_*क़ब्रिस्तान जाने की सुन्नतें*_
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_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मैंने तुमको ज़ियारते क़ुबूर से मना किया था अब मैं तुमको इजाज़त देता हूं कि तुम क़ब्रों की ज़ियारत करो कि वो दुनिया से बे रग़बती और आख़िरत की याद दिलाती है*_
_*📕 मिश्कात शरीफ, सफह 154*_
_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो अपने वालिदैन में से किसी की ज़ियारत जुमा को करेगा तो उसकी मग़फ़िरत हो जायेगी और वो फर्माबरदार लिखा जाएगा जब क़ब्रिस्तान में जाये तो ये दुआ पढ़ें ''अस्सलामो अलैकुम या अहलल क़ुबूर यग़फिरुल्लाहो लना वलाकुम वअन्तुम सलाफोना वनाहनो बिल अस्रे यानि ऐ क़ब्र वालों अल्लाह की सलामती हो तुमपर अल्लाह तुम्हारी और हमारी मग्फ़िरत फरमाये और तुम हमसे पहले आ गये और हम तुम्हारे बाद आने वाले हैं जिसकी ज़ियारत को गया है तो दुनिया में उससे जितनी क़रीबी थी उतने का लिहाज़ रखे जब ज़ियारत को जाएं तो 2 रकअत नमाज़ घर से पढ़कर बख्शें और फिर जाएं कि इससे उसकी क़ब्र में नूर पैदा होगा इसको भी बहुत अज्र मिलेगा जितना क़ुरान सही मखरज से पढ़ सकता हो पढ़े, वरना 100 बार दुरूदे पाक शरीफ पढ़कर बख्शे*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 16, सफ़ह 241-242*_
_*जनाजे को कंधा देना सुन्नते नबवी है और बेहतर है कि चारो तरफ़ से कन्धा देते वक़्त 10, 10 क़दम चले जनाज़े के साथ क़ब्रिस्तान तक औरतों का जाना नाजायज़ है जनाज़े को देखकर बाज़ लोग खड़े हो जाते हैं इसकी कोई अस्ल नहीं*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 4, सफ़ह 143-145*_
_*क़ब्र पर बैठना, पैर रखना, उससे तक़िया लगाना और उन रास्तों पर चलना जो क़ब्रिस्तान में नए बनाए गयें हों हराम है क़ब्र में शजरह या अहद नामा रखना जायज़ है और मय्यत की पेशानी पर बिस्मिल्लाह शरीफ और सीने पर कलमा शरीफ लिखना बाइसे निजात है, मगर उंगली से लिखे स्याही वग़ैरह इस्तेमाल न करें मुर्दे को अपनी नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात व दीगर आमाल का सवाब भी बख्श सकता है और उसके नामए आमाल में कुछ भी कमी ना होगी, बल्कि उसे सबके मजमुये का सवाब मिलेगा मसलन इसने 10 मुर्दे को 10 नेकियां बख्शी तो सबको 10, 10 और इसको 100 नेकियां मिलेगी, युंही अगर तमाम उम्मत को बख्श दे तो सबकी गिनती के मजमुये के बराबर,*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 4, सफ़ह 164-166*_
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