_*मुफलिस कौन*_
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_*हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अगले ज़माने में एक मुसलमान ने एक दूसरे मुसलमान को ज़मीन बेची,खरीदने वाले मुसलमान ने जब मकान बनवाने के लिए ज़मीन खोदी तो उसमे से एक सोने से भरा हुआ घड़ा निकला तो वो मुसलमान घड़ा लेकर उसके पास गया और कहा कि मैंने तुमसे सिर्फ ज़मीन खरीदी है ये सोने का घड़ा नहीं लिहाज़ा वहां से जो कुछ मिला वो तुम्हारा है इसे ले लो,इस पर वो मुसलमान बोला कि जब मैंने ज़मीन तुमको बेच दी तो अब जो कुछ उस ज़मीन से निकला है उस पर तुम्हारा हक़ है इसलिये मैं इसे नहीं ले सकता,जब दोनों ही तैयार नहीं हुए तो अपना फैसला करने के लिए वो एक तीसरे मुसलमान के पास गए उसने दोनों का मुआमला सुनकर उनसे पूछा कि क्या तुम्हारे कोई औलाद है इस पर एक बोला कि मेरा एक लड़का है और दूसरा बोला कि मेरी एक लड़की है तो उस मुसलमान ने दोनों से कहा कि ऐसा करो तुम दोनों अपने लड़के और लड़की का आपस में निकाह कर दो और ये सोना उनकी शादी में खर्च करदो इस तरह उन दोनों की शादी भी हो जायेगी और तुमको ये माल खर्च करने का सवाब भी मिल जायेगा चुनांचे इस पर वो दोनों राज़ी हो गए*_
_*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 494*_
_*ⓩ अल्लाह अल्लाह एक वो मुसलमान थे और एक आज का मुसलमान है कि अपना तो छोड़िये दूसरे का बल्कि अपने सगे भाई का माल हड़प कर जाये सोचिये कि अगर आज किसी के साथ ऐसा मुआमला पेश आ जाये तो इतने सोने के लिए तो लोग क़त्ले आम कर डालें,हालांकि दौलत कमाना और जमा करना हरगिज़ हराम नहीं है बस ये कि हलाल तरीके से कमाई जाये और हलाल कामों में खर्च की जाये और ईमानदारी से उसकी पूरी पूरी ज़कात अदा की जाये तो लाखों करोड़ो क्या अरबों खरबों कमा कर रख सकते हैं,और अगर बेईमानी की या मुसलमानों का हक़ मारा तो याद रखें कि वो दौलत तो यहीं रह जायेगी मगर उनका किया हुआ गुनाह उनके लिए क़यामत के दिन वबाल बन जायेगा,हदीसे पाक में आता है कि*_
_*हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा से पूछा क्या तुम जानते हो कि मुफलिस कौन है तो फरमाते हैं कि हम तो उसे ही मुफलिस जानते हैं जिसके पास माल ना हो,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मेरी उम्मत में मुफलिस वो होगा जो बरौज़े क़यामत नमाज़ रोज़ा हज ज़कात व दीग़र नेक आमाल लेकर आयेगा मगर युं कि दुनिया में किसी को गाली दी होगी किसी को मारा होगा किसी का हक़ छीना होगा किसी का खून बहाया होगा,पस उससे वो सारी नेकियां लेकर उन हक़दारों को दे दी जायेगी और अगर अब भी उसपर कुछ हक़ बाकी रह गया तो फिर हक़दारों के गुनाह इसके सर डालकर इसको जहन्नम में भेज दिया जायेगा*_
_*📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 33*_
_*ⓩ हर इंसान को 2 किस्म का हक़ अदा करना होता है पहला तो हुक़ूक़ुल्लाह यानि रब का हक़ जैसे कि नमाज़ रोज़ा हज ज़कात व नेकियों की तरफ माइल रहना और अपने आपको गुनाहों से बचाना और दूसरा हुक़ुक़ुल इबाद यानि बन्दों का हक़,हुक़ूक़ुल्लाह से ज़्यादा सख्त हुक़ूक़ुल इबाद है कि अल्लाह अपना हक़ तो अपने रहमो करम से माफ फरमा भी देगा मगर बन्दों का हक़ जब तक कि बन्दा खुद ना माफ करेगा मौला हरगिज़ माफ ना करेगा,तो नमाज़ रोज़ा करना बहुत अच्छी बात है मगर उसके बन्दों से इखलाक़ से पेश आना ये बहुत ज़्यादा ज़रूरी है मगर बन्दों से मुराद मुसलमान ही हैं क्योंकि अगर चे काफिर भी उसी के बन्दे हैं मगर नाफरमान बन्दे और उनके साथ नरमी बरतना खुदा का ग़ज़ब मोल लेना है लिहाज़ा उनसे दूर रहे और बद मज़हब तो काफिर से भी बदतर है लिहाज़ा उनसे भी दूर रहे*_
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