_*ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा - 5*_
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*_सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की सीरत का बयान मुखतसर में कल ही मुकम्मल हो चुका था मगर कुछ बातें करनी बाकी रह गयी थी सो एक हिस्सा और बनाना पड़ा, जैसा कि माहौल चल रहा रहा है आप सब भी देखते ही होंगे कि आजकल कुछ लोगों का दीन और मज़हब यही रह गया है कि आलाहज़रत की शान में हुज़ूर ताजुश्शरिया की शान में या मसलके आलाहज़रत पर लअन तअन करो और अपने सुन्नी होने का सबूत दो, माज़ अल्लाह, गोया कुछ लोगों के दीन में अब सिर्फ वलियों को गाली देना ही बचा है ऐसे लोगों से मेरा ये सवाल है कि माज़ अल्लाह क्या कभी किसी रज़वी ने ख्वाजा गरीब नवाज़ की शान में या हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी की शान में या हज़रते वारिस पाक की शान में या हज़रते अमीर अबुल ओला की शान में या हज़रत शाह नियाज़ बेनियाज़ रज़ियल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन की शान में कोई गुस्ताखाना अल्फाज़ निकाला क्या कभी कोई गैर न ज़ेबा बात इन बुज़ुर्गो की शान में कही, हरगिज़ नहीं ना कही है और ना कभी कहेगा, मगर आजकल कुछ नाम निहाद सुन्नी जैसे कि कुछ चिश्ती कुछ अशरफी कुछ वारसी कुछ अबुल ओलाई कुछ नियाज़ी खुले आम आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त की शान में गुस्ताखी करते हैं और ये कोई ढ़की छुपी हुई बात नहीं है कि कोई इंकार कर दे, लिहाज़ा अब एैसे नाम निहाद सुन्नियो के सामने तो सुन्नियत की एक ही पहचान है और वो है मसलके आलाहज़रत, जो इस मसलक पर क़ायम है वही अहले सुन्नत वल जमात के सच्चे मज़हब पर क़ायम है फिर चाहे वो किसी भी सिलसिले से ताल्लुक़ रखता हो वो सुन्नी है, मगर जो इस मसलक पर क़ायम नहीं तो वो अगर अपने नाम के आगे रज़वी भी लिखता होगा तब भी वो हरगिज़ सुन्नी नहीं, अल्लाह के वलियों से दुश्मनी रखने वाले अगर अल्लाह ने आंखें दी हो तो उसे खोल कर पढ़ें कि रब क्या फरमाता है_*
_*जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की तो मैं उससे जंग का ऐलान करता हूं*_
_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 2, सफह 963*_
*_आलाहज़रत को बुरा कहने वालों अगर हिम्मत हो तो लड़ लेना रब से, जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आग को गुलज़ार बनते देख गिरगिट फूंक मारकर उसे भड़काना चाहता था मगर ना भड़का सका बल्कि दुश्मनाने नबी बनकर आज तक और हमेशा चप्पलों से मार खाता फिरता है ठीक उसी तरह कुछ गिरगिट लोग भी मसलके आलाहज़रत का कुछ बिगाड़ ना पायेंगे चाहे सर पटक कर मर ही क्यों न जायें क्योंकि मसलके आलाहज़रत की ये धूम तौफीक़े इलल्लाह है यानि अल्लाह की जानिब से है हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि_*
_*मेरी उम्मत का एक गिरोह क़यामत तक हक़ पर रहेगा और दुश्मन उसका कुछ ना बिगाड़ सकेंगे*_
_*📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 61*_
*_अगर चे ये हदीस सवादे आज़म यानि मज़हबे अहले सुन्नत वल जमाअत की ताईद में हैं मगर चुंकि अब अहले सुन्नत वल जमाअत के अंदर भी इख्तिलाफ पाया जा रहा है तो इस हदीस पर अमल करते हुए कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं_*
_*मेरी उम्मत कभी गुमराही पर जमा ना होगी जब तुम इख्तिलाफ देखो तो बड़ी जमात को लाज़िम पकड़ो*_
_*📕 इब्ने माजा, सफह 283*_
*_तो इस वक़्त सबसे बड़ी जमाअत मसलके आलाहज़रत ही है तो ईमान की आफियतो भलाई इसी में है कि इसको लाज़िम पकड़ा जाये मगर कुछ लोगों को लगता है कि वो एक गिरोह भांडगीरी करने वालों सहाबा इकराम को गाली देने वालों या अपनी मस्जिदों में ये लिखने वालों का होगा कि यहां "मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों सलाम पढ़ना मना है" या शरियत को तमाशा बनाने वालों या वलियों को गाली देने वालो का होगा, नामुमकिन नामुमकिन नामुमकिन, वो एक गिरोह सिर्फ और सिर्फ मसलके आलाहज़रत वालों का ही होगा, और क्यों ना हो कि मेरे इमाम के कलम से निकला हुआ एक नुक्ता भी दिखा दो जो किसी अम्बिया व औलिया की तनकीस में लिखा गया हो या शरीयत के खिलाफ हो, पर दिखायेंगे कहां से क्योंकि वली तो वली मेरे इमाम ने तो जिस चीज़ की निस्बत भी वलियों से हो गयी उसकी भी ताज़ीम को वाजिब करार दे दिया, जैसा कि आपसे एक सवाल किया गया कि अगर कोई अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर कहे तो क्या हुक्म है, मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि_*
_*अगर वो अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर इसलिये कहता है कि सरकार गरीब नवाज़ की ज़ात कोई मुअज़्ज़म या मुतबर्रक नहीं कि अजमेर को अजमेर शरीफ कहा जाए जब तो गुमराह है और अगर सिर्फ काहिली की वजह से ऐसा करता है तो फैज़ से महरूम है*_
_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 6, सफह 187*_
*_सोचिये कि जिस ज़ात ने अपनी पूरी ज़िन्दगी सिर्फ नामूसे रिसालत पर वक़्फ कर दी थी उस पर कीचड़ उछालना क्या ये सुन्नियों का शेवा है और क्या ऐसा करके वो अपने उन वलियों को जिनके नाम से वो पहचाने जाते हैं क्या वो उन्हें खुश कर रहे हैं या फिर ऐसे लोग मौला के साथ साथ उन वलियों का भी गज़ब मोल ले रहे हैं, मौला तआला से दुआ है कि ऐसे लोगों को हिदायत बख्शे और तमाम सुन्नियों में इत्तेहाद और मुहब्बत पैदा फरमाये - आमीन_*
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