_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 4*_
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_*एक दिन आप ने समुन्दर के किनारे एक मरे हुए शख्स को देखा जिसकी लाश को मछलियां खा रही थीं फिर कुछ देर बाद उसी लाश पर कुछ परिंदे भी आ गए और उन्होंने भी उस लाश को खाना शुरू कर दिया फिर कुछ जंगली जानवर आये और उन्होंने भी कुछ खाया, जब आपने ये मंज़र देखा तो आपके दिल में ये शौक़ पैदा हुआ कि मैं अपनी आंख से देखना चाहता हूं कि मौला तआला किस तरह मुर्दो को ज़िन्दा फरमाएगा और आपने बारगाहे खुदावन्दी में अपनी आरज़ू पेश कर दी, ख्याल रहे कि आपको खुदा की कुदरत पर शक नहीं था क्योंकि आपने काफिरो से खुदा की यही सिफत बयान की थी "कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है" अगर आपको इस बात में शक होता तो हरगिज़ आप ऐसा नहीं कहते बल्कि सिर्फ अपनी आंखों से रब की कुदरत का मुशाहद करना चाहते थे, और ये भी ख्याल रहे कि अगर आपको इस बात में शक होता तो यक़ीनन आप पर खुदा का इताब होता मगर हरगिज़ ऐसा नहीं हुआ बल्कि मौला फरमाता है "ऐ खलील तुम 4 परिंदो को मिलाकर अलग अलग पहाड़ो पर रख दो फिर उनको बुलाओ तो वो तुम्हारे पास दौड़ते हुए आयेंगे" हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर-कबूतर-मुर्ग-कव्वा इन चारों को कीमा बनाकर सबको एक साथ मिला दिया फिर उन सब में से 4 हिस्से करके 4 अलग अलग पहाड़ियों पर रख दिए और सबका सर अपने पास रख लिया, अब जिस परिन्दे को आप आवाज़ देते तो उसके पूरे अज्ज़ा चारो पहाड़ियों में से उड़ते हुए आते आपकी आंखों के सामने सब इकठ्ठा होता आप उस पर जैसे ही सर का टुकड़ा लगते वो ज़िंदा होकर उड़ जाता*_
_*📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 66*_
_*मौला की क़ुदरत की बात चली तो ये रिवायत भी ज़हन में आ गयी पढ़ लीजिए, बुखारी व मुस्लिम शरीफ में है कि एक शख्स बहुत ही गुनाहगार था जब वो मरने लगा तो अपनी औलाद को वसीयत की कि मेरे मरने के बाद मुझे दफ्न ना करना बल्कि जला देना और मेरी राख के 2 हिस्से करना एक हिस्से को हवाओं में उड़ा देना और दूसरे हिस्से को पानी में बहा देना, उसकी औलाद ने ऐसा ही किया मौला ने हवा को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो और पानी को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो तो दोनों ने ऐसा ही किया,जब उसके जिस्म के दो हिस्से बन गए तो मौला ने दोनों के मिलाकर उसमें रूह लौटाई और फरमाया कि तेरी ऐसी वसीयत करने की क्या वजह थी हालांकि वो सब जानता है, तो बन्दा अर्ज़ करता है कि मौला मैं बहुत ही गुनहगार था मुझे यही खौफ था कि अगर मुझे अज़ाब दिया गया तो दुनिया का सबसे ज़्यादा अज़ाब मुझ पर होगा तो तेरे इसी खौफ से मैंने ऐसा फैसला किया तो मौला फरमाता है कि तेरे इसी खौफ ने आज तुझे बचा लिया और वो बख्शा गया क्योंकि खुदा से डरना ही तो सारी इबादत की अस्ल है*_
_*📕 अहवाले बरज़ख,सफह 12*_
