_*अक़ाइद का बयान (पोस्ट- 3)*_
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_*📖सवाल- खरिजी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?*_
_*✍🏻जवाब- खरिजी एक गुमराह फ़िरका है जो जंग सफ़फ़ैन के मौके पर ज़ाहिर हुआ वजह यह हुई कि यह लोग हज़रत अली मुश्किल कुशा के साथ मिलकर हज़रते अमीरे मआविया से जंग कर रहे थे दौराने जंग ही हज़रत अमीर मआविया से जंग कर रहे थे दौराने जंग ही हज़रत अमीर मआविया और हजरत अली के दरमीयान सुलह की बात चीत होने लगी तो यह लोग यह"ला हुक-म-इल्लल्लाह"यानी (अल्लाह के सिवा किसी का हुक्म नहीं) हजरत अली मुश्किल कुशा से जुदा हो गऐ और आप पर तबर्रा करने लगे और बग़ावत पर उतर आऐ यहाँ तक कि अब यह लोग उन सहाबियों की जिन्होंने आपस में लड़ाईयाँ लडीं जैसे हजरत तलहा, हजरत जुबैर, हजरत उसमान, हजरत अली, हजरत अमीर मआविया, हजरत उमर बिन आस को काफ़िर कहते हैं उनका अक़ीदा यह भी है कि गुनाहे कबीरा का करने वाला काफिर है, (2) क्यास और इजमाअ कोई दलील नहीं बल्कि इन दोनों का इन्कार करते हैं, (3) इमामे वक़्त पर खुरूज व किताल जाइज़ है, (4) इमाम का करशी होना जरूरी नहीं इन्सान करने वाला होना काफ़ी है वगैरह।*_
_*📕 रददुल मुहतार, जिल्द 3, सफ़्हा 319*_
_*📕 फ़तावा अज़ी ज़िया, जिल्द 1, सफ़्हा 107*_
_*📕 मजाहेबुल इस्लाम, सफ़्हा 456 से 470*_
_*📖सवाल- तफ़जीली किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?*_
_*✍🏻जवाब- हज़रत अली मुश्किल कुशा से मुहब्बत करने वालों में से उन लोगों को कहते हैं जो हज़रत मौला अली को हज़रत अबु बक़र और हज़रत उमर पर फज़ीलत देते हैं और हज़रत अली मुश्किल कुशा को उनसे अफ़ज़ल मानते हैं बाक़ी तमाम बातों में एहले सुन्नत वल जमाअत के साथ है एहले सुन्नत वल जमाअत के नजदीक ऐसा अक़ीदा रखने वाला बिदअत व गुमराह है।*_
_*📕 फ़तावा अज़ी ज़िया, जिल्द 1, सफ़्हा 183*_
_*📕 इजहारूल हक़, सफ़्हा 180*_
_*📖सवाल- देवबन्दी किसे कहते हैं और उनका अकीदा क्या हैं?*_
_*✍🏻जवाब- मौलवी रशीद अहमद गंगोही, मौलवी असरफ अली थानवी, मौलवी क़ासिम नानौतवी और मौलवी ख़लील अहमद अंबेठवी के मानने वालों को देवबन्दी कहते हैं उनका अक़ीदा यह हैं की,*_
_*1) हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के बाद दुसरा नबी हो सकता है,*_
_*2) शैतान मरदूद का इल्म हुजूर सल्ललाहो अलैह वसल्लम के इल्म से ज़्यादा है,*_
_*3) शैतान मरदूद के इल्म ज़्यादाती नस्से क़तई(कुरान)से साबित हैं और हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के इल्म की ज़्यादाती के लिए कोई नस्से कतई नहीं,*_
_*4) खुदा झूठ बोल सकता हैं, बल्कि झूठ बोला भी है,*_
_*5) हुजूर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिए कुछ ग़ैब के इल्मों का सुबूत बच्चा व पागल बल्कि तमाम जानवरों और चौपायों इल्म की तरह हैं।*_
_*"माजल्लाहीरबविल अलामीन"*_
_*यह चारों अपने अकीदे के ऐतेबार से काफिर व मुर्तद हैं जौ इनके कुफर व अज़ाब मैं शक करे वह खुद काफिर हैं आज के दौर मैं वहाबी देवबन्दी दोनों का एक ही हुक्म हैं कि यह लौग इन ख़बीस लोगों की झुठी बातों और ख़राब अक़ीदो को सही और हक़ मानते हैं इसलिऐ यह भी काफिर व मुर्तद हैं।*_
_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 9, सफ़्हा 39 से 42*_
_*📖 सवाल- वहाबी किसे कहते हैं और उनका अक़ीदा क्या है?*_
_*✍🏻जवाब- मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के मानने वालों को वहाबी कहते हैं, इस मज़हब का वानी मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नजदी है जिसके बारे में शैखुल इस्लाम मौलान हुसैन अहमद टांडवी देवबन्दी अपनी किताब" अश्शिहाबुस्साकिब" में लिखते है।कि" मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नजदी इब्तेदाऐ तेरहवीं सदी में नजद अरब से ज़ाहिर हुआ और चूँकि यह ख्यालाते फासिद और अक़ाइदे बातिल रखता था, एहले सुन्नत व जमाअत से कत्लो किताल किया, उनको बिल्जबर अपने ख़्यालात की तकलीफ़ देता रहा, उनके अमवाल को ग़नीमत का माल और हलाल समझता रहा, उनके क़त्ल करने को बाइसे सवाब व रहमत शुमार करता रहा, एहले हरमैन को खुसूसन और एहले हिजाज़ को उमूमन उसने तकलीफ़े शाक्का पहुँचाई। सल्फ़ सालेहीन और अत्बाअ की शान में निहायत गुस्ताख़ि और बे अदबी के अलफ़ाज़ इस्तेमाल किऐ, बहुत से लोगों को बे वजह उसकी तकलीफ़े शदीदा के मदीना मुनव्वरा और मक्का मुअज़्ज़मा छोड़ना पड़ा। और हज़ारो आदमी उसके और उसकी फ़ौज के हाथों शहीद हो गऐ,*_
_*इसने अपना मज़हबे बातिल फैलाने के लिए एक किताब लिखी जिसका नाम"किताबुत्तौहिद"रखा उसके जरिए नबियों और वलियों और खुद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की दिल खोलकर तौहीन की फिर उसी का तरर्जुरमा हिंदुस्तान में इस्माईल देहलवी, ने किया जिसका नाम तकवीयतुल ईमान रखा उसी ने यहाँ वहाबियत फ़ैलाई इस वक़्त इस्माईल देहलवी, रशीद अहमद गंगोही और क़ासिम नानौतवी अशरफ़ अली थानवी और तकवियतुल ईमान को मानने वाला या उसके मुताबिक़ अक़ीदे रखने वाला वहाबी हैं।*_
_*मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब का अक़ीदा था कि,*_
_*"जुमला एहले आलम व तमाम मुसलमनाने दयार मुशरिक व काफ़िर हैं और उनसे कत्लो किताल करना, उनके अमवाल को उनसे छीन लेना हलाल व जाइज़ बल्कि वाजिब हैं। वह सिर्फ़ अपने आपको मुसलमान समझते हैं"।*_
_*📕 रददुल मुहतार, जिल्द सोम, सफ़्हा 319*_
_*📕 फ़तवा रिज़विया, जिल्द 9, सफ़्हा 4*_
_*📕 अश्शिहाबुस्सकीब, सफ़्हा 43*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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