Monday, October 8, 2018



                 _*टी.वी-तस्वीर या आईना*_
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_*पोस्ट बड़ी है मगर बहुत इल्मी है पूरी पढ़ लीजिएगा इन शा अल्लाह इल्म में बहुत इज़ाफा होगा*_

_*बेशक निहायत सख़्त अज़ाब क़यामत के दिन तस्वीर बनाने वालों पर होगा*_

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, सफह 201*_

_*बेशक जो तस्वीर बनाते हैं क़यामत के दिन उनसे कहा जायेगा कि जो कुछ तुमने बनाया उसमें जान डालो और वो हरगिज़ ऐसा ना कर सकेगा*_

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, सफह 209*_

_*उस घर में रहमत के फरिश्ते दाखिल नहीं होते जिसमे कुत्ता तस्वीर या कोई जुनुब (जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़) हो*_

_*📕 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 218*_

_*अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "वो लोग जो रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को ईज़ा देते हैं अल्लाह ने उनपर दुनिया और आखिरत में लानत फरमाई और उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है*_

_*हज़रते अकरमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये आयत तस्वीर बनाने वालों के हक़ में नाज़िल हुई*_

_*📕 पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 57*_
_*📕 किताबुल कबायेर, सफह 303*_

_*आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "हदीस इस बारे में हद्दे तवातर पर हैं जिसका क़सदन इंकार करने वाले कम से कम गुमराह व बद्दीन है*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 9, सफह 143*_

_*मगर टीवी के मसले पर बहुत सारे नाम निहाद 'उल्मा' गुमराही के गढ़े में गिरे हुए हैं जो इस पर दिखने वाली इमेज को तस्वीर नहीं मानते और इसको जायज़ करने के लिए ये 3 दलीलें पेश करते हैं*_

_*1- टीवी मिस्ल आइना है*_

_*2- टीवी में तस्वीर नहीं बल्कि शुआयें यानि Rase किरण हैं, जो कि तस्वीर नहीं*_

_*3- उमूमे बलवा यानि हालते ज़माना को देखते हुए इसे जायज़ कर दिया जाए*_

_*आईये चलते हैं इन सारी बातों का पोस्ट मार्टम करने के लिए, सबसे पहले हिन्दुस्तान में इस खुराफात को जिसने जायज़ किया वो बदमज़हब फिरका जमाते इस्लामी का बानी अबुल आला मौदूदी था जिसके मानने वालों को मौदूदवी भी कहा जाता है, फिर इसी मौदूदवी तहरीक को आगे बढ़ाया मौलवी मदनी मियां साहब कछौछवी ने, जिस पर हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उनकी शरई गिरफ़्त फरमाई और उनकी ग़लत तहक़ीक़ पर 25 सवाल क़ायम फरमाये जिसका जवाब मदनी मियां साहब ने कुछ का कुछ दिया, हालांकि उनके दिए गए जवाबात गलत थे मगर फिर भी हुज़ूर ताजुश्शरिया ने उन पर भी कुछ सवाल क़ायम किये जिनका जवाब आज तक उनकी या उनके मानने वालों की जानिब से नहीं दिया गया, मगर जैसा कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत यहां सटीक बैठती है कि जवाब तो दिया नहीं गया उल्टा अपने स्टेजों से उनके ग्रुप के लोगों ने मसलन हाशमी मियां कछौछवी, उबैद उल्लाह खान आज़मी, मौलवी ज़हीर उद्दीन वग़ैरह ने खुले आम हुज़ूर ताजुश्शरिया व आलाहज़रत की शान में गुस्ताखियां की बल्कि कुछ सहाबा इकराम को भी निशाना बना डाला, जो हज़रात वो आडियो सुनना चाहते हों वो www.benaqabchehre.com पर विज़िट करें, फिर इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा पाकिस्तान के एक ग़ुमराह मौलवी ताहिरुल क़ादरी का जिसके ऊपर सिर्फ हिंदुस्तान के ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के भी सवा सौ से भी ज़्यादा उलेमा इकराम ने हुक्मे कुफ़्र लगाया, फिर इन्ही गुमराह मौलवियों की शह पाकर पाकिस्तान की बदनाम ज़माना तहरीक दावते इस्लामी भी चल पड़ी, जो शुरू शुरू में अपनी जमात को फरोग़ देने के लिए खूब मसलके आलाहज़रत का नारा बुलंद करती थी, यहां पर मैं टीवी को जायज़ करने की उन 3 दलीलों पर कुछ अर्ज़ करता हूं*_

