*_बोल चाल में कुफ्री कलिमात का इस्तेमाल..!_*
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*_आम लोग बात चीत में कलिमाते कुफ्र बोल कर इस्लाम से खारिज हो जाते हैं और ख्वाह मख्वाह ईमान से हाथ धो बैठते हैं इसका ख्याल रखना बहुत ही ज़रूरी है कियोंकि हर गुनाह की बख्शिश है लेकिन अगर कुफ्र बक कर ईमान खो दिया तो बख्शिश व मगफिरत और जन्नत में जाने की कोई सूरत नहीं बल्किह सब दिन जहन्नम में जल्ना लाज़मी है_*
_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 16*_
*_हदीस:- हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया क़यामत की निशानियों में कि शाम को आदमी मोमिन होगा तो सुवेरे को काफिर और सुब्ह को मोमिन होगा तो शाम को काफिर_*
_*📕 मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 सफह 75*_
_*📕मिशकात शरीफ जिल्द 4 फित्नों का ब्यान*_
*_कलिमाते कुफ्र कितने हैं और किस किस बात से कुफ्र लाज़िम आता है इस्की तफसील यहां ब्यान करना दुशवार है लेकिन हम अपने अवाम भाईयों के लिये चन्द हिदायात लिख देते हैं इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा-_*
*_1, आप बा अदब हो जाईये अल्लाह तआला, उसके रसूल, फिरिशते, खानएे काबा, मसाजिद, (मस्जिद) क़ुरआन पाक, दीनीे किताबें, बुज़रूगाने दीन, वोलमा ए कराम, वालिदैन यानि मां बाप, इन सबका अदब ताज़ीम और मोहब्बत दिल में बिठा लिजीये बा अदब इन्सान का दिल एक खरे खोटे को परखने की तराज़ू हो जाता है कि ना खुद उसके मुंह से गलत बात निकल्ती है और कोई गलत बात बके तो उसको ना गवार गुज़रती है- इसी लिये कहते हैं कि अन् पढ़ बा अदब अच्छा है पढ़े लिखे बे अदब से अल्लाह तआला क़ुरआने पाक में इरशाद फरमाता है कि_*
*_कन्ज़ुल ईमान:- जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करे तो ये दिलों की परहेज़गारी है_*
_*📕पारा 17 सूरे हज्ज आयत 32*_
*_2., हंसी मज़ाक़, तफरीह व दिल लगी की आदत मत बनाईये और कभी हो तो इसमें दीनी मज़हबी बातों को मत लाईये- खुदा ए तआला उसकी ज़ात व सिफात, नबी, रसूल, मलाऐका यानि फिरिशते, जन्नत, दोज़ख, अज़ाब, सवाब, नमाज़ व रोज़ा, वगैरह अहकामे शरह का ज़िक्र हंसी तफरीह में कभी ना लाईये वरना ईमान के लिये खतरह पैदा हो सकता है_*
*_3., कुछ लोग इस क़िस्म की बातें सबको खुश करने के लिये बोल देते हैं जिनका बोलना कुफ्र है एैसी बातें करने वालों से दूर रहना ज़रूरी है मसलन, सब धरम समान हैं,, देश पहले है धरम बाद में,, हम पहले फलां मुल्क के बासी हैं और मुसलमान बाद में,, राम रहीम दोनों एक है,, वेद क़ुरआन में कोई फर्क नहीं दोनों आसमानी किताबें हैं,, मस्जिद व मन्दिर दोनों खुदा के घर हैं या दोनों जगह खुदा मिलता है,, नमाज़ पढ़ना बेकार आदमियों का काम है,, रोज़ा वह रखे जिसको खाना ना मिले,, नमाज़ पढ़ना ना पढ़ना सब बराबर है हमने बहुत पढ़ ली कुछ नहीं होता,, ये सब कलिमात खालिस कुफ्र,, गैर इस्लामी काफिरों की बोलियां हैं जिनको बोलने से आदमी काफिर, इस्लाम से खारिज हो जाता है_*
*_सियासी लोग इस क़िस्म की बातें गैर मुस्लिमों को खुश करने,उनके वोंट लेने के लिये बोलते हैं हालांकिह देखा ऐ गया है कि वह उन से खुश भी नहीं होते और अपने ही धरम वालों को उमूमन वोंट देते हैं इस तरह उन नेतावों को ना दुनिया मिलती है ना दीन, जिन गैर मुस्लिमों के वोंट आपको मिलना हैं वह अपना दीन व ईमान बचा कर भी मिल सकते हैं फिर ये कि चन्द रोज़ की दुनिया इक़तीदार वोहदों और नोटों व वोंटो की खातिर किया अपना ईमान बेचा जायेगा.?_*
*_मुसलमानों में जो नये नये फिर्क़े रायेज हुये हैं उनसे दूर रहना निहायत ज़रूरी है ये ईमान व अक़ीदे कि लिये सबसे बडा खतरह हैं मज़हबे अहले सुन्नत के बुज़ूरगों आलिमों की बातों पर क़ायम रहना ईमान व अक़ीदे की हिफाज़त के लिये निहायत लाज़िम है, और मज़हबे अहले सुन्नत की सही तरजुमानी इस दौर में मसलके आला हज़रत है कि इस पर सख्ती से क़ायम रहें,,,_*
_*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है कि हम सबको मसलके अहले सुन्नत जो इस दौर में मसलके आला हज़रत है इस पर सख्ती के साथ क़ायम रखे और हम सबका खातिमा ईमान पर अता फरमाये और या अल्लाह इस पुर फितन दौर में हमारे ईमान की हिफाज़त फर्मा,, आमीन,,*_
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