Friday, September 28, 2018



                        _*मुताफर्रिकात*_
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*_1⃣  साइंस्दां कहते हैं कि पृथ्वी यानि ज़मीन घूमती है जबकि ऐसा नहीं है ज़मीन बिल्कुल साकिन यानि ठहरी हुई है और घूमने का काम ये सूरज चांद सितारे करते हैं_*

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 9, सफह 177*_

*_2⃣  फासिक़ अगर सलाम करे या मुसाफा करना चाहे तो कर सकता है मगर पहल ना करें_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 3, सफह 72*_

*_3⃣  हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से नमाज़ में क़ुरान के साथ कुछ आयतें तौरैत शरीफ से पढ़ने की इजाज़त मांगी जिसपर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "ऐ ईमान वालो अगर मुसलमान हुए हो तो पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान की पैरवी ना करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है" सोचिये कि जब एक आसमानी और हक़ किताब पढ़ने की हमें इजाज़त नहीं दी गयी तो जो मुसलमान काफिरों की मुशाबहत करते हैं उनके त्यौहार मनाते हैं या मनाने जाते हैं उसकी मुबारकबाद देते हैं वो किस क़दर ज़ुल्म करते हैं_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 4, सफह 22*_

*_4⃣  वहाबी ना तो मुसलमान है और ना ही उसकी मस्जिद मस्जिद है और ना उसकी नमाज़ नमाज़, जब उनकी नमाज़ बातिल है तो अज़ान भी बातिल हां मगर अल्लाह और उसके हबीब का नाम सुने अगर चे किसी काफिर के भी मुंह से तो ताज़ीमन जल्ला शानहू और सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कहे_*

_*📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 95*_

*_5⃣  तफ़ज़ीली वो फिरका है जो कि मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हज़रते अबू बकर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से अफज़ल जानता है, बाकी तमाम बातों में अहले सुन्नत वल जमात के साथ है, बिला शुबह ऐसा अक़ीदा रखने वाला भी गुमराह व बिदअती है_*

_*📕 फतावा अज़ीज़िया, जिल्द 1, सफह 183*_

*_6⃣  नमाज़ी के सामने से एक तरफ से आते हुए दूसरी तरफ निकल जाना ये बहुत बड़ा गुनाह है लेकिन अगर कोई ऐन नमाज़ी के सामने नमाज़ पढ़ रहा था और उसकी नमाज़ खत्म हो गई तो वो दाएं बाएं जिधर से चाहे निकलकर जा सकता है इसको हटना कहेंगे नमाज़ काटना नहीं_*

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफह 156*_

*_7⃣  ताक, मेहराब या दरख्तों में किसी बुज़ुर्ग या वली का क़याम बताना सरासर जिहालत है, वहां अगरबत्ती मोमबत्ती जलाना या फूल वगैरह डालना फिज़ूल है_*

_*📕 अहकामे शरीयत, हिस्सा 1, सफह 32*_

*_8⃣  आजकल कुछ पीर ऐसे भी सुनने में आ रहे हैं जो कि माज़ अल्लाह मुसलमान किये बग़ैर मुरीद कर लेते हैं, जबकि आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "कोई काफिर ख्वाह मुशरिक हो या मोहिद हरगिज़ दाखिले सिलसिला नहीं हो सकता जबतक कि इस्लाम ना क़ुबूल करे" ऐसे पीर पीर नहीं बल्कि शैतान के चेले हैं लिहाज़ा ऐसो से दूर रहने में ही ईमान की आफियत है_*

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 6, सफह 157*_

*_9⃣  बाज़ लोग नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त अपना मुंह आसमान की तरफ उठाते हैं ऐसा करना सख्त मना है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफह 54*_

*_🔟 जुमे की रात और दिन में और रमज़ान शरीफ में किसी पर भी अज़ाब नहीं होता, हां मुसलमान हमेशा के लिए महफूज़ हो जाता है मगर काफिर पर इसके बाद अज़ाब लौट आता है_*

_*📕 शराहुस्सुदूर, सफह 76*_
_*📕 अलअश्बाह वन्नज़ायेर, सफह 564*_
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