_*फ़ातिहा में खाना पानी सामने रखना*_
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*_इस बारे में दो किस्म के लोग पाएे जाते हैं कुछ तो वह है कि अगर खाना सामने रखकर सूरह फातिहा वगैरह आयाते क़ुरआनिया पढ़ दी जाएं तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है, और वह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं, यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है तो,खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर (ज़्यादा) अहादीस और अक़वाले आइम्मा और मामूलाते बुज़ुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और बे'वजह मुसलमानों को मुश्रिक और विदअती बताते हैं।.दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जहालत और तवह्हुम (वहम) परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब तक खाना सामने ना हो कुरआन की तिलावत और इसाले सवाब मना है....! बाअज़ जगह देखा गया है कि मिलाद शरीफ पढ़ने के बाद इंतजार करते हैं कि मिठाई आए तब तिलावत शुरू करें यहां तक कि मिठाई आने में अगर ताखीर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है ताकि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जायज़ हो जाए। कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इंतजार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुरआन पढ़े,, यह सब तवह्हुमात है। हक़ीक़त यह है कि फ़ातिहा में खाना सामने होना ज़रूरी नहीं अगर आयातें और सूरतें पढ़कर खाना या शीरनी बगैर सामने लाए यूं ही तक्सीम कर दी जाए तब भी इसाले सवाब हो जाएगा और सवाब या फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।_*
_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 57*_
*_सय्यदि आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी फरमाते हैं,,, फातिहा और ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं_*
_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 4, सफ़्हा 225*_
*_और दूसरी जगह लिखते हैं अगर किसी शख्स का यह एतिक़ाद हो कि जब तक खाना सामने ना किया जाए तो सवाब ना पहुंचेगा तो यह गुमान उसका ग़लत है।_*
_*📕 फ़तावा रिज़विया, जिल्द 4, सफ़्हा 195*_
*_ख़ुलासा यह के खाने पीने की अशिया (चीज़ें) सामने रखकर फातिहा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं बल्कि अहादीस से इसकी असल साबित है, और फातिहा में खाना सामने रखने को ज़रूरी ख्याल करना कि इसके बगैर फातिहा ही नहीं होगी तो यह भी इस्लाम में ज़्यादती, वहम परस्ती और ख्याले खाम है जिस को मिटाना मुसलमानों पर ज़रूरी है।_*
_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 58*_
*_हज़रत मौलाना मुफ्ती ख़लील अहमद ख़ान साहब बरकाती मारेहरवि फरमाते हैं. "तुमने नियाज़, दुरुद वह फ़ातिहा में दिन या तारीख़े मुकर्ररह के मुताल्लिक यह समझा रखा है कि उन्ही दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे तारीख में फातिहा करेंगे तो नहीं पहुचेगा तो यह समझना हुक्मे शरा के ख़िलाफ़ है__यूं ही फ़ातिहा वो इसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं। या हज़रत फातिमा खातून ए जन्नत की नियाज़ का खाना पर्दे में रखना और मर्दों को ना खाने देना यह औरतों की जहालत हैं...बे सबूत और गड़ी हुई बातें हैं। मर्दों को चाहिए के इन ख्यालात को मिटाएं और औरतों को राहे रास्त और हुक्मे शराअ पर चलाएं।*
_*📕 तोज़ीह वो तशरीह, फ़स्ल हफ्त मसअला, सफ़्हा 142)*_
_*📕 ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह,सफह 57/58*_
*_कुछ लोगों का ख्याल है कि औरतें फातिहा इसाले सवाब नहीं कर सकतीं:= तो ऐ भी समझ लें कि जिस तरह फातिहा व इसाल सवाब मर्दों के लिऐ जायज़ ही इसी तरह औरतों के लिऐ भी जायज़ है लेकिन कुछ औरतें बिला वजह प्रेशान होती हैं और फातिहा के लिऐ बच्चों को इधर उधर दौडाती हैं हलांकि वह खुद भी फातिहा पढ़ सकती हैं कम अज़ कम الحمد شریف, قل ہواللہ شریف अक्सर औरतों को याद होती है इसको पढ़ कर खुदा ए तआला से दुआ करें कि या अल्लाह इसका सवाब फुलां फुलां और बिलखुसूस जिसको सवाब पहुंचाना हो उसका नाम लेकर कहें उसकी रूह को अता फर्मा दे ऐ फातिहा हो गई_*
_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाब सफह 61*_
*_कुछ औरतें किसी बुज़रूग की फातिहा दिलाने के लिऐ खाना वगैरह कोने में रख कर थोडी देर में उठा लेती हैं और कहती हैं कि उन्होंने अपनी फातिहा खुद पढ़ ली ऐ सब जाहिलाना ख्याल है_*
_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 63*_
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