_*करामात - "मुफ़्तिये आज़म हिन्द"*_
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_*🌹मुजद्दिद इब्न मुजद्दिद वली इब्न वली शैखे तरीक़त आरिफ़ बिल्लाह हज़रत मुस्तफ़ा रज़ा खान "मुफ़्तिये आज़म हिन्द" रज़ी अल्लाहो तआला अन्हु*_
_*🔘 क़ारी नेअमत उल्लाह साहब ने राक़िमुल हुरूफ़ मुहम्मद अमानत रसूल रज़वी से बयान किया कि मौलाना अब्दुल क़य्यूम साहब तेग़ी मुज़फ्फरपूरी इमाम सुन्नी मदीना नरील वाड़ी कब्रिस्तान रोड मुंबई ने मुझसे और मुस्तफा बाज़ार अलीमी दरबार होटल के सामने जलसए आम में इस वाक़ये को बयान फ़रमाया कि जब मैं फैज़ाबाद टाट शाह जामा मस्जिद में इमाम था उस वक़्त आशिक़ अली फ़ैज़ाबादी ने मुझसे कहा कि मैं हुज़ूर मुफ्तीए आज़म का मुरीद होना चाहता हूं मैने उन्हें बता दिया कि हज़रत फैज़ाबाद आने वाले हैं यहीं मुरीद हो जाना जब हज़रत तशरीफ़ ले आएं तो मौलाना अब्दुल क़य्यूम साहब आशिक़ अली को लेकर हज़रत की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया कि हुज़ूर इनको मुरीद फरमा लें हज़रत ने कलिमाते बैयत आशिक़ अली से कहलवाने शुरू किये और आखिर में फ़रमाया कि कहो मैंने अपना हाथ ग़ौसे पाक के हाथ में दिया तो आशिक़ अली बोले कि मैंने अपना हाथ हुज़ूर मुफ्तीए आज़म के हाथ में दिया हज़रत ने फ़रमाया कि मैं जो कहता हूं वो कहो कहो कि मैंने अपना हाथ गौसे आज़म के हाथ में दिया तो आशिक़ अली बोले अभी आपने मुझसे कहलवाया है कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा और अभी आप कहलवा रहे हैं कि मैंने अपना हाथ ग़ौसे पाक के हाथ में दिया कैसे तो हज़रत फरमाते हैं कि हमारे मशायख का यही तरीक़ा है कि ग़ौसे पाक तक पहुंचा दिया जाता है कहो कि मैंने अपना हाथ ग़ौसे पाक के हाथ में दिया फिर भी आशिक़ अली नहीं बोले तो हज़रत को जलाल आ गया और अपना इमामा शरीफ़ उतार कर आशिक़ अली के सर पर रख दिया और उसी जलाल में फ़रमाया कि कहता क्यों नहीं की मैंने अपना हाथ हुज़ूर ग़ौसे पाक के दस्ते पाक में दिया और फिर आशिक़ अली बार बार कहने लगे कि हां मैंने अपना हाथ ग़ौसे पाक के हाथ में दिया और यही कहते कहते बेहोश हो गए जब होश आया तो लोगों ने दरयाफ्त किया तो आशिक़ अली कहते हैं कि जैसे ही हज़रत ने अपना इमामा मेरे सर पर रखा तो मैंने देखा कि हुज़ूर ग़ौसे पाक हाज़िर हैं और फरमा रहे हैं कि आशिक़ अली मुफ्तीए आज़म हिन्द का हाथ मेरा ही हाथ है ये मेरे नाइबो मज़हर हैं कहो कि मैंने अपना हाथ ग़ौसे पाक के हाथ में दिया बस मैं यही कहने लगा और बेहोश हो गया*_
_*📕 तजल्लियाते शैख मुस्तफा रज़ा, सफह 164*_
_*सुब्हान अल्लाह सुब्हान अल्लाह*_
_*करामत एक दो हो तो बयां उनकी करी जाए,*_
_*सरापा ही करामत हैं हुज़ूर मुफ्तीए आज़म*_
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