_*शैतान और नेकी की दावत*_
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_*ⓩ सबसे पहले इन रिवायतों को पढ़िए बाद में इसका खुलासा करता हूं*_
_*फुक़्हा - एक शख्स पेड़ के नीचे सो रहा था कि अचानक दीवार गिरने को हुई तो फौरन एक शख्स आया और उसने वहां से खींचकर उसे बचा लिया, ये देखकर उसने अपने मोहसिन का शुक्रिया अदा किया और उसका नाम पूछा तो उसने कहा कि मैं इब्लीस हूं,ये सुनकर वो शख्स सख्त ताज्जुब में हुआ और कहा कि तुम कब से नेकी करने लगे इस पर वो कहता है कि मुझे इल्म है कि रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का कोई उम्मती अगर दीवार के नीचे दबकर मर जाए तो वो शहीद हो जाता है लिहाज़ा मैं चाहता हूं कि तुम्हें शहीद की मौत ना मिले बल्कि युंही मरो*_
_*📕 नुज़हतुल मजालिस, जिल्द 1, सफह 162*_
_*हदीस - एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सदक़ए फ़ित्र की हिफाज़त के लिए मुक़र्रर किया, एक रात आपने देखा कि एक चोर चंद बोरियां उठाए लिए जा रहा है आपने उसे पकड़ लिया जिस पर वो रोने लगा कि मैं बहुत ग़रीब आदमी हूं मुझे जाने दीजिए, हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का दिल पिघल गया और आपने उसे छोड़ दिया, दूसरे दिन जब सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात हुई तो मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुद ही इरशाद फरमाते हैं कि ऐ अबू हुरैरा रात वाले चोर का क्या किया, इस पर वो फरमाते हैं कि मुझे रहम आ गया और मैंने उसे जाने दिया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वो झूठा है आज फिर आएगा होशियार रहना, रात को फिर वही चोर आया और पकड़ा गया इस बार फिर उसने रो रोकर दुहाई दी तो फिर से हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को उस पर रहम आ गया और उसे जाने दिया, फिर दूसरे दिन सरकार ने पूछा कि उस चोर का क्या किया तो वो बोले कि उसने अपनी मोहताजी की शिकायत की तो मैंने उसे छोड़ दिया फिर आक़ा फरमाते हैं कि वो झूठा है आज फिर आएगा, रात को फिर वही आया और फिर से पकड़ा गया अब हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि आज तो मैं तुझे हरगिज़ नहीं छोड़ूंगा जब चोर ने जान लिया कि आज निकलना मुश्किल है तो कहने लगा कि अगर आप मुझे छोड़ने का वादा करें तो मैं आपको एक बहुत इल्म वाली बात बताऊं, इस पर हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तैयार हो गए तो वो बोला कि जब भी आप सोने को बिस्तर पर जाओ तो आयतल कुर्सी पढ़ लिया करो कि इससे अल्लाह तुम्हारी रात भर हिफाज़त फरमायेगा और शैतान तुम्हारे नज़दीक नहीं आ पायेगा, ये सुनकर हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बहुत खुश हुए और उसे छोड़ दिया, सुबह को रात का सारा वाक़िया आपने हुज़ूर को बताया तो मेरे आक़ा इरशाद फरमाते हैं कि बात तो उसने सच्ची कही मगर है वो बहुत बड़ा झूठा जो पिछली तीन रातों से तुम्हारे पास चोर बनकर आ रहा था वो और कोई नहीं बल्कि इब्लीस था*_
_*📕 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 177*_
