Sunday, August 26, 2018



                    _*फातिहा का सुबूत*_
―――――――――――――――――――――

_*ⓩ पोस्ट बड़ी है 2 पार्ट में भेजने लायक थी मगर चुंकि बहुत सारे लोग मैसेज शेयर करते हैं और ये मौज़ू ऐसा है कि बात एक ही बार में पूरी हो जानी चाहिये ताकि समझ में आये और सबके पास पहुंच जाये इसलिए 1 ही पार्ट में कम्पलीट करके भेज रहा हूं, बस पढ़ लीजियेगा*_

_*क़ुर्आन*_

_*कंज़ुल ईमान - और जो खर्च करते हैं उसे अल्लाह की नजदीकियों और रसूल से दुआयें लेने का ज़रिया समझें*_

_*📕 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 99*_

_*ⓩ तफसीर खज़ायेनुल इरफान में है कि यही फातिहा की अस्ल है कि सदक़ा देने के साथ खुदा से मग़फिरत की उम्मीद करें, अब क़ुर्आन की ये तीन आयतें देखिये*_

_*कंज़ुल ईमान - और हम क़ुर्आन में उतारते हैं वो चीज़ जो ईमान वालों के लिए शिफा और रहमत है*_

_*📕 पारा 15, सूरह बनी इस्राईल, आयत 82*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालों खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीज़ें*_

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 172*_

_*कंज़ुल ईमान - ऐ हमारे रब हमें बख्श दे और हमारे उन भाईयों को भी जो हमसे पहले ईमान ला चुके*_

_*📕 पारा 28, सूरह हश्र, आयत 10*_

_*ⓩ मतलब क़ुर्आन पढ़ना जायज़ हर हलाल खाना जायज़ दुआये मग़फिरत करना जायज़ और इन सबको एक साथ कर लिया जो कि फातिहा में होता है तो हराम और शिर्क,वाह रे वहाबियों का दीन*_

_*हदीस*_

_*हदीस - सहाबिये रसूल हज़रत सअद की मां का इंतेक़ाल हो गया तो आप नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचे और पूछा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां मर गई तो कौन सा सदक़ा उनके लिए अफज़ल है तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पानी, इस पर हज़रते सअद ने एक कुंआ खुदवाया और कहा कि ये उम्मे सअद के लिए है*_

_*📕 अबु दाऊद, जिल्द 1, सफह 266*_

_*हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से, एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था, फिर आपने एक तर शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाखें तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी*_

_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 34*_

_*ⓩ इससे कई बातें साबित हुई पहली तो ये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ग़ैब दां हैं जब ही तो क़ब्र के अन्दर का अज़ाब देख लिया और दूसरी ये कि जब शाख क़ब्र पर रखी जा सकती है तो फूल भी उसी किस्म से है लिहाज़ा कब्र पर फूल डालना भी साबित हुआ और तीसरी ये कि जब तर शाख की तस्बीह से अज़ाब में कमी हो सकती है तो फिर मुसलमान अगर अपने मरहूम के ईसाले सवाब के लिए क़ुर्आन पढ़कर बख्शे तो क्योंकर मुर्दों पर से अज़ाब ना हटेगा और चौथी ये भी कि चुगली करना और पेशाब की छींटों से ना बचना अज़ाबे क़ब्र का बाईस बन सकता है लिहाज़ा इनसे बचें*_

_*हदीस - एक शख्श नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और उसने कुछ वसीयत ना की अगर मैं उसकी तरफ से कुछ सदक़ा करूं तो क्या उसे सवाब पहुंचेगा फरमाया कि हां*_

_*📕 बुखारी, किताबुल विसाया, हदीस नं0 2756*_

_*हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हर साल दो बकरे क़ुर्बानी किया करते जो कि चितकबरे और खस्सी हुआ करते थे एक अपने नाम से और एक अपनी उम्मत के नाम से*_

_*📕 बहारे शरियत, हिस्सा 15, सफह 130*_

_*ⓩ अब इस रिवायत से क्या क्या मसले हल हुए ये भी समझ लीजिये पहला ये कि अगर सवाब नहीं पहुंचता तो नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम क्यों अपनी उम्मत के नाम से बकरा ज़बह कर रहे हैं दूसरा ये कि जो लोग ग्यारहवीं शरीफ के जानवर को हराम कहते हैं कि ग़ैर की तरफ मंसूब हो गया तो फिर क़ुर्बानी भी ना करनी चाहिये कि वहां भी हर आदमी अपने या अपने अज़ीज़ों के नाम से ही क़ुर्बानी करता है और तीसरा ये भी कि क़ुर्बानी के लिए नबी सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिन बकरों को काटा वो खस्सी थे ये भी याद रखें*_

_*हदीस - जंगे तबूक के मौके पर जब खाना कम पड़ गया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिसके पास जो था सब मंगवाकर अपने सामने रखा और दुआ फरमाई तो खाने में खूब बरकत हुई*_

_*📕 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 538*_

_*ⓩ वहां कुंआ भी सामने ही मौजूद था और यहां खाना भी और दोनों जगह दुआ की गई मगर ना तो कुंअे का पानी ही हराम हुआ और ना ही खाना*_

