Sunday, November 4, 2018



        _*अक़ाइद का बयान (आखिर पोस्ट)*_
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_*📖सवाल- क्या अल्लाह तआला को दुनिया में ज़ाहिर आँख से देखना मुमकिन है?*_

_*✍🏻जवाब- हाँ अकलन और शरअन दोनों एतेवार से मुमकिन है अलबत्ता हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम के सिवा किसी और ने नही देखा सिर्फ हमारे प्यारे नबी ने मेराज की रात में अपनी ज़ाहिर आँख से अल्लाह का दीदार फ़रमाया।*_

_*📕 फ़तावा हदीसिया, सफ़्हा 108*_
_*📕 मुनब्बिहुल मुनियह, सफ़्हा 6*_
_*📕 अशिअ्तुल लमआत, जिल्द 4, सफ़्हा 424*_

_*📖सवाल- यह दीदार कितनी बार हुआ?*_

_*✍🏻जवाब- सिर्फ दो बार हुआ, पहली बार सिदरतुल मुन्तहा पर और, दूसरी बार अर्शे आज़म पर।*_

_*📕 अशिअ्तुल लमआत, जिल्द 4, सफ़्हा 429*_
_*📕 मवाहिब लदुन्निया, जिल्द 2, सफ़्हा 35*_

_*📖सवाल- क्या आख़िरत (मरने के बाद) में मोमिन और काफ़िरो सब को अल्लाह तआला का दीदार होगा?*_

_*✍🏻जवाब- हाँ हश्र के मैदान में सब को अल्लाह तआला का दीदार होगा लेकिन मोमिनो को रहमो करम की हालत में और काफ़िरो को गुस्सा और गज़ब की हालत में फिर उसके बाद काफ़िर हमेशा के लिए इस नेमत से महरूम कर दिए जाएगे ताकि अफ़सोस और ग़म ज्यादा हो।*_

_*📕 शरह फ़िक़्हे अकबर बहरूल उलूम, सफ़्हा 66*_
_*📕 तकमीलुल ईमान, सफ़्हा 6*_
_*📕 अशिअ्तुल लमआत, जिल्द 4, सफ़्हा 425*_

_*📖सवाल- क्या सारे मोमिन इस नेमत के मिलने में बराबर होंगे या अलग अगला?*_

_*✍🏻जवाब- हर एक अपने अपने नामा ऐ आमाल के एतेवार से इस नेमत के पाने में अलग अलग होंगे आम मोमिनो को हर जुम्मे के दिन और ख़ास मोमिनो को हर सुबह व शाम दीदार होगा और उनसे भी ख़ास जो जन्नते अदन में रहेंगे हमेशा करीब होंगे और अल्लाह तआला के ख़ास जलवो की नेमत हासिल होगी।*_

_*📕 तासीर अजीजी, पारा 30, सफ़्हा 100*_
_*📕 तकमीलुल ईमान, सफ़्हा 5*_

_*📖सवाल- अल्लाह तआला के नाम कितने हैं?*_

_*✍🏻जवाब अल्लाह तआला के नामो की कोई गिनती और शुमार नही है कि उसकी शान की कोई हद नही मगर इमाम राज़ी ने अपनी किताब तफ़्सीर कबीर में 5000 नामो का ज़िक्र किया है जिनमें से क़ुरान में एक हजार, तौरेत में एक हजार, इन्जील में एक हजार, जुबूर में एक हजार और लौहे महफूज़ में एक हजार हैं।*_

_*📕 तफसीरें कबीर, ज़िल्द 1, सफ़्हा 119*_
_*📕 अहकामे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़्हा 157*_

_*📖सवाल- तमाम नामो में कौनसा लफ्ज़ ज्यादा मशहूर व मारूफ है?*_

_*✍🏻जवाब-लफ़्ज़े "अल्लाह" ज्यादा मशहूर व मारूफ है।*_

_*📕 खाजिन, ज़िल्द 2, सफ़्हा 262*_

_*📖सवाल- क्या अल्लाह तआला को सख़ी (दानी/खैराती) आकिल (बुद्धिवान/आकाल मन्द) तबीब (हक़ीम/डॉ) वगैरह लफ़्ज़ों के साथ बोल सकते हैं?*_

_*✍🏻जवाब- नही अल्लाह तआला के सारे नाम तौकीफ़ी है अल्लाह तआला को उन्हीं लफ़्ज़ों से पुकार सकते हैं जिनका इस्तेमाल कुरान व हदीस या इज्माऐ उम्मत से साबित है जैसे लफ़्ज़े  "खुदा'' कि इसका इस्तेमाल अगरचे क़ुरान व हदीस में नही है लेकिन इज्मा ए उम्मत से साबित है।*_

_*📕 खाजिन, ज़िल्द 2, सफ़्हा 262*_
_*📕 निबरास, सफ़्हा 173*_

_*📖सवाल- अल्लाह तआला के लिये हर जगह हाजिर व मौजूद है ऐसा कहना कैसा है?*_

_*✍🏻जवाब अल्लाह तआला जगह से पाक है यह लफ्ज़ बहुत बुरे मअना का एहतेमाल रखता है इससे बचना लाजिम है।*_

_*📕 फ़तवा रिज़विया, ज़िल्द 6, सफ़्हा 132*_

_*📖सवाल- अल्लाह तआला को अल्लाह मियाँ कहना कैसा है?*_

_*✍🏻जवाब- अल्लाह मियाँ के तीन माना है (1) मालिक (2) शौहर (3) ज़िना का दलाल इनमें बाद वाले दो ऐसे माने हैं जिनसे अल्लाह की शान पाक और बरी है और पहले वाले माना सही हो सकते हैं तो जब दो लफ्ज़ बुरे माना और एक अच्छे माना में शरीक हुआ तो उसका अल्लाह के लिए बोला जाना ग़लत होगा।*_

_*📕 अलमलफ़ूज़, ज़िल्द 1, सफ़्हा 116*_

_*📖सवाल- मोहम्मद नबी, अहमद नबी, नबी अहमद, नाम रखना कैसा है.?*_

_*✍🏻जवाब- हराम है कि इनमें हकीकत में नुबुव्वत का दावा अगरचे नही पाया जाता मगर सूरत और लफ्ज़ो के ऐतेवार से दावा जरूर है और यह गुमान करना की नामों में पहले माना मुराद नही होते न शरीअत में ऐसा कही है और न आम बोल चाल की जुवान में इसी तरह यासीम व ताहा नाम रखना मना है यूँ ही गफुरुद्दीन, वगेरह नाम भी सख़्त ग़लत व बुरे हैं।*_

_*📕 फ़तवा रिज़विया, ज़िल्द 9, सफ़्हा 201 से 202*_

_*📮पोस्ट खत्म.....*_
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