_*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिस्सा- 5*_
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_*हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब तक पैदा नहीं हुए थे तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम औलाद के लिए दुआ किया करते थे जब उनकी दुआ क़ुबूल हुई तो मौला फरमाता है कि "हमने उसे खुशखबरी सुनाई एक बुर्दबार लड़के की" चुंकि मौला ने उन्हें सब्र वाला फरमाया था सो उसकी मिसाल भी पेश करनी थी और दुनिया को दिखाना भी मक़सूद था, सो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ज़िल्हज्ज की 8,9,10 तारीख को लगातार ख्वाब में आपके बेटे की क़ुरबानी करने का हुक्म दिया गया, चुंकि ये हुक्म ख्वाब में देखा था तो 8 को पूरा दिन सोचने में गुज़र गया तो इस दिन को यौमुल तरविया यानि सोच विचार का दिन कहा गया फिर 9 को ख्वाब देखा तो पहचान लिया कि ये सच्चा ख्वाब है तो इसे यौमुल अरफा यानि पहचानने का दिन फिर 10 को इरादा कर लिया क़ुरबानी पेश करने का इस लिए इस दिन को यौमुन नहर यानि क़ुरबानी का दिन कहा गया*_
_*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2, सफह 296*_
_*क़ुरबानी के वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी इसमें 2 क़ौल है बाज़ ने 7 साल कही और बाज़ ने 13, मगर 13 ही राजेह है, 10वीं ज़िल्हज्ज को आप अपने बेटे को लेकर मिना की जानिब निकल पड़े पहले तो शैतान ने दोस्त बनकर उन दोनों को रोकना चाहा मगर जब कामयाब ना हो सका तो उनको रोकने के लिए इतना बड़ा बन गया कि पूरा रास्ता ही बन्द कर दिया, एक फरिश्ता हाज़िर हुआ और आपसे फरमाया कि इसे 7 कंकरियां मारिये ये दफअ होगा आपने उसे मारा तो भाग गया फिर दूसरी जगह आया तो फिर आपने उसे मारकर भगाया फिर तीसरी बार भी आया और मार खाकर भागा, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को बताया कि वो यहां उन्हें किस लिए लाये हैं और साबिर बेटे ने जवाब दिया कि "आप अपने रब का हुक्म अदा करें इन शा अल्लाह आप मुझे साबिर ही पायेंगे" और अपने बाप को मशवरा दिया कि मुझे रस्सी से बांध दीजिए ताकि मैं तड़पुं नहीं और अपने कपड़ो को भी मेरे खून से बचाइयेगा और मेरी वालिदा को मेरा सलाम कहियेगा, फिर आपने उन्हें पेशानी के बल लिटाया ये भी हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का मशवरा ही था कि कहीं आप मेरे चेहरे को देखकर मुहब्बते पिदरी में ना आ जाएं और उन्हें लिटाकर उन पर छुरी चला दी, रिवायत में आता है कि आपने 70 मर्तबा छुरी चलाई तो जब 70 मर्तबा भी चलने के बाद रग ना कटी तो आपने जलाल में आकर छुरी फेंक दी और कहा कि तू मेरा हुक्म क्यों नहीं मानती है तो छुरी बा ज़ुबान होकर बोलती है कि हुज़ूर आप गुस्सा ना करें आप काटने को कहते हैं और मेरा रब मुझे मना फरमाता है आप ही बतायें कि मैं क्या करूं तो आपने फरमाया कि तेरा काम काटना है तो तू काट तो छुरी बोलती है कि आग का काम भी तो जलाना होता है फिर क्यों आग ने आपको नहीं जलाया*_
_*📕 नुज़हतुल मजालिस,5,सफह 24*_
_*अल्लाह के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक मेंढा लाये जो हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का फिदिया बना और आपकी जगह वो ज़बह हुआ, इसका नाम जरीर था और ये वही मेंढा था जिसे हज़रत हाबील पहले ही राहे खुदा में क़ुर्बान कर चुके थे और ये जन्नत में मज़े से रह रहा था, ये मेंढा रूए ज़मीन का इकलौता ऐसा जानवर है जो अल्लाह के नाम पर 2 बार ज़बह हुआ, आपने इसके गोश्त को परिंदों को खिलाया क्योंकि इस पर आग असर ना करती थी कि पकाया जाता*_
_*📕 जलालैन,हाशिया 21,सफह 377*_
_*जब अरब में कुछ आबादी बस गई तो मौला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि इस्माईल को साथ लेकर काबा शरीफ की तामीर करें, आपने खुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ काबे की तामीर वहीं की जहां पहले ही काबे की बुनियाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम डाल चुके थे, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम एक पत्थर पर खड़े होकर काबे की तामीर करते और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम उन्हें पत्थर व गारा लाकर देते, इस पत्थर की खासियत ये थी कि जैसे जैसे काबा ऊंचा होता जाता ये पत्थर भी उठता जाता और इस पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशान पड़ गए यही पत्थर मक़ामे इब्राहीम कहलाता है,जब काबा बनकर मुकम्मल हो गया तो मौला फरमाता है कि ऐ इब्राहीम लोगों को हज के लिए बुलाओ तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मौला यहां तो दूर दूर तक कोई नहीं है मैं किसको आवाज़ दूं और कौन सुनेगा तो मौला फरमाता है कि तुम आवाज़ तो दो बुलाना तुम्हारा काम है सबको सुनाना ये हमारा काम है, फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जबले अबू कबीस पर खड़े होकर आवाज़ लगाते हैं कि "ऐ लोगों खुदा ने तुम्हारे लिए अपना एक घर बनाया है तो आओ उसकी ज़ियारत करने के लिए" आपका ये क़ौल अल्लाह ने तमाम इंसानों को सुना दिया जो बाप की पुश्त में था जो मां के शिकम में था हत्ता कि क़यामत तक पैदा होने वाली तमाम रूहों को जो आलमे अरवाह में थी सबको सुनाया, तो जिस जिसने उस आवाज़ पर लब्बैक कहा उसको हज की सआदत मिलेगी और जो खामोश रहा वो हरगिज़ वहां तक नहीं पहुंच सकता*_
_*📕 खज़ाएनुल इर्फान, सफह 399*_
_*यहां एक मसला ये भी हल हुआ कि जब आम मुसलमान की रूहें मां-बाप की पुश्त में रहकर भी और आलमे अरवाह में भी आवाज़ें सुन सकती हैं तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम व उनके महबूबीन अपनी क़ब्रे अनवर से हम गुलामों की आवाज़ें क्यों नहीं सुन सकते, यक़ीनन सुन सकते हैं बल्कि सुनते हैं, काबे शरीफ की मुकम्मल मालूमात फिर कभी दूंगा इन शा अल्लाह*_
_*आपकी उम्र या तो 175 साल हुई या फिर 200 साल*_
_*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 176*_
_*आपका मज़ार फिलिस्तीन के शहर हिबरून या जबरून में है*_
_*📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 7,सफह 345*_
_*खत्म.....*_
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