_*पहला ये कि टीवी मिस्ल आइना है*_

_*बिलकुल ग़लत है, जैसा कि मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "बिला शुबह आईने में जो अपनी सूरत देखते हो तो क्या उसमें (आईने में) कोई सूरत है, नहीं बल्कि आंखों का नूर आईने पर पड़कर वापस आता है तो वो अपने आपको देखता है लिहाज़ा दाहिना बायां नज़र आता है और बायां दहिना नज़र आता है*_

_*📕 अलमलफ़ूज़, हिस्सा 1, सफह 50*_

_*इसी उसूल पर उलमाये इकराम के बनाये हुए कुछ कानून मुलाहज़ा करें*_

_*1. जिस कोण से आंखों का नूर आईने पर पड़ेगा वो नूर कोण बनाता हुआ वापस लौटेगा, मसलन आइने को सामने रखकर बीच से देखें तो अपनी सूरत नज़र आती है मगर जब आईने के दाईं तरफ से देखें तो खुद की सूरत नज़र नहीं आती बल्कि बायीं तरफ़ की तमाम चीज़ें आईने में नज़र आती है,अगर टीवी आइना है तो क्या टीवी में भी ऐसा होता है क्या टीवी के दाएं बाएं जाने से टीवी का Scene यानि पोज़ चेंज होता है, यक़ीनन नहीं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ*_

_*2. टीवी के पिक्चर ट्यूब में कुछ ख़ास किस्म के बल्ब होते हैं जो शुवाओं को टीवी के अन्दर की तरफ़ की स्क्रीन पर डालते हैं तो वो शुआअें बाहर की तरफ से नज़र आती है पलटकर वापस नहीं जाती जबकि आईने में Rase पलटती हैं तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ*_

_*3. टीवी का पिक्चर ट्यूब खुद Rase यानि किरणें पैदा करता है इसके बर अक्स आइना कोई नूर या किरण नहीं बनाता बल्कि जो जिस तरह उस तक पहुंचता है उसे वैसे ही लौटा देता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ*_

_*4. टीवी का पिक्चर ट्यूब Rase यानि किरणों में तसर्रुफ़ यानि बदलाव करता है मसलन आईने के सामने जब हम दायां हाथ उठाते हैं तो गोया लगता है कि बायां हाथ उठा लेकिन यही पोज़ जब हम टीवी में देखते हैं तो दहिना ही नज़र आता है मतलब साफ़ है कि आइना आये हुए नूर को युंहि लौटा देता है जबकि टीवी में गयी किरण को वो डायरेक्शन चेंज करके दिखाता है तो जब आईना तसर्रुफ़ नहीं करता और टीवी तसर्रुफ़ करता है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ*_

_*5. आईने में नज़र आने वाली सूरत को एक जगह रोका नहीं जा सकता जबकि टीवी में नज़र आने वाली तस्वीर को Pause का बटन दबाते ही बड़ी आसानी से रोका जा सकता है ये इस बात की दलील है कि आईने में कोई तस्वीर नहीं है जबकि टीवी में तस्वीर मौजूद है तो फिर टीवी आईने के मिस्ल कैसे हुआ*_

_*इसको इस तरह से समझाता हूं, आपने शायद सिनेमा हाल मे चलने वाली फिल्म की रील देखी होगी, अब तो फिल्मे Satelite के ज़रिये चलती है मगर पहले रील यानी नेगेटिव के ज़रिये चलती थी, जब मूवी चल रही होती है तो क्या ज़रा भी ये महसूस होता है कि ये Still Images यानि ठहरी हुई Photos की Next By Next Range है, नहीं बिल्कुल नहीं, बल्कि सब कुछ चलता फिरता नज़र आता है, मगर जहां कुछ खराबी आई फ़ौरन एक जगह इमेज ठहर जाती है यानि जिसको आज वीडियो ग्राफी कहकर जायज़ किया जा रहा है दर असल वो भी स्टिल फोटोग्राफी ही है, आज की इस हाई टेक्नोलॉजी के दौर में अब रील में स्टिल इमेज रखने की भी ज़रूरत नहीं है बल्कि वो डेटा की शक्ल में मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, कैमरे की हार्ड डिस्क में भी सेव करके रखा जा सकता है, मगर है ये भी तस्वीर ही*_

