_*अक़ाइद का बयान (पोस्ट- 1)*_
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_*📖सवाल- अक़ाइद के इमाम कितने हैं?*_
_*✍🏻जवाब- दो हैं, एक हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी, दूसरे सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाह अलैहिमा।*_
_*📕 रोज़ तुलबहिया, सफ़्हा 3, निबरास, सफ़्हा 229*_
_*📝नोट- अक़ाइद अक़ीदे की जमा यानी बहु वचन है इस्लाम में जिन बातों का जुबान के के साथ दिल से गवाही देना जरूरी है वह अक़ीदा कहलाती है।*_
_*📖सवाल- क्या दोनों इमाम बरहक़ (सही) हैं?*_
_*✍🏻जवाब- यह दोनों इमाम बरहक़ हैं, अस्ल अक़ाइद में दोनों एक हैं अल्बत्ता इख्तेलाफ है तो सिर्फ अक़ाइद के फुरूअ (अस्ल से निकली हुई बातों) में।*_
_*📕 बहारे शरीअत, जिल्द 1, सफ़्हा 53*_
_*📖सवाल- जो इन्सान इन दोनों इमामों के खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे वह एहले सुन्नत में दाख़िल है या नहीं?*_
_*✍🏻जवाब- एहले सुन्नत इन्हीं दोनों इमामों की पैरवी करते हैं मातुरीदया हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी की अशाइरा और हज़रत सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी की तो एहले सुन्नत की यही दो जमाअतें हैं जो इनके खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे और वह अक़ीदा कुफ्र की हद तक नहीं पहुँच है तो वह गुमराह है और अगर कुफ्र की हद तक पहुँचा गया है तो काफ़िर और एहले सुन्नत से खारिज है।*_
_*📕 मज़हबे इस्लाम, सफ़्हा 4*_
_*📖सवाल- मसाइल के इमाम कितने हैं?*_
_*✍🏻 जवाब- इस वक़्त चार हैं इमामे आज़म,इमाम शाफ़ेई,इमाम मालिक,इमाम अहमद बिन हंबल, दूसरी सदी के बाद उम्मत ने इन्हीं चारों इमामों पर इत्तेफाक कर लिया है इससे पहले कुछ इमाम और भी हुऐ हैं लेकिन उनके मसलक कुछ जमाने तक चले और ख़त्म हो गऐ।*_
_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 3, सफ़्हा 321*_
_*📖सवाल- क्या इन चार इमामों में से किसी एक की पैरवी जरूरी है?*_
_*✍🏻जवाब- हाँ शरीअत के मसाइल पर अमल करने के लिए किसी एक खास इमाम की पैरवी करना ज़रूरी है वरना वह शरीअत पर अमल करने वाला नहीं होगा बल्कि अपनी ख्वाहिश पर अमल करेगा और गुमराह होगा इस वक़्त इन चार के सिवा किसी की पैरवी जाइज़ नहीं अब सही और हक़ मज़हब इन्हीं चारों में महफूज़ है और जो इन चारों से ख़ारिज है गुमराह और बे दीन है।*_
_*📕 तहतावी, जिल्द 4, सफ़्हा 153*_
_*📕 सावी, जिल्द 3, सफ़्हा 9*_
_*📖सवाल- अगर चारो इमाम बरहक हैं तो इख्तेलाफ किस बात में है?*_
_*✍🏻जवाब- यह चारों अस्ल अक़ाइद में मुत्तहिद हैं और इख्तेलाफ सिर्फ फुरूई मसाइल में है।*_
_*📕 मज़हबे इस्लाम, सफ़्हा 5*_
_*📖सवाल- ग़ैरे मुक़ल्लिद किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?*_
_*✍🏻जवाब- ग़ैर मुक़ल्लिद जिसे एहले हदीस भी कहते हैं एक गुमराह और बदर मज़हब फिरक़ा है जो इमामों की पैरवी और इजमाअ (सरकार की उम्मत के इमामों और नेक हज़रात का किसी दीनी हुक्म या मसअले पर इत्तेफाक कर लेना) और क़्याम (कुरान हदीस को आईना बनाकर दूसरे मसअले निकालना) या कयास का इन्कार करते हैं पैरवी को हराम और बिदअत बताते हैं और दीनके इमामों को गाली और बुराई से याद करते हैं और इमामों की पैरवी करने वालों को मश़्रिक बताते है इस फिरके ने अपना नाम"आमिल बिल हदीस " रखा इसके पेशवा इस्माईल देहलवी और सिद्दीक हसन खाँ भोपाली और नज़ीर हुसैन देहलवी हैं इस्माईल देहलवी ने यह नया मजहब निकाला और हिन्दुस्तान में फैलाया उनका अक़ीदा वही है जो वहाबी देवबन्दी का हे बल्कि उनसे भी एक दर्जा आगे और इनके मजहब में यह भी है कि राम चन्द्र लक्ष्मण कृष्णा जो हिन्दुओं के पेशवा हैं नबी हैं काफिर का ज़िबह किया हुआ जानवर हलाल उसका उसका खाना जाइज़ है,मर्द एक वक़्त में जितनी औरतों से चाहे निकाह कर सकता है उसकी हद नहीं कि चार ही हों, मनी पाक है मुता (कुछ वक़्त के लिए निकाह करना) जाइज़ है वगैरह।*_
_*📕 इज़हारूलहक़, सफ़्हा 4 से 18*_
_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 9, सफ़्हा 41*_
_*📕 ग़ैर मुक़ल्लिद के फरेब, सफ़्हा 59 से 64*_
_*📖सवाल- तबलीग़ी जमाअत किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?*_
_*✍🏻जवाब- तबलीग़ी जमाअत वहाबी देवबन्दी ही की एक शाख़ है उसके बानी मौलवी इलयास कांधुलवी हैं उनकी जमाअत का मक़सद सिर्फ अशरफ़ अली थानवी और रशीद अहमद गंगोही वग़ैरा की काफ़िर बनाने वाली तालीम फैलाना और राइज करना है और सुन्नी मुसलमानों को वहाबी बनाना है लेकिन इस जमाअत के प्रचार करने वाले सीधे-सादे लोगों को धोका देने के लिये यह कहा करते हैं कि तबलीग़ी जमाअत का यह तरीक़ा नबियों और सहाबियों का तरीका है यह उनका साफ़ झूठ और निहायत शर्मनाक धोका है उनके अक़ीदे वही हैं जो अशरफ अली थानवी के थे।*_
_*📕 फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफ़्हा 43/तबलीग़ी जमाअत सफ़्हा 12*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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