Friday, September 28, 2018



             *_मीलाद शरीफ़ और क़ुर्आन_*
―――――――――――――――――――――

*_हुज़ूर की ज़ात व औसाफ़ व उनके हाल व अक़वाल के बयान को ही मिलादे पाक कहा जाता है, हुज़ूर की विलादत की ख़ुशी मनाना ये सिर्फ इंसान का ही ख़ास्सा नहीं है बल्कि तमाम खलक़त उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत का मीलाद पढता है, यहां क़ुरान की सिर्फ चंद आयतें पेश करता हूं वरना तो पूरा क़ुरान ही मेरे आका की शान से भरा हुआ है मगर कुछ आंख के अंधे और अक़्ल से कोढ़ी लोग इसको भी शिर्क और बिदअत कहते हैं, माज़ अल्लाह, हवाला मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. वही है जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा_*

_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 33*_

*_2. बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लायें तुममे से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान_*

_*📕 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 128*_

*_पहली आयत में मौला तआला उन्हें भेजने का ज़िक्र कर रहा है और भेजा उसे जाता है जो पहले से मौजूद हो मतलब साफ़ है कि महबूब पहले से ही आसमान पर या अर्शे आज़म पर या जहां भी रब ने उन्हें रखा वो वहां मौजूद थे, और दूसरी आयत में उनके तशरीफ़ लाने का और उनके औसाफ़ का भी बयान फरमा रहा है, क्या ये उसके महबूब का मिलाद नहीं है, क्या वहाबी खुदा पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_3. बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक नूर आया और रौशन किताब_*

_*📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 15*_

*_यहां नूर से मुराद हुज़ूर हैं और किताब से मुराद क़ुराने मुक़द्दस है_*

*_4. और याद करो जब ईसा बिन मरियम ने कहा ................. और उन रसूल की बशारत सुनाता हूं जो मेरे बाद तशरीफ़ लायेंगे उनका नाम "अहमद" है_*

_*📕 पारा 28, सूरह सफ़, आयत 6*_

*_इस आयत में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मेरे आक़ा का मीलाद पढ़ रहे हैं, क्या वहाबी उन पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_5. और याद करो जब अल्लाह ने पैगम्बरों से अहद लिया, जो मैं तुमको किताब और हिकमत दूं फिर तशरीफ़ लायें तुम्हारे पास वो रसूल कि तुम्हारी किताब की तस्दीक़ फरमाएं तो तुम ज़रूर ज़रूर उनपर ईमान लाना और उनकी मदद करना, क्या तुमने इक़रार किया और उसपर मेरा भारी ज़िम्मा लिया, सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया फ़रमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और मैं खुद तुम्हारे साथ गवाहों में हूं, तो जो कोई इसके बाद फिरे तो वही लोग फ़ासिक़ हैं_*

_*📕 पारा 3, सूरह आले इमरान, आयत 81-82*_

*_ये आलमे अरवाह का वाकिया है जहां मौला ने अपने महबूब की शान बयान करने के लिए अपने तमाम नबियों को इकठ्ठा कर लिया यानि महफिले मिलाद सजा ली और उनसे फरमा रहा है कि अगर तुम्हारे पास मेरे नबी तशरीफ़ लायें तो तुम्हे सब कुछ छोड़कर उसकी इत्तेबा करनी होगी, और आखिर के जुम्ले क्या ही क़यामत ख़ेज़ हैं क्या फरमा रहा है कि " जो इस अहद को तोड़े तो वो फ़ासिक़ है " अल्लाह अल्लाह ये कौन कह रहा है हमारा और आपका रब कह रहा है, किससे कह रहा है अपने मासूम नबियों से कह रहा है, क्यों कह रहा है क्योंकि बात उसके महबूब की है इसलिए कह रहा है_*

*_आज हम उसके महबूब का ज़िक्र करें तो हम मुश्रिक_*
*_महफिले मिलाद सजाएं तो हम मुश्रिक_*
*_भीड़ इकठ्ठा कर लें तो हम मुश्रिक_*
*_और रब जो कर रहा है उसका क्या, उस पर क्या हुक्म लगेगा वहाबियों_*

*_6. और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला_*

_*📕 पारा 13, सूरह इब्राहीम, आयत 5*_

*_अल्लाह के दिन से मुराद वो दिन हैं जिन में मौला तआला ने अपने बन्दों पर नेमतें नाज़िल फरमाई जैसा कि बनी इस्राईल पर मन व सल्वा नाज़िल फरमाना और उनको दरिया से पार कराना, जैसा कि खुद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ौल क़ुरान में मौजूद है मौला फरमाता है कि_*

*_7. ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*

_*📕 पारा 7, सूरह मायदा, आयत 114*_

*_मुफ़स्सेरीन फरमाते हैं कि जिस दिन आसमान से ख्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई उस दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं, सोचिये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म नाज़िल फरमा रहे हैं तो क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी की विलादत एक खाने से भरे तश्त से भी कम है कि हम उस पर खुशी नहीं मना सकते, यक़ीनन मेरे आक़ा दुनियाए जहान की सारी नेमतों से बढ़कर हैं ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद रब्बे क़ायनात फरमा रहा है, पढ़िए_*

*_8. बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानो पर कि उनमे उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उनपर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते है_*

_*📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 164*_

*_मौला ने इंसान को कैसी कैसी नेमतें अता फरमाई है, उसकी आंख कान नाक मुंह ज़बान दिल जिगर उसके हाथ पैर उसकी सांसें, मैंने शायद किसी मैगज़ीन में पढ़ा था किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा है वैसे तो उनकी कोई कीमत नहीं सब अनमोल है मगर फिर भी मेडिकल साइंस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ rs. की मिल्क समझती है,सुबहान अल्लाह, हर इंसान 300 करोड़ rs. का फिर उस पर जो रब ने नेमतें दी उस के मां-बाप भाई-बहन दोस्त-अहबाब नाते रिश्तेदार वो अलग फिर उसपर ये कि उसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान से नवाज़ा, मगर कसम उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुरान उठाकर देख लीजिए कि क्या कहीं उसने अपनी किसी नेमत पर एहसान जताया हो अगर जताया है तो अपने महबूब को जब बन्दों के दरमियान भेजा तब जताया है, अब बताइए क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफ़ा की विलादत, ख्वान के आसमान से आने पर तो ईद मनायी गयी तो फिर मुस्तफा जाने रहमत के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया, जबकि मौला खुद अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है, फरमाता है_*

*_8. और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो_*

_*📕 पारा 30, सूरह वद्दोहा, आयत 11*_

*_क्या महबूबे दो आलम से बढ़कर भी कोई नेमत हो सकती है,नहीं नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,तो हम सुन्नी रब की दी हुई उसी अज़ीम नेमत का चर्चा करते हैं तो हम मुश्रिक कैसे हो गए बल्कि हक़ तो ये है कि जो उसकी दी हुई नेमत का चर्चा नहीं करते वो एहसान फरामोश गद्दार हैं जहन्नम के हक़दार हैं_*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

No comments:

Post a Comment

Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...