_*6. क्या पूरी दुनिया में कोई भी क़ौम आईने की पूजा करती है, नहीं मगर टीवी पर हिन्दू पूजा किया करते हैं इस काम के लिए बहुत सारी कम्पनियां पूजा की सीडी या डीवीडी बनाती और बेचती हैं, और अब तो जाहिलों ने दीदारे अत्तार की भी सीडियां बना रखी है, लिहाज़ा इतने सारे फर्क होने के बावजूद ये कहना कि टीवी मिस्ल आइना है सरासर जिहालत और हठधर्मी है*_

_*दूसरा ये कहना कि टीवी में शुआयें हैं तस्वीर नहीं*_

_*ये भी बिलकुल गलत तहक़ीक़ है कि कैमरा की शुवाओं में भी तस्वीर होती है और कैमरा उन तस्वीरों को शुवाओं की शक्ल में सेव करके रख सकता है, अगर कैमरा की किरणों में तस्वीरें न होती तो सामने बैठे हुए आदमी की तस्वीर किस तरह बनती, और अगर ये तस्वीर नहीं है तो फिर इन शुवाओं को कैमरा या मोबाइल में रिकॉर्ड करने का क्या मक़सद है, ज़ाहिर सी बात है इन शुवाई तस्वीरों का भी वही मक़सद है जो हाथ की तस्वीरों का होता है यानि इन्हें भी कागज़ या स्क्रीन पर उतारा जाएगा, और जब ये शुआयें स्क्रीन पर आएगी तो यक़ीनन तस्वीर होगी और उस पर हुरमत साबित होगी, इसको यूं समझिये कि एक आर्टिस्ट कई दिन में रंग ब्रश और केनवास पर किसी की तस्वीर बनाता है मगर आज की इस मॉडर्न टेक्नोलॉजी में वही शख्स शुवाओं का रंग लेकर कैमरा या मोबाइल के ब्रश से स्क्रीन के कैनवास पर चन्द सेकंड में तस्वीर बना देता है, क्या हाथ की बनी हुई तस्वीर में और टीवी या मोबाइल की स्क्रीन पर दिखती हुई तस्वीर में कोई फर्क होता है, क्या टीवी में दिखने वाली शुवाई तस्वीरों के मुंह नाक कान आंख नहीं होते, तो क्यों आख़िर ये तस्वीर नहीं है अगर चे बनाने का तरीक़ा अलग है मगर है तो तस्वीर ही, क्या सुअर के गोश्त को मुर्गा कहकर खाने से वो हलाल हो जाएगा क्या शराब को शरबत कहकर पीने से वो जायज़ हो जाएगा, नहीं और हरगिज़ नहीं, तो फिर ये उल्टी मन्तिक़ तस्वीर के मौज़ू पर क्युं, क्या ये सरासर शरीयत के साथ खिलवाड़ नहीं है, यक़ीनन है*_

