_*आसमानी किताबें हिस्सा - 11*_
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_*कुछ बुतों के नाम क़ुर्आन में मज़कूर हैं..!*_
_*01. वुद*_
_*02. सुवा*_
_*03. यग़ूस*_
_*04. यऊक़*_
_*05. नस्र*_
_*06. लात*_
_*07. उज़्ज़ा*_
_*08. मन्नात*_
_*09. रज्ज़*_
_*10. ज़ब्त*_
_*11. ताग़ूत*_
_*12. रिशाद*_
_*13. बअल*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 181*_
_*इन शहरों का नाम भी क़ुर्आन में आया है..!*_
_*01. बका यानि मक्का*_
_*02. मदीना*_
_*03. बद्र*_
_*04. हुनैन*_
_*05. मिस्र*_
_*06. बाबुल*_
_*07. अलाईका*_
_*08. लईका*_
_*09. अर्रक़ीम*_
_*10. हिर्द*_
_*11. हजर*_
_*12. अलकहफ*_
_*13. जम'आ*_
_*14. नक़आ*_
_*15. सरीम*_
_*16. ज़जर*_
_*17. ताग़िया*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 182*_
_*कुछ पहाड़ों का भी ज़िक्र है..!*_
_*01. उहद*_
_*02. मशअरुल हराम*_
_*03. तूर*_
_*04. अहक़ाफ*_
_*05. जूदी*_
_*06. क़ाफ*_
_*07. तुवा*_
_*08. अलइरम*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 182*_
_*चार सय्यारों का नाम है..!*_
_*01. शम्स*_
_*02. क़मर*_
_*03. तारिक़*_
_*04. शोअरा*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 183*_
_*आखिरत के इन मकानों का तज़किरा है..!*_
_*01. फिरदौस*_
_*02. इल्लीन*_
_*03. कौसर*_
_*04. सलसबील*_
_*05. तस्नीम*_
_*06. सिज्जीन*_
_*07. सऊद*_
_*08. ग़ई*_
_*09. मोबिक*_
_*10. वैल*_
_*11. सईर*_
_*12. आसाम*_
_*13. सहाक़*_
_*14. सईल*_
_*15. फलक़*_
_*16. यहमूम*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 183*_
_*महीनो में सिर्फ रमज़ान का नाम आया है*_
_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 217*_
_*सूरह कहफ की शुरू की 10 आयतों को जो याद करेगा वो दज्जाल के फितनो से महफूज़ रहेगा,जो एक मर्तबा सूरह यासीन शरीफ पढ़ेगा उसे 10 मर्तबा क़ुर्आन पढ़ने का सवाब मिलेगा,जिस तरह सूरह इखलास तिहाई क़ुर्आन के बराबर है उसी तरह सूरह काफिरून चौथाई और सूरह ज़िलज़ाल निस्फ क़ुर्आन के बराबर है,सूरह तकासुर का पढ़ना 1000 आयतों का सवाब रखता है,क़ुर्आन को ज़बानी पढ़ना 1000 दर्जा रखता है तो देखकर पढ़ना 2000 दर्जों के बराबर है*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 292*_
_*जो क़ुर्आन सही पढ़ता हो मगर उसकी ज़बान आसानी से ना चलती हो यानि रुक रुककर पढ़ता है तो उसे दोगुना सवाब है*_
_*📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 184*_
_*नमाज़ मे क़ुर्आन पढ़ना ग़ैर नमाज़ में क़ुर्आन पढ़ने से अफज़ल है*_
_*📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 188*_
_*हदीस में है कि दिलों मे भी जंग लगता है उसे दूर करो मौत को याद करने और क़ुर्आन की तिलावत करने से*_
_*📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 189*_
_*जब गुस्ल फर्ज़ हो उस वक़्त ज़बान से भी क़ुर्आन पढ़ना हराम है और बिना वुज़ू के क़ुर्आन को छूना या क़ुर्आन की कोई भी आयत कहीं भी लिखी हो उसे छूना हराम है*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 294*_
_*किसी ने महज़ खैरो बरकत के लिये घर मे क़ुर्आन रखा है पढ़ता नही़ है तो इस पर कोई गुनाह नहीं है बल्कि उसकी नियत पर उसे सवाब मिलेगा*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 295*_
_*लेटकर क़ुर्आन पढ़ने मे हर्ज़ नहीं मगर पैर सिमटे और और मुंह खुला होना चाहिये*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 296*_
_*क़ुर्आन पढ़ने के दौरान कहीं जाते वक़्त क़ुर्आन बंद कर देना अदब है मगर ये सोचना कि खोलकर जायेंगे तो शैतान पढ़ेगा ये ग़लत और बे अस्ल है*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 296*_
_*एक मजमे मे कई लोग बुलन्द आवाज़ से क़ुर्आन पढ़ें ये हराम है,सबको आहिस्ता पढ़ना चाहिये मगर इत्ना कि कोई शोर ना हो तो खुद सुन सके अगर युं पढ़ा कि सिर्फ होंठ हिला और आवाज़ बिल्कुल ना निकली तो ऐसे पढ़ने से ना तिलावत होगी और ना नमाज़*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 296*_
_*क़ुर्आन मे जो कुछ है सब हक़ है मगर उसकी बाअज़ आयतें मोहकम है यानि हमारी समझ में आती है और बाअज़ मुताशाबा है जिनका पूरा मतलब अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के सिवा कोई नहीं जानता,लिहाज़ा उसको समझने की जुस्तुजू ना करें कि इसी में ईमान की सलामती है*_
_*📕 मसाएलुल क़ुर्आन,सफह 299*_
_*आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का तर्जुमा किया हुआ क़ुर्आन मजीद कन्ज़ुल ईमान के नाम से उर्दु हिन्दी व इंग्लिश मे मौजूद है जो तर्जुमे के लिहाज़ से सब से ज़्यादा सही है,इसका मुताअला किया जाये*_
_*खत्म......*_
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