Wednesday, September 26, 2018



                    _*नियत की बरक़त*_
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_*हज़रते अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान की नियत उसके अमल से बेहतर है*_

_*📕 तिबरानी बा हवाला इज़ानुल अज्रे फी अज़ानिल क़ब्रे,सफह 25*_

_*जो शख्स नियत का इल्म जानता है वो एक काम करते हुए भी कई सारे कामों का सवाब पा सकता है मसलन एक शख्स नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद चला और सिर्फ नमाज़ की नियत की तो बिला शुबह बेहतर है कि उसके हर क़दम के बदले एक नेकी मिलेगी और एक एक गुनाह मिटता चलेगा मगर जो शख्स इल्मे नियत जानता होगा वो सिर्फ नमाज़ के लिए मस्जिद जाने में ही कितनी नेकियां इकट्ठी कर सकता है,आईए देखते हैं*_

_*1. अस्ल मक़सद नमाज़ के लिए जा रहा हूं*_
_*2. मस्जिद की ज़ियारत करूंगा*_
_*3. इस्लाम की निशानी ज़ाहिर करूंगा*_
_*4. मुअज़्ज़िन का क़ौल क़ुबूल करूंगा*_
_*5. मस्जिद से कूड़ा कचरा दूर करूंगा*_
_*6. एतेकाफ़ करूंगा*_
_*7. फ़रमाने इलाही पर अमल करने जा रहा हूं*_
_*8. वहां जो आलिम मिलेगा उससे दीनी मसअला सीखूंगा*_
_*9. ना अहल को इल्म सिखाऊंगा*_
_*10. जो मेरे बराबर इल्म वाला होगा उससे इल्म की चर्चा करूंगा*_
_*11. आलिम की ज़ियारत करूंगा*_
_*12. नेक मुसलमानों का दीदार करूंगा*_
_*13. दोस्तों से मुलाक़ात करूंगा*_
_*14. मुसलमानों से मिलूंगा*_
_*15. अगर कोई रिश्तेदार मिल गया तो उससे भी हाल चाल पूछूंगा*_
_*16. अहले इस्लाम को सलाम करूंगा*_
_*17. उनसे मुसाफा करूंगा*_
_*18. जो सलाम करेगा उसका जवाब दूंगा*_
_*19. जमाअत से नमाज़ पढ़कर उसकी बरक़तें हासिल करूंगा*_
_*20. मस्जिद में दाख़िल होते वक़्त दाहिना पैर पहले दाखिल करूंगा और बिस्मिल्लाह शरीफ पढूंगा*_
_*21. हुज़ूर पर दुरूद पढूंगा*_
_*22. दाखिले की दुआ पढ़ूंगा*_

*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك  واعلى عباد الله اصالحىن اللهم افتح لى ابواب رحمتك نوىت سنت اعتكاف*

_*23. निकलते वक़्त बायां पैर पहले निकालूंगा और दुआ पढ़ूंगा*_

*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك  واعلى عباد الله اصالحىن اللهم انى اسًلك من فضلك*

_*24. बीमार मिल गया तो उसकी इयादत करूंगा*_
_*25. अगर कोई जनाज़ा मिल गया तो ताज़ियत करूंगा*_
_*26. अगर वक़्त मिला तो कब्रिस्तान तक जाऊंगा*_
_*26. जो सवाल करेगा उसका जवाब दूंगा*_
_*27. अच्छी बातों का हुक्म दूंगा*_
_*28. बुरी बातों से रोकूंगा*_
_*29. अगर वुज़ू का पानी ना हुआ तो लोगों को वुज़ू का पानी दूंगा*_
_*30. अगर मुअज़्ज़िन न हुआ तो अज़ान व तकबीर कहूंगा*_
_*31. जो भटका हुआ मिलेगा उसे रास्ता बताऊंगा*_
_*32. नाबीना की दस्तगीरी करूंगा*_
_*33. दो मुसलमानो में झगड़ा हुआ तो सुलह कराऊंगा*_
_*34. रास्ते में कोई अदबी कागज़ मिला तो उठाकर उसे रखूंगा*_

_*वग़ैरह वग़ैरह, अब अगर निकलते वक़्त इन सारी बातों की नियत कर ली तो एक ही वक़्त में हर क़दम के बदले जितनी नियत उतनी नेकियां, अगर कोई काम नहीं भी किया तो भी नेकियों में कमी नहीं होगी और अगर सारे काम कर लिए तो उसका जितना सवाब है वो अलग, ना जाने किस क़दर नेकियां हासिल होंगी इसका अंदाजा लगाना इंसान के बस के बाहर है,नियत की एक ईमान अफ़रोज़ और इबरतनाक हिक़ायत सुन लीजिए इं शा अल्लाह नियत की बरक़त भी समझ जाएंगे*_

_*हिक़ायत - दो भाई थे दोनों एक ही मकान में रहा करते थे बड़ा ऊपर की मंज़िल में और छोटा नीचे की मंज़िल में, बड़ा बहुत ही नेक और परहेज़गार और छोटा निहायत ही अय्याश और बदकार था, इक रोज़ बड़े भाई के दिल में वस्वसा पैदा हुआ कि मैंने सारी ज़िन्दगी इबादत में गुज़ार दी और दुनिया के बारे में कुछ सोचा ही नहीं, खैर अभी तो बहुत उम्र बाक़ी है चलो कुछ ऐशो इशरत से ज़िन्दगी गुज़ारी जाये मरने से पहले फिर तौबा कर लूंगा ये सोचकर वो अपने अय्याश भाई से मिलने के लिए नीचे की तरफ़ चला, इधर छोटे के दिल में रहमते इलाही ने जोश मारा और वो बड़े भाई की नेकियों को सामने रखकर अपने ऊपर मलामत करने लगा और रोने लगा कि मैं किस क़दर बद नसीब हूं कि मेरा भाई इतना नेक आदमी है और मैं इतना बदकार, चलो अभी भी देर नहीं हुई है अभी मैं उसके हाथों पर अपने तमाम गुनाहों से तौबा करता हूं और ये सोचकर वो अपने बड़े भाई से मिलने के लिए ऊपर की मंज़िल की जानिब चला, दोनों एक ही सीढ़ी पर थे कि अचानक बड़े भाई का पैर फिसला और वो छोटे पर गिरा और दोनों वहीं इन्तेक़ाल कर गए, रहमतो अज़ाब के फ़रिश्ते आ गए, अब उन दोनों की रूह ले जाने के लिए वहां फरिश्तो में बहस होने लगी, बड़े भाई को नेकोकार फ़रिश्ते ले जाना चाहते थे मगर अज़ाब के फ़रिश्ते रोक रहे थे और छोटे को अज़ाब के फ़रिश्ते ले जाना चाह रहे थे तो रहमत के फ़रिश्ते आड़ बन रहे थे कि मुआमला बारगाहे खुदावन्दी में पहुंचा, मौला फरमाता है कि दोनों की आखिरी नियत जो थी उसी पर सारा हिसाब किताब होगा, तो बड़े की नियत बदकारी करने की निकली और छोटे की नियत तौबा करने की, लिहाज़ा बड़े भाई को उसकी बुरी नियत की नहूसत की वजह से जहन्नम ले जाया गया और छोटे भाई को उसकी नेक नियती की बिना पर जन्नत का परवाना मिला*_

_*📕 रौज़ुल फ़ाइक,सफह 10*_

_*ये है नियत,और ये होता है नियत का जलवा,लिहाज़ा अपनी नियत हमेशा नेकोकार की ही रखें*_
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