_*तीसरा ये कि हालते ज़माना को देखते हुए टीवी को जायज़ कहना*_

_*दलील के तौर पर हज़रत फ़क़ीह अबुल लैस समरकंदी अलैहिर्रहमा के 3 मसायल में रुजू करने की बात कहते हैं तो ऐसे लोग खूब अच्छी तरह समझ लें कि उनकी दलीलों को ढ़ाल बनाकर हरगिज़ टीवी जैसी खुराफ़ात को जायज़ नहीं किया जा सकता और उनका रुजू फरमाना आज के नाम निहाद मौलवियों की तरह नाम, शोहरत और पैसा कमाना नहीं था बल्कि दीन बचाना था उनका एक मसला दर्ज करता हूं, शरीयत ने इल्म के बदले में क़ीमत वसूल करना नाजायज़ फ़रमाया, शुरू इस्लाम से ही उलमाये इकराम को सल्तनते इस्लामी के ज़रिये एक मुस्तक़िल वज़ीफा मिला करता था जिससे उनकी माली इमदाद और गुज़र बसर हो जाया करती थी और वो उलमा दीन की इशाअत में मसरूफ रहा करते थे, मगर ज्युं ज्युं इस्लामी हुक़ूमत ख़त्म होना शुरू हुई तो उलमा को दिए जाने वाले वज़ीफ़े बंद होते गए, इससे उनका घर संभालना निहायत दुश्वार हो गया, दूसरा कोई रास्ता न देख हज़ारों उल्मा इकराम ने दर्सो तदरीस छोड़कर दूसरा काम धंधा शुरू कर दिया और जो मोअतबर उलमा बचे थे वो भी दुनिया की तरफ़ जाने का मन बना चुके थे, जब उलेमा इकराम मज़बूरी में अपना और अपने घर वालों की खातिर दीन की इशाअत छोड़कर दूसरे किसी काम को ढूंढ रहे रहे थे तब ऐसे नाज़ुक वक़्त में जब कि दीन मिटता हुआ नज़र आने लगा तो हज़रत समरकंदी अलैहिर्रहमा ने दर्सो तदरीस पर तनख्वाह लेने का फतवा दिया, अब उस मसअले को टीवी पर जायज़ करने के लिये दलील बनाना आप बताइए क्या सही है, वहां मज़बूरी थी क्या आज टीवी के मामले मे मज़बूरी है, क्या उस मसले का टीवी से कोई जोड़-तोड़ है, उस वक़्त दीन खतरे में पड़ गया था क्या आज बग़ैर टीवी के दीन खतरे में है, क्या बग़ैर टीवी के दीन मिट जाएगा*_

_*! क्या बग़ैर टीवी के इमाम नमाज़ नहीं पढ़ा पाएगा*_
_*! क्या बग़ैर टीवी के बच्चे इल्म हासिल नहीं कर पाएंगे*_
_*! क्या मदरसों में ताले लगवा दिए जाएं*_
_*! क्या दीनी किताबें छपवानी बंद करके लाइब्रेरी में टीवी घुसा दिया जाए*_
_*! क्या जलसों में मस्जिदों में मुक़र्रर की जगह टीवी रखकर तक़रीर कराई जाए (दावते इस्लामी वालों की तरह माज़ अल्लाह)*_

_*तो मानना पड़ेगा कि दीन का काम टीवी पर मौक़ूफ़ नहीं है, लिहाज़ा ये नाम निहाद मौलवी अपनी गुमराही को अवाम में फैलाना बंद करें, अब एक मसअला खूब क़ायदे से समझ लें कि वोटर कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, एडमिशन फॉर्म, पासपोर्ट या जिस जगह भी फोटो मांगी जाती है वहां पर सिर्फ उस ज़रूरत के लिए तस्वीर खिंचवाने की रुखसत है मतलब छूट है यानि शरई मुआखज़ा ना होगा इसका ये मतलब हर्गिज़ नहीं कि तस्वीर जायज़ हो गई, मतलब ये कि जैसे इज़तरार की हालत में किसी की भूख से या प्यास से जान जा रही हो तो उसे शराब और सुअर खाकर भी अपनी जान बचाने की इजाज़त है, ये नहीं है कि शराब और सुअर हलाल हो गया, ठीक उसी तरह ज़रूरत से ही फोटो खिंचवाने की इजाज़त है ये नहीं कि खूब फोटो खिंचाओ खूब मूवी बनवाओ खूब टीवी देखो सब जायज़ हो गया, याद रखिये जो मुसलमान किसी हराम काम को हराम जानकार करेगा तो वो फ़ासिक़ होगा मगर अल्हम्दु लिल्लाह मुसलमान रहेगा मगर किसी ने हराम को हलाल समझ लिया तो कम से कम इस मसअले में गुमराह तो हो ही जायेगा*_

_*अगर यहां तक की बात समझ में आ गयी हो तो ये आखिरी बात भी समझ लीजिए कि आप इस्लामी ग्रुप में हैं और इल्मे दीन हासिल करने की गर्ज़ से हैं तो इल्म उसी वक़्त फायदा पहुंचाता है जब कि उसकी इज़्ज़त की जाए और इल्म की इज़्ज़त ये होती है कि उसको क़ुबूल करे यानि उसपर अमल करे नाकि एक कान से सुने और दूसरे से उड़ा दें, तो मेहरबानी करके अपनी अपनी D.P से जानदार की फोटो हटाई जाए वरना बरौज़े महशर आप खुद अपनी हलाक़त के ज़िम्मेदार होंगे*_

_*📕 टीवी और वीडियो का ऑपरेशन*_
_*📕 शुवाई पैकर का हुक्म*_
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