Sunday, August 26, 2018



        _*इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*_
                           _*हिस्सा- 6*_
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_*07). वहाबी कहता है कि हौज़े कौसर पर कुछ लोग आयेंगे जिन्हें हुज़ूर ﷺ बुलायेंगे तो फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि या रसूल अल्लाह ﷺ ये मुनाफिक हैं तो हुज़ूर ﷺ उन्हें दुत्कार देंगे, अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें पहले ही खबर हो जाती*_

_*07). हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि तुम दुनिया में किसी से भी इस क़दर तकरार नहीं करोगे जितना कि एक कल्मा पढ़ने वाला अपने मुसलमान भाई को जहन्नम में जाते देखकर खुदा से तकरार करेगा, बन्दे अर्ज़ करेंगे कि मौला ये हमारे वो भाई हैं जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे रोज़ा रखते थे हज करते थे तूने उन्हें जहन्नम में क्यों डाल दिया तो मौला फरमाएगा कि अच्छा तुम जिन्हे पहचानते हो उन्हें निकाल लो, बन्दे जाकर उन्हें वहां से निकाल लायेंगे फिर मौला अर्ज़ करेगा अब जाकर उन्हें भी निकाल लाओ जिनके दिल में ज़र्रा बराबर भी ईमान हो बन्दे जाकर एक एक मोमिन को चुन चुनकर निकाल लायेंगे, फिर जहन्नम में सिर्फ काफिर ही काफिर रह जायेंगे*_

_*📕 बुखारी, जिल्द 6, हदीस 7001*_
_*📕 निसाई, जिल्द 8, सफह 112*_
_*📕 इब्ने माजा, जिल्द 1, सफह 23*_

_*सोचिये कि एक आम मुसलमान को कैसे पता कि कौन मोमिन है और कौन कफिर है मगर वो एक मुस्लमान को उसके चेहरे व आज़ा से पहचान रहा है और वो नबी जो सारे जन्नतियों को जानते हैं सारे जहन्नमियों को जानते हैं वो नहीं पहचानेंगे ये कैसे हो सकता है, हदीसे पाक पढ़िये*_

_*हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हमारे दरमियान हाज़िर हुए तो आपके हाथों में 2 किताब थी, आपने पुछा कि क्या तुम लोग इस किताब के बारे में जानते हो तो सहाबा ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आपके बग़ैर बताये हम नहीं जानते, तो आपने दाहिने हाथ की किताब की तरफ इशारा किया और फरमाया कि इसमें जन्नत में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी, फिर बायें हाथ की किताब की तरह इशारा करते हुए फरमाया कि इसमें जहन्नम में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी*_

_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 36*_

_*किसी बात को जानना तो ये अलग बात हो गई मगर इसके बावजूद भी आप फरमाते हैं कि हम क़यामत में सबको पहचानते होंगे, फिर क़यामत में मोमिन की निशानी ये भी होगी कि उसके आज़ाये वुज़ू चमकते होंगे पेशानी पर सजदों के निशान मालूम होंगे नामये आमाल दाहिने हाथ में होगा वहीं काफिर व मुनाफिक की भी पहचान उनके चेहरे से ज़ाहिर होगी, इतनी सारी निशानियां होते हुए भी ये कहना कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उनको नहीं पहचानेगे ये सख्त हिमाक़त ही है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उन मुनाफिकों को यक़ीनन पहचानेगे मगर तअन के तौर पर उनको बुलाया जायेगा कि ये देखो ये हमारे मुख्लिस बन्दे हैं फिर फरिश्तों का बताना और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का उनको झिड़क कर भगाना दर असल उनकी तकलीफ को और बढ़ाना होगा, इसको युं समझिए कि आपके किसी मिलने जुलने वाले की शादी हुई और उसने आपको दावत में नहीं पूछा तो आपको तकलीफ तो होगी मगर सोचिये कि अगर वही आदमी आपको दावत देता और जब आप उसके घर पहुंचते तो वो सबके सामने आपकी बे इज़्ज़ती करके आपको भगा देता तब उस तकलीफ का अंदाज़ा लगाइये, मुनाफिकों को भी यही तकलीफ देने के लिए बुलाकर भगाया जायेगा और अगर ऐसा नहीं है तो जो फरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ ज़र्रा बराबर वर्ज़ी नहीं करते वो उन मुनाफिकों को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तक पहुंचने ही नहीं देते पहले ही भगा देते, बात कुछ नहीं है सिर्फ इतनी सी है इन वहाबियों के दिमाग में गोबर भरा हुआ है इसी लिए उन्हें सही और गलत की तमीज़ नहीं रह गई है*_

_*📕 जा'अल हक़, हिस्सा 1, सफह 119*_

_*जारी रहेगा.....*_
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