Wednesday, September 26, 2018



                           _*करामात*_
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*_हज़रत ख़्वाजा बहा उद्दीन ज़करिया मुलतानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में एक औरत हाज़िर हुई और औलाद के लिये दरख्वास्त पेश की, आपने थोड़ी देर के लिये आखें बंद की ताकि देख सकें कि लौहे महफ़ूज पर इस औरत की किस्मत मे अल्लाह ने कोई बच्चा लिखा है या नहीं_*

_*उलटी ही चाल चलते हैं दीवाने गाने इश्क़*_
_*आखों को बन्द करते हैं दीदार के लिये*_

*_आप ने फरमाया तेरी किस्मत मे औलाद नहीं है औरत मायूस होकर वापस आ रही थी कि रास्ते मे ग़ौस बहाउल हक़ ज़करिया के पोते शाह रुक्ने आलम साहब नूरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि बच्चों के साथ खेल रहे थे, बचपन का ज़माना था उन्होने औरत को रोते देख कर फरमाया तू क्यों रोती है औरत ने कहा शहज़ादे तुम्हारे दादा जान के पास गई थी ताकि औलाद की दुआ करा सकूं मगर उन्होने फरमाया है कि अल्लाह ने तेरी किस्मत मे औलाद नहीं लिखी है, शाह रुक्ने आलम ने फरमाया फिर तूने क्या कहा औरत बोली शहज़ादे मैं क्या कह सकती थी फिर आप ने फरमाया जो अब मैं तुझे सिखाऊं जाकर कह मगर दादा जान के सामने मेरा नाम मत लेना, आप ने फरमाया जाकर ये कहो कि अगर मेरी किस्मत मे लिखा होता तो आपकी खिदमत मे हाज़िर होती या ना होती वो तो मुझे मिल ही जाता फिर आपकी खिदमत मे हाज़िर होने का क्या फायदा हुआ, वो औरत फिर वापस गई और जो कुछ शहज़ादे ने सिखाई अर्ज़ की आप ने मुस्कुरा कर फरमाया ''अभी उम्र छोटी है और बाते ऊंची करता है'' आप ने औरत को फरमाया कल आना आज रात मै अल्लाह तआला की बारगाह मे तेरे लिये दुआ करुंगा, और जब सुबह औरत आई तो आप ने उससे फरमाया जा मैने तुझे एक बेटा दिया दो दिए तीन दिए चार दिए पांच दिए छह दिए सात दिए इस तरह उस औरत को अल्लाह ने सात बेटे अता किये_*

_*निगाहें वली मे वह तासीर देखी*_
_*बदलती हज़ारों की तक़दीर देखी*_

_*📕 तारीख़ुल औलिया, सफह 62*_

_*अब यहां पर कोई सवाल कर सकता है कि जब खुद उन्होने लौहे महफ़ूज पर देख लिया था कि इसकी किस्मत में कोई औलाद नहीं है तो फिर कैसे और कहां से औलाद हो सकती है, तो इसका जवाब जानने के लिये इस मसले को थोड़ा समझना होगा*_

*_हदीस - नबी करीम सल्ल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि बेशक दुआ क़ज़ाये मुबरम को टाल देती है_*

_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 121*_

_*तक़दीर यानि क़ज़ा की 3 किस्में हैं*_

*_1. क़ज़ाये मुबरम हक़ीक़ी - कि इल्म इलाही मे किसी शय पर मुअल्ल्क़ नही यानि इसकी तबदीली नामुमकिन है, औलिया की इस तक रसाई नहीं बल्कि अम्बिया अलैहिस्सलाम भी अगर इसके बारे मे कुछ अर्ज़ करना चाहें तो उन्हे रोक दिया जाता है_*

*_2. क़ज़ाये मुअल्ल्क़ महज़ - कि फरिशतो के सहीफों में किसी शय मसलन दवा या दुआ वगैरह पर उसका मुअल्ल्क़ होना ज़ाहिर फरमा दिया गया है, इस पर अकसर औलिया की रसाई होती है उनकी दुआओं और तवज्जह से टल जाया करती है_*

*_3. क़ज़ाये मुअल्ल्क़ शबीह ब मुबरम - कि इल्म इलाही मे वो किसी चीज़ पर मुअल्ल्क़ है लेकिन फरिश्तों के सहीफों में मुअल्ल्क़ होना मज़कूर नहीं, इस पर रसाई सिर्फ खास औलिया की ही होती है जैसा कि सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं क़ज़ाये मुबरम को टाल देता हूं_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 6-7*_
_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 120*_

_*एक सवाल के जवाब मे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*_

*_अस्ल किताब लौहे महफूज़ मे जो कुछ लिखा है वो नहीं बदलता बल्कि फरिशतों के सहीफों में या लौहे महफूज़ के पटठों मे जो एहकाम है वो शफाअत व दुआ व खिदमते वालिदैन व सुलहो रहम से ज़ियादतो बरकत की जानिब बदल जाते हैं या गुनाह व ज़ुल्म व ना फरमानिये वालिदैन व क़ताओ रहम से कमी यानि किल्लत की तरफ बदल जाते हैं मसलन सोहफे मलाइका में ज़ैद की उम्र 60 बरस थी उस ने सरकशी की 20 बरस पहले ही उसकी मौत का हुक्म आ गया वहीं किसी नेकोकार को उस की किसी नेकी के सबब 20 बरस और मिल गये ये तबदीली हुई मगर इल्मे इलाही व लौहे महफूज़ में वही 40 या 80 साल लिखे थे जिनके मुताबिक़ होना लाज़िम_*

_*📕 फतावा अफ्रीका, सफह 145*_

_*हम अहले सुन्नत व जमाअत का यही अक़ीदा है कि अल्लाह ने अपने वलियों को बेशुमार ताक़तें अता फरमाई है जो कि क़ुर्आन से साबित भी है, अब अल्लाह के वली वो करामतें कैसे करते है और कहां से करते हैं ये जानना हमारे लिये ज़रूरी नहीं, तक़दीर के मसले पर उलझना या इस पर ग़ौरो फिक़्र करना ईमान के तबाह होने का खतरा है इस पर बहस करने से सिद्दीक़ व फारूक़ रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन रोक दिये गये तो हम और आप क्या है, बस इसी को हर्फे आखिर समझें*_
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