Wednesday, September 26, 2018



                           _*वलीमा*_
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_*हदीस - हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब तुम में से किसी को वलीमे की दावत दी जाये तो ज़रूर जाये दूसरी जगह इरशाद फरमाते हैं कि जिसको दावत दी गई और उसने क़ुबूल ना की तो उसने अल्लाह और रसूल की नाफरमानी की*_

_*📕 मुस्लिम, जिल्द 2, सफह 462-463*_

_*हदीस - जो बग़ैर बुलाये दावत में गया तो वो चोर बनकर गया और लुटेरा बनकर वहां से निकला*_

_*📕 अबु दाऊद, सफह 525*_

_*ⓩ मगर ये बला तो आजकल आम हो चली है कि नवजवान लड़के बनठन कर घूमते रहते हैं जहां कहीं मौका लगा फौरन दावत में शरीक हो गये और कुछ बेग़ैरत तो 1 आदमी की दावत में पूरा घर भर लेकर पहुंच जाते हैं, ऐसे लोगों को ना तो अपनी इज़्ज़त की ही कोई फिक्र होती है और ना खुदा व रसूल का कोई खौफ मआज़ अल्लाह*_

_*फुक़्हा - बाअज़ उल्मा के नज़दीक वलीमा की दावत क़ुबूल करना सुन्नत है और बाअज़ के नज़दीक वाजिब मगर बज़ाहिर यही मालूम होता है कि सुन्नते मुअक़्क़िदह है*_

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 16, सफह 30*_

_*फुक़्हा - मगर दावत क़ुबूल करना उसी वक़्त सुन्नत होगी जबकि वहां कोई मुनकिराते शरईया ना हो जैसे गाना बजाना खेल तमाशा वरना क़ुबूल ना करे हां अवाम अगर सुलह रहमी की बिना पर जाना चाहे तो जा सकती है मगर ढोल ताशे पर ध्यान ना दे*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 9, सफह 385*_

_*फुक़्हा - बारात में अगर बाजा ताशा हो तो आलिम का साथ जाने में 3 सूरतें हैं*_

_*1). अगर जानता है कि मेरे जाने से या मेरे सामने ये सब खुराफात नहीं होगी बन्द कर दी जायेगी तो ज़रूर जाये*_

_*2). अगर जानता है कि मेरा जाना उनको अज़ीज़ है तो वाजिब है कि मुन्किरात से मना करे अगर मान जायें तो साथ जाये*_

_*3). अगर मना करने पर भी ना माने तो जाना जायज नहीं अगर पहुंच गया और उसके सामने बाजा शुरू हो तो फौरन उठ जाये*_

_*📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 9, सफह 434-435*_

_*फुक़्हा - वलीमा बाद ज़ुफाफ करना सुन्नत है बेहतर है कि शबे ज़ुफाफ की सुबह को अपने दोस्त और अहबाब की दावत की जाये वरना दूसरे दिन भी हो सकती है मगर इससे ज़्यादा ताखीर करना खिलाफे सुन्नत है*_

_*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 16, सफह 31*_

_*ⓩ ये वबा भी हमारे मुआशरे में बड़ी तेज़ी से फैल गई है अब तो लोग एक एक हफ्ते के बाद वलीमा करते हैं हालांकि शरीयत की नज़र में ये वलीमा हरगिज़ नहीं है हां इसे मैरिज पार्टी ज़रूर कह सकते हैं युंही वलीमा का खाना भी हस्बे इस्तेताअत और सुन्नत की नियत से करें तकब्बुर के तौर पर या दूसरों को दिखाने की गर्ज़ से ना हो कि फलां ने 500 लोगों की दावत की तो हम 1000 की दावत करेंगे अगर चे पैसा कम हो तो उधार मांगना पड़े या सूद पर भी लेना पड़े मआज़ अल्लाह और फलां ने खाने में 10 आइटम रखा था तो हम 20 रखेंगे, ये सब रियाकारी है जो कि हराम है मुसलमानों को चाहिये कि एक सुन्नत ही तो अदा की है यानि शादी की है तो क्यों इतनी हरामकारी करके उस सुन्नत का मज़ाक बनाते फिरते हैं और बजाये उससे फायदा हासिल करने के हजारों तरह की मुसीबत में पड़े रहते हैं ये भी याद रखें कि खाना ज़मीन पर बैठकर खाना ही सुन्नत है कुर्सी पर बैठकर खाना नसारा का तरीका है इससे बचना चाहिये मगर मआज़ अल्लाह अब तो मुसलमान खड़े खड़े जानवरो की तरह खाने को ही पसंद करता है,हदीसे पाक में आता है कि जो भूलकर खड़ा होकर खाये पिये तो वो क़ै कर दे यानि जो कुछ खाया पिया उसे उलटी करदे, ज़रा सोचिये मेरे आक़ा ये भी तो फरमा सकते थे कि जिसने भूले से खड़े होकर खा लिया वो तौबा करे और आईन्दा खड़े होकर ना खाये पिये मगर आपने उसको निकाल देने का हुक्म दिया इसका मतलब है कि खड़े होकर खाना पीना सेहत के लिहाज़ से भी सख्त नुक्सान देह है और ये क़ै का हुक्म भूले से खाने पीने पर है मगर यहां तो जान बूझकर खड़े होकर खाया पिया जा रहा है और जाहिल मुसलमानों का यही फैशन हो गया है उसी तरह अक्सर ऐसा भी होता है कि लड़की हैज़ से होती है और कुछ नावाकिफ लोग ये समझते हैं कि अगर उससे सोहबत ना करेंगे तो वलीमे की सुन्नत अदा नहीं होगी ये सरासर जिहालत है, वलीमा करना शबे ज़ुफाफ की सुन्नत है तो अगर रात को शौहर बीवी से मुलाकात करले अगर चे सोहबत ना भी करे फिर भी वलीमे की सुन्नत अदा हो जायेगी याद रखें कि औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करना जायज नहीं अगर चे शादी की पहली रात ही क्यों ना हो और अगर इसको जायज़ जानेगा जब तो काफिर हो जायेगा युंही उसके पीछे के मक़ाम में सोहबत करना भी सख्त हराम है, मौला तआला हिदायत अता फरमाये*_
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