_*फिक़ह*_

_*रिवायत - हज़रते इमाम याफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी किताब क़ुर्रतुल नाज़िर में लिखते हैं कि एक मर्तबा सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 11 तारीख को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़्र पेश की, जिसको बारगाहे नब्वी से क़ुबूलियत की सनद मिल गई फिर तो सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने की 11 तारीख को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में नज़राना पेश करने लगे, चुंकि आपका नज़्रों नियाज़ का मामूल हमेशा का था सो मुसलमानो ने इसे आपकी तरफ़ ही मंसूब कर दिया जिसे ग्यारहवीं शरीफ कहा जाने लगा, खुद सरकार ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का फरमान है कि मैंने कितनी ही इबादात और मुजाहिदात किये मगर जो अज्र मैंने भूखों को खाना खिलाने में पाया उतना किसी अमल से ना पाया काश कि मैं सारी ज़िन्दगी सिर्फ लोगों को खाना खिलाने में ही सर्फ कर देता*_

_*📕 हमारे ग़ौसे आज़म, सफह 282*_

_*ⓩ क्या ये दलील कम है कि खुद हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हर महीने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की नज़्र यानि फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करते थे,और आपके बाद भी पिछले 800 साल से ज़्यादा के बुज़ुर्गाने दीन और उल्माये किराम का अमल इसी पर रहा है सिवाए मुट्ठी भर वहाबियों को छोड़कर, और ज़रूरत पड़ने पर खुद उनके यहां भी फातिहा होती है जैसा कि अब मैं उनकी किताबों से ही दलील देता हूं*_

_*वहाबियों की किताब 👇🏻*_

_*(इस्माईल देहलवी ने लिखा) पस जो इबादत कि मुसलमान से अदा हो और इसका सवाब किसी फौत शुदा की रूह को पहुंचाये तो ये बहुत ही बेहतर और मुस्तहसन तरीक़ा है.....और आमवात की फातिहों और उर्सों और नज़रो नियाज़ से इस काम की खूबी में कोई शक व शुबह नहीं*_

_*📕 सिराते मुस्तक़ीम सफह 93*_

_*ⓩ वाह वाह,एक तरफ तो लिख रहे हैं कि फातिहा अच्छी चीज़ है और दूसरी तरफ हराम और शिर्क का फतवा भी, इन वहाबियों की अक़्ल पर पत्थर पड़ गये हैं*_

_*(क़ासिम नानोतवी ने लिखा) हज़रत जुनैद बग़दादी रहमतुल्लाह अलैहि के किसी मुरीद का रंग यकायक बदल गया आपने सबब पूछा तो कहने लगा कि मेरी मां का इंतेक़ाल हो गया है और मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जहन्नम की तरफ लिए जा रहे हैं तो हज़रत जुनैद के पास 1 लाख या 75000 कल्मा तय्यबह पढ़ा हुआ था आपने दिल ही दिल में उसकी मां को बख्श दिया फिर क्या देखते हैं कि वो जवान खुश हो गया फिर आपने पूछा कि अब क्या हुआ तो वो कहता है कि अब मैं देखता हूं कि फरिश्ते मेरी मां को जन्नत की तरफ लिए जा रहे हैं तो हज़रत फरमाते हैं कि आज दो बातें साबित हो गई पहली तो इसके मुक़ाशिफा की इस हदीस से और दूसरी इस हदीस की सेहत इसके मुक़ाशिफा से*_

_*📕 तहज़ीरुन्नास, सफह 59*_

_*ⓩ ये रिवायत बिलकुल सही व दुरुस्त है मगर सवाल ये है कि ईसाले सवाब की ये रिवायत इन वहाबियों ने अपनी किताब में क्यों लिखी, क्या उनके नज़दीक भी ईसाले सवाब पहुंचता है और अगर पहुंचता है जैसा कि खुद लिखते हैं अभी आगे आता है तो फिर मुसलमानों पर इतना ज़ुल्म क्यों, क्यों जब कोई सुन्नी फातिहा ख्वानी का एहतेमाम करता है तो उस पर हराम और शिर्क का फतवा लगाया जाता है*_

_*(रशीद अहमद गंगोही ने लिखा) एक बार इरशाद फरमाया कि इक रोज़ मैंने शेख अब्दुल क़ुद्दूस के ईसाले सवाब के लिए खाना पकवाया था*_

_*📕 तज़किरातुर रशीद, जिल्द 2, सफह 417*_

_*(दूसरी जगह रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं) खाना तारीखे मुअय्यन पर खिलाना बिदअत है मगर सवाब पहुंचेगा*_

_*📕 फतावा रशीदिया, जिल्द 1, सफह 88*_

_*ⓩ वाह वाह, बहुत खूब, खुद खाना पकवाकर सवाब बख्शा तो शिर्क नहीं हुआ और हम करें तो हराम बिदअत शिर्क, इन वहाबियों के नज़दीक हर बिदअत गुमराही है और जहन्नम में ले जाने वाली है मगर फिर भी बिदअत पर सवाब पहुंचवा रहे हैं, इन वहाबियों के गुरू घंटाल इमामों के ईमान का जनाज़ा तो पहले ही उठ चुका है मगर जो बद अक़ीदह अभी जिंदा हैं उनके लिए तौबा का दरवाज़ा खुला है लिहाज़ा वहाबियों ऐसी दोगली पालिसी से तौबा करो और अहले सुन्नत व जमात के सच्चे मज़हब पर कायम हो जाओ इसी में ईमान की आफियतो भलाई है*_
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

No comments:

Post a Comment

Al Waziftul Karima 👇🏻👇🏻👇🏻 https://drive.google.com/file/d/1NeA-5FJcBIAjXdTqQB143zIWBbiNDy_e/view?usp=drivesdk 100 Waliye ke wazai...