_*इंसान के रीढ़ की हड्डी में कुछ ऐसे महीन अज्ज़ा यानि कण होते हैं जो किसी दूरबीन से भी नहीं दिखाई देते और ना ही उसे मिट्टी गला सकती है और ना आग उसे जला सकती है, इंसान का पूरा बदन खत्म हो जाता है मगर ये अज्ज़ा क़यामत तक सही सलामत रहते हैं इसको अज्बुज़ ज़ंब कहते हैं, रोज़े क़यामत यही अज्बुज़ ज़ंब अपने पूरे जिस्म को इकठ्ठा करके फिर से उसी सूरतो हैबत पर खड़ा हो जायेगा*_
_*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1, सफह 28*_
_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिजरत करके अपनी दोनों बीवियों के साथ फिलिस्तीन में बस गए, वहां के लोगों ने आपकी खूब क़द्रो मंज़िलत की जब अल्लाह ने आपको खूब मालो दौलत से नवाज़ दिया तो आपका इम्तिहान लिया और आपकी ज़ौजा हज़रते हाजिरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा व मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हरम की ज़मीन पर छोड़ने का हुक्म दिया, उस वक़्त वहां पर ना तो काबा था न ज़मज़म न हरियाली और न कोई इंसान, बियाबान रेगिस्तान था जहां कोसो दूर तक कोई नहीं दिखता था, आपने एक थैले में कुछ खजूरें और एक पानी का मशकीज़ा देकर उन्हें छोड़कर जाने लगे तो हज़रत बीबी हाजिरा आपके पीछे पीछे आती रहीं और यही पूछती थीं कि हमें यहां किसके भरोसे छोड़कर जाते हैं जब कोई जवाब नहीं मिला तो आप फरमातीं हैं कि क्या खुदा का यही हुक्म है इस पर आप फरमाते हैं कि हां तो आप वापस लौट जाती हैं, कुछ दिन तक तो वो खजूर और पानी साथ देते हैं फिर वो भी खत्म हो जाते हैं जब हज़रते हाजिरा का दूध बनना भी खत्म हो गया तो बच्चा भूख और प्यास से बिलबिलाने लगा, आप उसकी भूख और प्यास को बर्दाश्त ना कर सकीं तो क़रीब ही दो पहाड़ियां थी सफा और मरवा आप कभी सफा पर दौड़ कर जातीं कि कहीं से पानी दिख जाए जब कहीं कुछ ना दिखता फिर दौड़ कर मरवा पर जातीं कि शायद यहां से कुछ नज़र आ जाये इसी परेशानी के आलम में आपने सफा और मरवा के 7 चक्कर लगा लिए, अल्लाह को आपकी ये अदा इतनी पसंद आ गयी कि क़यामत तक के लिए उसे हाजियों का अरकान बना दिया, इधर जब प्यास से मासूम बच्चे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को परेशानी हुई तो वो अपनी एड़ियों को रगड़ने लगे अल्लाह की ऐसी क़ुदरत की जहां आपने अपनी एड़ियां रगड़ी वहां से पानी का चश्मा उबल पड़ा जब हज़रते हाजिरा वापस आईं तो देखा कि पानी पूरी वादी में फैल रहा है तो आपने अपनी ज़बान में जो कि सुरयानी थी पानी को फरमाया ज़म ज़म यानि ठहर जा तो पानी का निकलना बन्द हो गया, और पानी चश्मे में क़ैद हो गया हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अल्लाह हज़रत इस्माईल की वालिदा पर रहम करे अगर आप उसे ठहरने का हुक्म ना देतीं तो ज़म ज़म का चश्मा नहर की तरह जारी हो जाता, जब वहां पानी का इंतज़ाम हो गया तो परिंदे भी आने लगे और राह से गुज़रने वाले भी वहां रुकने लगे फिर क़बीले दर क़बीले उसी ज़मीन पर बसना शुरू हो गए, सबसे पहला जो क़बीला वहां बसा उसका नाम जरहम था इसी क़बीले की एक लड़की से हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का निकाह हुआ*_
_*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 103*_
_*जारी रहेगा.....*_
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