Sunday, August 26, 2018



        _*इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*_
                           _*हिस्सा- 3*_
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_*04). वहाबी कहता है कि जब उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा पर तोहमत लगायी गयी तो हुज़ूर ﷺ 1 महीने तक खामोश क्यों रहे और परेशानी में मुब्तेला क्यों हुए अगर उन्हें ग़ैब होता तो उनकी बरा'अत ज़ाहिर फरमाते*_

_*04). वाक़िया ये है कि एक गज़वे से वापसी के वक़्त हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक जगह ठहरे, उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा भी आपके साथ थी और ऊंट पर हौदज में सवार थीं,हौदज को ऊंट पर रखने और उतारने के लिए कुछ आदमी मखसूस थे पड़ाव पर उन्होंने हौदज को नीचे उतार दिया, आप रफए हाजत को तशरीफ ले गयीं मगर वापसी में आपका गले का हार टूटकर कहीं गिर गया और आप उसे तलाश करने में लग गयीं और आपको देर हो गयी, चूंकि उस वक़्त औरतें बहुत हल्की फुल्की हुआ करती थीं तो हौदज उठाने वालो को वजन का एहसास नहीं हुआ औए उन्होंने खाली हौदज उठाकर ऊंट पर रख दिया और सब चले गए, इधर जब उम्मुल मोमेनीन वापस आईं तो वहां किसी को ना पाया सख्त परेशान हुईं मगर ये सोचकर वहीं ठहर गयीं कि जब मुझे लोग हौदज में नहीं पाएंगे तो वापस यहीं आएंगे आप वहीं लेटी और सो गयीं, एक सहाबी हज़रत सफवान बिन मुअत्तल सलमी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ये काम था कि आप काफिले से कुछ पीछे चला करते थे कि जिसकी जो भी चीज़ छूट गयी हो आप उसे उठा लिया करें, आप जब उस मक़ाम पर पहुंचे तो उम्मुल मोमेनीन को देखा चूंकि आप परदे की आयत नाज़िल होने से पहले उनको देख चुके थे सो पहचान लिया फौरन आपने "इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन" पढ़ा आपकी आवाज़ से उम्मुल मोमेनीन उठ गयीं, आपने अपने ऊंट को बिठाकर उन्हें बिठा दिया और खुद महार थामकर पैदल चल पड़े और अगली मंज़िल पर काफिले में शामिल हो गए, मगर मुनाफिकों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबई को मौका मिल गया और उसने आप पर तोहमत लगाना शुरू कर दिया पर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक महीने तक खामोश रहे और अपनी तरफ से उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की बरा'अत ज़ाहिर ना फरमाई*_

_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 2, सफह 594*_

_*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की इसी खामोशी को वहाबी ग़ैब की नफी करार देता है कि अगर आपको ग़ैब होता तो आप उनकी बरा'अत ज़ाहिर फरमाते तो ये बात मैं पहले ही अर्ज़ कर चुका हूं कि किसी बात को ज़ाहिर ना करने का ये मतलब हरगिज़ नहीं हो सकता कि उसे उस बात का इल्म भी ना हो, आपकी खामोशी में क्या राज़ थे आईये देखते हैं*_

_*! हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अच्छी तरह जानते थे कि आपकी बीवी पाक दामन है लेकिन अगर वो ये बात कह भी देते कि मेरी बीवी पारसा है तो क्या वो मुनाफिक़ मान लेते वो तो यही कह देते कि आप उनके शौहर हैं इसलिए उनकी तरफदारी कर रहे हैं इसी लिए आपने वही का इंतज़ार किया वरना गौर कीजिये कि खुद मेंबर पर जाकर फरमा रहे हैं कि "खुदा की कसम मैं अपनी अहिल्या के बारे में अच्छाई के सिवा कुछ नहीं जानता" यानि मेंबर पर खड़े होकर भी ये ज़ाहिर फरमा दिया था कि वो पाक दामन हैं ये मैं जानता हूं फिर ये कहना कि आपको इल्म नहीं था सरासर आपके क़ौल को झुठलाना है*_

_*! फिर उसी मेंबर पर ये फरमाना कि "उस शख्स के मुक़ाबले में तुममें से कौन मेरी मदद करेगा जिसने मेरी बीवी पर तोहमत लगायी" ये इस बात की सराहत है कि आपको पूरा इल्म था कि आपकी ज़ौजा पाक दामन है वरना आपको ज़र्रा बराबर भी अगर शक होता तो कभी भी साहबा इकराम से मदद तलब ना फरमाते*_

_*! इस दरमियान जो आप परेशन हुए वो एक फितरी बात है कि किसी की भी बीवी पर कोई इल्ज़ाम लगायेगा तो उसका परेशान होना लाज़िमी है अगर चे वो अपनी बीवी को कितनी भी अच्छी तरह जानता व पहचानता हो*_

_*! रही बात उम्मुल मोमेनीन से पूछना तो ये भी एक फितरी अमल है कि अगर आप ऐसा ना करते तो जो लोग आप पर इलज़ाम लगा रहे थे वो तो यही कहते कि कम से कम एक बार अपनी बीवी से भी तो पूछ लेते सो ये पूछना महज़ एक खाना पूरी थी*_

