखा :*_
_*❤ जिस सुहानी घड़ी चमका तैबा का चाँद, उस दिल अफरोज साअत पे लाखों सलाम.*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का शहरे रसूल के बारे में लिखा :*_
_*❤ हरम की ज़मीं और क़दम रख के चलना, अरे सर का मौक़ा है ओ जाने बाले.*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का नबी की हयात के बारे में लिखा :*_
_*❤ तू ज़िंदा है वल्लाह, तू ज़िंदा है वल्लाह मेरे चश्मे आलम से छुप जाने बाले.*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो अताये रसूल के बारे में लिखा :*_
_*❤ मेरे करीम से गर, क़तरा किसी ने माँगा, दरिया वहा दिए हैं दुरबे बहा दिए हैं..*_
_*✒ क़लम उठा आलाहज़रत का तो शफ़ाअत ए रसूल के बारे में लिखा :*_
_*❤ सबने शफे महशर में ललकार दिया हमको, अये बेकसों के आक़ा अब तेरी दुहाई है.*_
_*✒ और जब क़लम उठा आलाहज़रत का तो गुम्बदे खज़रा के बारे में लिखा :*_
_*❤ हाजियो आओ शहंशाह का रौज़ा देखो, क़ाबा तो देख चुके, काबे का क़ाबा देखो..*_
_*👉🏽 इसलिए हम अपने इमाम की बारगाह में खिराजे अक़ीदत पेश करते हैं --*_
_*डाल दी क़ल्ब में अज़मते मुस्तफ़ा, सैय्यदी आलाहज़रत पे लाखों सलाम*_
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