_*फुक़्हा - एक सुबह को हज़रत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की फज्र में आंख ना खुली जब आप उठें तो नमाज़ क़ज़ा हो चुकी थी इसके ग़म में आप बहुत रोए, कुछ दिन के बाद फिर इत्तेफाक़ से जब बहुत कम वक़्त फज्र का बाक़ी रह गया और आप नहीं उठे थे तो किसी ने आकर आपका दरवाज़ा खटखटाया आप उठ गए और उससे नाम पूछा तो बाहर से आवाज़ आई कि मैं इब्लीस हूं हज़रत आपकी नमाज़ का वक़्त बहुत कम रह गया है सो आप नमाज़ पढ़ लीजिए, हज़रत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हैरत से पूछा कि ऐ कम्बख्त तू कब से नमाज़ की दावत देने लगा तो कहने लगा कि हुज़ूर ऐसी कोई बात नहीं है दर असल अभी कुछ दिनों पहले भी आपकी नमाज़ क़ज़ा हो गयी थी जिस पर आप बहुत रोए तो मैंने फरिश्तों को कहते सुना कि मौला ने आपके रोने के सबब से आपकी नमाज़ फज्र तो अदा लिख ही ली बल्कि आपको 70 नमाज़ों का सवाब और भी अता फरमा दिया, तो आज भी आप सो ही रहे थे तो मैं डरा कि कहीं आज भी आपकी नमाज़ क़ज़ा हो गयी और आप फिर से रो दिए तो आपको 70 नमाज़ों का सवाब मुफ्त में मिल जायेगा, इसी लिए मैं हाज़िर हुआ कि आप एक ही नमाज़ का सवाब पा सकें,*_
_*📕 शैतान की हिक़ायत, सफह 76*_
_*ⓩ जैसा कि आपने पढ़ ही लिया होगा कि नेकी की दावत देना सिर्फ मुसलमान ही नहीं करता बल्कि ज़रूरत पड़ने पर शैतान और उसके चेले भी नेकियों की दावत दिया करते हैं मगर इसमें उनका छुपा हुआ मक़सद कुछ और ही होता है, जैसा कि बद अक़ीदे वहाबियों का मामूल बन चूका है कि झोला झप्पड़ टांग कर मस्जिदों को नजासत आलूद करने और मुसलमानों का इमान बर्बाद करने के लिए निकल पड़ते हैं, बज़ाहिर तो वो नेकियों की दावत देते हुए दिखाई देते हैं मगर उनका मक़सद सिर्फ और सिर्फ मुसलमान को गुमराह और काफिर बनाना है, और हमारे मुसलमान भाई जब उनसे कहो कि इन बद अक़ीदों से दूर रहिए तो जवाब देते हैं कि हम कैसे उनको मना करें कि वो तो नमाज़ और नेकियों की दावत ही दिया करते हैं, शहज़ादये सदरुश्शरिया हज़रत अल्लामा ज़ियाउल मुस्तफा क़ादरी रज़वी मद्दा ज़िल्लहुल आली को मैंने फरमाते सुना कि ये वहाबियों की कसरत क्यों आम हुई जा रही है वहाबी कोई पेड़ में तो फलता नहीं है या बारिश की तरह आसमान से बरसता तो नहीं है, फिर क्यों, इसलिए कि हमारा नादान मुसलमान इनको अच्छा समझकर पहले तो इनकी बात सुनता है फिर इन्ही के साथ होकर अपना ईमान तक गंवा बैठता है, अगर पहली ही बार में थोड़ी सी सख्ती करके उन्हें भगा दे तो आईन्दा के लिए उसके और उसके ईमान के लिए अच्छा हो जाए, और हक़ीक़त भी यही कि ईमान कुर्ता पैजामा पहनने दाढ़ी रखने या टोपी लगाने का नाम नहीं है बल्कि ईमान सिर्फ और सिर्फ ये हैं कि अपने नबी से अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत की जाये ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*_
_*हदीस - तुम में से कोई उस वक़्त तक मुसलमान नहीं होगा जब तक कि मैं उसे उसके मां-बाप उसकी औलाद और सबसे ज़्यादा महबूब ना हो जाऊं*_
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 7*_
_*ⓩ और मुहब्बत में सबसे खास बात क्या होती है जानते हैं ये कि मोहिब अपने महबूब की सारी कमियां नज़र अंदाज़ करके फक़त उसकी खूबियां ही बयान करता है हालांकि ये आम मुहिब और उनके महबूब सब के सब सर से लेकर पैरों तक ऐबों का मुजस्समा होते हैं, मगर रब के वो महबूब हमारे और आपके आक़ा जनाबे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जो कि हर ऐब से पाक और मासूम पैदा किये गए हैं मगर कुछ हरामखोर उनके अंदर भी ऐब तलाश करते फिरते हैं और दावा मुसलमान होने का करते हैं, जबकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि*_
