_*इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*_
_*हिस्सा- 4*_
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_*05). वहाबी कहता है कि हुज़ूर ﷺ एक निकाह में तशरीफ ले गए वहां कुछ बच्चियां ये शेअर पढ़ रही थीं कि "ये वो नबी हैं जो कल की बात जानते हैं" तो आपने उन्हें मना फरमा दिया कि ऐसा ना कहो, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें मना ना फरमाते*_
_*05). सबसे पहली बात तो ये है कि बच्चियां किसी का लिखा हुआ शेअर पढ़ रही थीं ना कि उन्होंने वो शेअर खुद लिखा था, सवाल ये है कि ऐसा शेअर जिसमे ये कहा गया हो कि "ये वो नबी हैं जो कल की बात जानते हैं" क्या कोई काफिर या मुनाफिक लिखेगा, हरगिज़ नहीं,तो यक़ीनन किसी सहाबी ने ही लिखा होगा तो अब ये बताया जाये कि जिस सहाबी का ये अक़ीदा हो कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ग़ैब जानते हैं उन पर क्या हुक्म लगेगा, फिर हैरत की बात तो ये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने ना तो शेअर की मज़म्मत की और ना ही शेअर बनाने वाले को बुरा कहा सिर्फ उन बच्चियों को मना फरमाया, क्यों, इसकी 4 वजहें हैं मुलाहज़ा फरमाइये*_
_*01). बतौर इनकिसारन आपने मना फरमाया इसको युं समझिए कि कोई हमारे ही सामने हमारी तारीफ करना शुरू कर दे तो हम क्या करेंगे ज़ाहिर सी बात है कि उससे कहेंगे "अरे हुज़ूर ये सब छोड़िये वही बात करिये जो कर रहे थे" तो यहां भी हुज़ूर ने इंकिसार में ही फरमाया*_
_*02). वो लड़कियां डफ बजा रहीं थीं जिसमें उन्होंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को देखते ही ये शेअर पढ़ना शुरू कर दिया इसलिए भी आपने मना फरमाया कि नात के अशआर पढ़ने के लिए अदब की ज़रूरत है ना कि खेल कूद में उसे पढ़ा जाये*_
_*03). फिर उन लड़कियों ने मर्सिया के अशआर में मिलाकर ये शेअर पढ़ा था इसलिए भी आपने मना फरमाया कि ये मुनासिब नहीं*_
_*04). मिरकात व अशअतुल लमआत में यही मौजूद है कि इल्मे गैब खुदा के सिवा कोई नहीं जानता और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम वो ही जानते हैं जो उन्हें खुदा ने बताया, इसलिए भी आपने ग़ैब की निस्बत अपनी तरफ करने को ना पसन्द फरमाया*_
_*📕 जाअल हक़,सफह 115*_
_*और अगर ये तशरीह सही नहीं है तो आंख के अंधे इन हदीसों के बारे में क्या कहेंगे*_
_*हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हमारे दरमियान खड़े हुए और मखलूक़ की पैदाइश से लेकर जन्नतियों के जन्नत में और दोज़खियों के दोज़ख में जाने तक की तमाम खबर हमको दे डाली, तो जिसने इसे याद रखा उसे याद रहा और जो भूल गया सो भूल गया*_
_*📕 बुखारी,हदीस 2913*_
_*📕 मुस्लिम,जिल्द 3, हदीस 7158*_
_*हज़रत हुज़ैफा बिन यमान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि दुनिया के खातमे तक जितने फितनो के क़ायदीन होंगे जिनकी तादाद 300 या उससे ज़ायद होगी उन सब फितनो के अलमबरदारो के नाम उनके बापों के नाम और कबीलों के साथ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हमको खबर दे चुके हैं*_
_*📕 अबु दाऊद,जिल्द 2, सफह 231*_
_*तो जो नबी क़यामत तक के सारे हालात से वाकिफ हैं जो ये भी जानते हैं कि कौन जन्नत में जायेगा और कौन जहन्नम में तो उनका किसी को ये मना फरमाना कि मुझको "ग़ैब दां" ना कहो तो ये मस्लेहत के तहत ही होगा और वो मस्लेहत क्या थी ये मैं ऊपर बयान कर चुका*_
_*जारी रहेगा.....*_
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