_*फातिहा का तरीक़ा*_
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_*ⓩ अपनी की गई इबादत का सवाब अपने मरहूम की रूह को पहुंचाना ही फातिहा है और किसी बुज़ुर्गाने दीन की बारगाह में उसी सवाब को भेजना नज़रों नियाज़ कहलाता है लेकिन अगर कोई बुज़ुर्गाने दीन की नज़र को फातिहा भी कह दे तो ये कोई नाजायज़ो हराम नहीं है, फातिहा में अपने किये हुए तमाम अमल का सवाब बख्श सकता है मसलन नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात, तिलावत, वज़ायफ, सदका खैरात गर्ज़ कि कुछ भी नेक काम का सवाब किसी को भी पहुंचाया जा सकता है, वैसे तो बेहतर है कि फातिहा आलिम उल्मा व हाफिज़ हज़रात ही करें क्योंकि अव्वल तो वो अवाम से हर हाल में बेहतर हैं और दूसरे युं भी कि उनका पढ़ा हुआ सही होता है, सही होने से मुराद यहां हुरूफ के मखरज की अदायगी है क्योंकि जो भी पढ़ा जाये अगर वो सही ना हुआ तो सवाब की बजाये गुनाह बल्कि माज़ अल्लाह हराम और कुफ्र तक हो सकता है, मिसाल के तौर पर ये मसला समझ लीजिये*_
*ا ع . ح ه . ث س ص ش .غ. ق ك . ز ذ ظ . د ض*
_*ये वो हुरूफ हैं जिन्हें अगर सही से अदा ना किया जाये तो बजाये फायदे के नुकसान उठाना पड़ सकता है जैसे कि इस्म يا بدوح जो कि कशाइश रिज़्क़ व हुसूले बरकत के लिए पढ़ा जाता है अब इसमें बड़ी ح है अब इसको अगर छोटी ه से यानि يا بدوه पढ़ दें तो जिस जगह पढ़ा जायेगा वो जगह वीरान हो जायेगी घर में आग लग जायेगी आबादी बर्बादी में तब्दील हो जायेगी*_
_*📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा, सफह 555*_
_*ⓩ इस एक मसले से आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि नमाज़ पढ़ने तिलावत करने या किसी वज़ायफ की अदायगी में मखरज का कितना अहम किरदार है क्योंकि अगर सही ही नहीं पढ़ा गया तो ना नमाज़ होगी ना तिलावत और ना किसी वज़ीफे का फायदा मिलेगा, तो इन सबका सबसे बेहतरीन इलाज तो यही है कि फौरन इतना इल्मे दीन हासिल किया जाये कि कम से कम अपनी नमाज़ रोज़ा व दीगर इबादत तो बचा सकें, खैर फातिहा मर्द व औरत में कोई भी दे सकता है और पढ़ने में जो आयतें या सूरतें या वज़ीफा सही पढ़ सकता हो वो पढ़ लिए जायें और उनका सवाब बख्शा जाए, यहां पर मैं वो तरीका लिख रहा हूं जो मेरे आलाहज़रत के खानदान में मशहूर है*_
_*दुरुदे ग़ौसिया 7 बार*_
_*सूरह फातिहा 1 बार*_
_*आयतल कुर्सी 1 बार*_
_*सूरह इख्लास 7 बार*_
_*फिर दुरुदे ग़ौसिया 3 बार*_
_*ⓩ और जो लोग सही अदायगी से ना पढ़ पायें तो ऐसी कच्ची ज़बान वाले 100 बार 200 बार 500 बार गर्ज़ जितना भी दिल लगाकर पढ़ सकें वो या करीमु या अल्लाहु पढ़ लें कि इस वज़ीफे में ज़्यादा अदायगी की ज़रूरत नहीं, अब हाथ उठाकर बिस्मिल्लाह शरीफ और दुरुदे पाक शरीफ पढ़ें उसके बाद इस तरह बख्शें और युं कहें कि*_
_*या रब्बे करीम जो कुछ भी मैंने ज़िक्रो अज़कार दुरुदो तिलावत की (या जो कुछ भी नज़रों नियाज़ पेश है) इनमे जो भी कमियां रह गई हों उन्हें अपने हबीब ﷺ के सदक़े में माफ फरमा कर क़ुबूल फरमा, मौला इन तमाम पर अपने करम के हिसाब से अज्रो सवाब अता फरमा, इस सवाब को सबसे पहले मेरे आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचा, उनके सदक़े व तुफैल से तमाम अम्बियाये किराम, सहाबाये किराम, अहले बैते किराम, औलियाये किराम, शोहदाये किराम, सालेहीने किराम खुसूसन हुज़ूर सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा, इन तमाम के सदक़े तुफैल से इसका सवाब तमाम सलासिल के पीराने ओज़ाम खुसूसन हिंदल वली हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा, बिलखुसूस सिलसिला आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़विया नूरिया के जितने भी मशायखे किराम हैं खुसूसन आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा, मौला तमाम के सदक़े व तुफैल से इन तमाम का सवाब खुसूसन को पहुंचाकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक व क़यामत तक जितने भी मोमेनीन मोमिनात गुज़र चुके या गुज़रते जायेंगे उन तमाम की रूहे पाक को पहुंचा" फिर अपनी जायज़ दुआयें करके दुरुदे पाक और कल्मा शरीफ पढ़कर चेहरे पर हाथ फेरें*_
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