_*करामत हक़ है*_
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_*सुलेमान ने कहा ए दरबारियों तुममे कौन है जो उसका (बिल्क़ीस) का तख्त मेरे पास ले आए क़ब्ल इसके कि वह मेरे हुज़ूर मुतीअ होकर हाज़िर हो एक बड़ा खबीस जिन्न बोला कि मैं वह तख्त हुज़ूर मे हाज़िर करूंगा क़ब्ल इसके कि हुज़ूर इज्लास बर्खास्त करे और मैं बेशक इसपर क़ुव्वत वाला अमानतदार हूं उसने (आसिफ बिन बरख्या) अर्ज़ की जिसके पास किताब का इल्म था कि मैं उसे हुज़ूर में हाज़िर करूंगा एक पल मारने से पहले फिर जब सुलेमान ने तख्त को अपने पास रखा देखा तो कहा कि ये मेरे रब के फज़्ल से है*_
_*📕 पारा 19,सूरह नमल,आयत 38-40*_
_*तफसीर-हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम बैतुल मुक़द्दस में थे और बिलक़ीस मुल्के सबा की हुक्मरां थीं दोनों शहरो के बीच 2 माह यानि 1500 मील का फासला था जो कि तक़रीबन 2414 किलोमीटर बनते हैं जब मलिका बिलक़ीस ने हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम से मिलने का इरादा किया तो उसने अपना तख्त जो कि सोने चांदी से बना और हीरे मोतियों से जड़ा था जिसकी लम्बाई चौड़ाई ऊंचाई सब ही 30,30 गज़ थी यानि 90 फिट लम्बा 90 फिट चौड़ा और 90 फिट ऊंचा था उस तख्त को उसने 7 महलों के अंदर बंद करके हर एक को मज़बूत ताले से बंद किया और फिर वो बैतुल मुक़द्दस को चली उधर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को उसके आने का इल्म हो गया तो आपने अपने दरबार में ये एलान किया कि मलिका बिलक़ीस मुझसे मिलने को आ रही है तुमसे से कौन एैसा है जो उसका तख्त उसके पहुंचने से पहले यहां लादे इस पर 1 जिन्न बोला कि वो तख्त यहां ला देगा आपकी महफिल बर्खास्त होने से पहले पर आप तैयार ना हुए बल्कि उससे भी पहले मगांना चाहा तब आपके वज़ीर हज़रत आसिफ बिन बरख्या रज़ियल्लाहु तआला अन्हु उठे ये आपकी उम्मत के वली भी हैं आपने कहा कि मैं वो तख्त यहां ला दूंगा पलक झपकने से पहले ये बात अभी खत्म भी न हुई थी कि वो तख्त दरबार में हाज़िर था*_
_*📕 खज़ायेनुल इर्फान,सफह 452*_
_*📕 तज़किरातुल अंबिया,सफह 230*_
_*क़ुर्आन की आयत आपने पढ़ ली उसकी तशरीह यानि तफसीर भी पढ़ ली अब उसमें छुपे हुए राज़ को भी जान लीजिए*_
_*! हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम खुद नबी हैं आप चाहते तो दुआ कर देते और तख्त हाज़िर हो जाता मगर ऐसा ना करके आपने अपने दरबारियों से मदद चाही अगर गैरुल्लाह से मदद मांगना शिर्क होता तो एक बुज़ुर्गदीदा नबी हरगिज़ ऐसा ना करते जब एक नबी अपनी उम्मत से मदद तलब कर सकता है तो फिर उम्मती अपने नबी से मदद क्यों नहीं मांग सकता जब वो जायज़ तो ये भी जायज़*_
_*! 2414 किलोमीटर दूर रखे हुए उस भारी भरकम तख्त को दरबार में मंगवाना जो कि क़रीब क़रीब नामुमकिन था आपने ऐसा काम करने को क्यों कहा क्योंकि आप जानते थे कि इस दरबार में ऐसे लोग मौजूद हैं जो कि ना मुमकिन से लग रहे इस काम को बड़ी आसानी से कर सकते हैं लिहाज़ा हर मुश्किल से मुश्किल अम्र में भी एक वली की तरफ रुजू करना जायज़ बल्कि बेहतर है*_
_*! एक जिन्न की ताक़त का भी अंदाज़ा हुआ*_
_*! जब उस जिन्न ने महफिल बर्खास्त होने से पहले उस तख्त को लाने को कहा तो आपने इंकार क्यों किया हालांकि मल्लिका बिलक़ीस को आप तक पहुंचने में 2 महीने का वक्त लगता और तख्त सिर्फ 4-5 घंटों में आपके पास होता इंकार की वजह ये थी कि आप देख रहे थे कि आने वाले ज़माने में कुछ लोग ऐसे पैदा होंगे जो नबियों के इख्तियार का इंकार करेंगे इस लिए आपने अपने वली की ताक़त दिखाकर दुनिया को ये बता दिया कि ऐ इंकार करने वालो जब नबियों के गुलामों का ये पावर है तो फिर नबियों के पावर का क्या कहना और फिर नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के पावर का क्या कहना*_
_*हज़रत आसिफ बिन बरख्या रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ये कहना कि मैं पलक झपकने से पहले वो तख्त ला दूंगा और ना सिर्फ कहा बल्कि उसी वक़्त तख्त को दरबार में हाज़िर कर देना अकेले कितनी करामतों का मुजस्समा है, देखिये*_
_*! पहली तो ये कि पूरी रूए ज़मीन पर नज़र डाली की तख्त कहां रखा है उसे देख लिया गोया कि एक वली एक जगह बैठे बैठे पूरी दुनिया को मुलाहज़ा कर सकता है*_
_*! दूसरी ये कि 2414 किलोमीटर का सफर करके आप गए और फिर उतना ही सफर करके आप वापस आ भी गए गोया कि एक वली पलक झपकने भर में पूरी दुनिया गश्त करके वापस वहीं आ सकता है*_
_*! तीसरा ये कि जो तख्त सैकड़ो आदमी मिलकर उठाते थे उसे आप तन्हा ही ले आये गोया कि एक वली के बाज़ुओं के पावर का अंदाज़ा लगाईये*_
_*! चौथा ये कि बिन गए तो आप तख्त लाये नहीं और गए तो गए कैसे कि दरबार से तो एक पल को भी आप गायब ना हुए गोया कि एक वली एक जगह हाज़िर रहते हुए भी कहीं भी आ जा सकता है*_
_*और वली की ये करामत क़ुर्आन से साबित है*_
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