_*💫इस्लामी मालूमात 2 (पोस्ट न. 26)*_
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_*📝सवाल न . 183 - जब सन् छ: हिजरीमै हुदैबिया के सुलहनामे में तहरीर किया जा चुका कि दस साल तक फरीकैन के बीच कोई जंग न होगी तो फिर आखिर ऐसा कौन सा सबब नमूदार हो गया कि सुलहनाने के दो ही साल बाद ताजदार दो आलम को हथियार उठाने की जरूरत पेश आई ?*_
_*✍🏻जवाब - हुदैबिया के सुलहनामे में एक शर्त यह भी थी कि कबाइले अरब में से जो कुरैश के साथ मुआहिंदा करना चाहे वह कुरैश के साथ मुजाहिदा करे और जो हुजूरे अकरम के साथ मुआहिदा करना चाहे वह हुजूर से मुआहिदा करें । इसके पेशेनजर मक्के के करीब दो कबीले थे बनी बक़्र और बनी खुजाआ । बनी बक्र ने कुफ्फार कुरैश से और बनी खुजाआने हुजूरे अकरम से आपसी मदद का मुआहिदा कर लिया । इन दो कबीलों में अरों दराज से अदावत थी इसलिए कबीलए बनी बक्र ने बनी खुजाआ का कत्ले आम किया और कुरैश ने भी उनका साथ दिया । इस हादसे के बाद बनी खुजाआ के चालीस आदमी जो हुजूर के हलीफ बन चुके थे आपकी बारगाह में हाजिर हुए और अपने ऊपर कुफ्फारे कुरैश के जुल्म करने का जिक्र ब्यान क्या बनी खुजाआ पर हमला करना गोया सरकार पर हमला करने के बराबर था इसीलिए हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बनी खुजाआ का साथ दिया और तलवार उठानी पड़ी ।*_
_*📝सवाल न . 184 - फतह मक्का के बाद हजरत अबू सुफियान क्या सोच रहे थे कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके सीने पर हाथ मारा ?*_
_*✍🏻जवाब - अबू सुफयान ने दिल में कहा कि काश मैं फौज जमा करके दुबारा इनसे जंग करता जब हुजूर ने हाथ मारकर इरशाद फरमाया कि अगर तू ऐसा करेगा तो अल्लाह तआला तुझे जलील करेगा । दूसरी रिवायत यह है कि अबू सुफयान ने सोचा कि कौन सी ताकत इनके पास है जो ये हमेशा गालिब रहते हैं तब हुजूर ने सीने पर हाथ मारकर इरशाद फरमाया कि हम खुदा की ताकत गालिब हो जाते हैं ।*_
_*📍नोट : इस वाकिये से मालूम होता है कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इल्मे गैब जानते हैं और लोगों के दिलों के हालात भी अल्लाह की अता से जान लिया करते हैं ।*_
_*📮जारी रहेगा इन्शाअल्लाह.....*_
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