_*! एक नुक्ता ये भी ज़हन में रखें कि आखीर तक हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमेनीन की बरा'अत लोगों में ज़ाहिर नहीं की बल्कि वही के आने के बाद ही सब कुछ साफ हुआ तो अर्ज़ करना ये है कि जब मौला ये जान रहा था कि मेरा महबूब उनकी बरा'अत ज़ाहिर ना करेगा जब तक कि मैं खुद उनकी बरा'अत ज़ाहिर ना करूं और हुआ भी ऐसा ही तो क्यों मौला ने पहले ही उनकी पाक दामनी का हुक्म सादिर ना फरमाया क्यों एक महीने के बाद वही भेजी क्या यहां वही सवाल खुदा की ज़ात पर भी नहीं आयद हो रहा है कि क्या उसे भी उम्मुल मोमेनीन की पाक दामिनी पर शक था या इस दौरान खुदा को भी ग़ैब का इल्म नहीं था, यक़ीनन यक़ीनन था तो फिर इंतज़ार क्यों करवाया इसमें हिकमत ये थी क़यामत तक के लिए औरतों पर ज़िना की तोहमत लगाने वालों के लिए सज़ाओं का नुज़ूल हुआ, जो कि औरतों के लिए बरक़त है वरना ज़रा ज़रा सी बात पर इल्ज़ाम तराशी होती फिर उम्मुल मोमेनीन ने जो सब्र किया उस पर किस क़द्र अज्र मिला ये तो मौला ही जानता है*_

_*📕 उम्महातुल मोमेनीन,सफह 40--51*_

_*अब इस बारे में सहाबा इकराम रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन की कुछ गवाहियां भी पढ़ लें, याद रहे कि मशवरा करने से ये मुराद नहीं है कि आपको माज़ अल्लाह अपनी बीवी पर कोई शक था बल्कि सिर्फ इस बारे में उनका ख्याल क्या है ये पता चल सके*_

_*! हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जब खुदा को ये गवारा नहीं है कि आपके जिस्म पर नापाक मक्खी तक को बैठने दे तो वो ऐसी बुराई वाली औरत को कब आपकी ज़ौजियत में देगा मतलब ये कि वो पाक हैं*_

_*! हज़रते उसमान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिसने आपके साये तक को ज़मीन पर पड़ने नहीं दिया वो माबूदे बरहक़ कब ये गवारा करेगा कि आपकी बीवी में ऐसी खराबी मौजूद हो*_

_*! हज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक मर्तबा आपकी नालैन में कीचड़ लग गयी थी तो इतनी सी बात पर मौला ने जिब्रीले अमीन को भेजकर ये खबर दी कि आप नालैन उतार दें तो या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जब खुदा को ये गवारा नहीं है कि आप नजासत वाली नालैन तक पहनें तो अगर आपकी बीवी में कोई खराबी होती तो वो फौरन आपको वही के ज़रिये इत्तेला करता*_

_*📕 मदारिकालुत तंज़ील, जिल्द 2, सफह 135*_

_*! हज़रते उसामा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हम आपकी बीवी में सिवाए अच्छाई के कुछ नहीं जानते*_

_*! हज़रते बरीरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा जो कि उम्मुल मोमेनीन की खादिमा थीं वो फरमाती हैं कि खुदा की कसम मैंने उनमें कोई ऐब नहीं देखा सिवाए इसके कि वो कमसिनी में आटा गूंधकर सो जाती हैं और बकरी आकर खा जाती है*_

_*! उम्मुल मोमेनीन सय्यदना ज़ैनब बिन्त हजश रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि खुदा की कसम मैं बीबी आयशा को सिवाए अच्छाई के कुछ नहीं जानती हूं*_

_*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2, सफह 596*_

_*! खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मुनाफिकों ने जिस मर्द का नाम लिया है यानि हज़रत सफवान बिन मुअत्तल सलमी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मैं बिलकुल उसे अच्छा ही जानता हूं*_

_*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2, सफह 595*_

_*इन सब बातों से साबित होता है कि हुज़ूर को ज़र्रा बराबर भी उम्मुल मोमेनीन की पाक दामिनी पर शक नहीं था बल्कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की खामोशी की वजह सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ ये थी कि खुदा वही के ज़रिये उनकी बरा'अत ज़ाहिर फरमाये और फिर वो दिन आया कि 1 नहीं 2 नहीं 3 नहीं बल्कि सूरह नूर में 18 आयतें आपकी पाक दामिनी पर नाज़िल हुई और क़ुरान ने खुद उनकी अज़मत का परचम बुलंद कर दिया कि क़यामत तक के लिए लोगों का मुंह बंद हो गया, शारेह बुख़ारी अल्लामा किरमानी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि उम्मुल मोमेनीन की पाक दामिनी ऐसी क़तई व यक़ीनी है कि जो ज़र्रा बराबर इसमें शक करे काफिर है*_

_*📕 हाशिया बुखारी,जिल्द 2 , सफह 595*_

_*और फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मस्जिदे नब्वी में खुत्बा दिया और सूरह नूर की आयतें पढ़ी और उम्मुल मोमेनीन पर इलज़ाम लगाने वालो में जो लोग शामिल थे जिनमें हज़रते हस्सान इब्ने साबित हज़रते मिसतह बिन उसासा हज़रते हमना बिन्त जहश व मुनाफिक अब्दुल्लाह बिन उबई को हद्दे क़ज़्फ में 80 कोड़े मारे गए*_

_*📕 मदारेजन नुबूवत,जिल्द 2, सफह 163*_

_*आखिरी बात अगर फिर भी कुछ अक़्ल के कोढ़ियों को हुज़ूर ग़ैब दां नहीं नज़र आते तो बुखारी शरीफ कि इन 40 हदीसों पर क्या कहेंगे जो कि खास इल्मे ग़ैब के तअल्लुक़ से हैं, हर बात में बुखारी बुखारी चिल्लाने वाले कम से कम बुखारी की ही मान लें, उर्दू PDF बुक के लिये लिंक पर जायें, 👇🏻*_
zebnews.weebly.com

_*जारी रहेगा......*_
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