_*कंज़ुल ईमान - खुदा की कसम खाते हैं कि उन्होंने नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की अल्बत्ता बेशक वो ये कुफ्र का बोल बोले और मुसलमान होकर काफिर हो गए*_
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 74*_
_*ⓩ अब हर पढ़े लिखे और बे पढ़े लिखे से ये सवाल है कि नीचे वहाबियों की किताबों से दी गई इबारतें पढ़ें या पढ़वाकर सुनले और अक़्ल से फैसला करे कि क्या ये कलिमात हुज़ूर की शान में गुस्ताखी के नहीं हैं और क्या ऐसा कहने वालों या या ऐसा कहने वालों को जो सही कहे क्या उन्हें मुसलमान समझा जा सकता है, पढ़िए*_
_*वहाबी - तक़वियतुल ईमान सफह 27 पे हुज़ूर को चमार से ज़्यादा ज़लील लिखा, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - तक़वियतुल ईमान सफह 56 पे लिखा कि नबी को किसी बात का इख़्तियार नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - तक़वियतुल ईमान सफह 75 पे लिखा कि नबी के चाहने से कुछ नहीं होता, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - तहज़ीरुन्नास सफह 8 पे लिखा कि उम्मती भी नबी से अमल में आगे बढ़ जाते हैं, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - तहज़ीरुन्नास सफह 43 पे लिखा कि हुज़ूर खातेमुन नबीयीन नहीं है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - बराहीने कातिया सफह 122 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म शैतान से भी कम है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - हिफज़ुल ईमान सफह 7 पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म तो जानवरों की तरह है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*वहाबी - सिराते मुस्तक़ीम सफह 148 पे लिखा कि नबी का ख्याल नमाज़ में लाना गधे और बैल से भी बदतर है, माज़ अल्लाह, क्या ये गुस्ताखी नहीं है*_
_*ⓩ अगर ये सब बातें इन वहाबियों के बाप-दादा की शान में की जाए तो क्या वो इसे अच्छा समझेंगे नहीं और यक़ीनन नहीं तो फिर कैसे एक मुसलमान इन काफिरों को अच्छा समझे, जिसने मेरे आक़ा की शान में गुस्ताखी की और उन्हें ईज़ा दी तो उसके लिए रब का ये फरमान है,पढ़ लें*_
_*कंज़ुल ईमान - वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है*_
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 61*_
_*ⓩ और फुक़्हा का ऐसे बद बख्तों के बारे में क्या कहना है ये भी पढ़ें*_
_*फुक़्हा - जो किसी नबी की गुस्ताखी के सबब काफिर हुआ तो किसी भी तरह उसकी तौबा क़ुबूल नहीं और जो कोई उसके कुफ्र में या अज़ाब में शक करे वो खुद काफिर है*_
_*📕 रद्दुल मुख़्तार, जिल्द 3, सफह 317*_
_*ⓩ और मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_
_*फुक़्हा - किसी भी काफिर की तौबा क़ुबूल है मगर जो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करके काफिर हुआ तो किसी भी अइम्मा के नज़दीक उसकी तौबा क़ुबूल नहीं, अगर इस्लामी हुक़ूमत हो तो ऐसो को क़त्ल ही किया जाए अगर चे उनकी तौबा सच्ची ही क्यों ना हो अगर तौबा सही हुई तो क़यामत के दिन बख्शा जायेगा मगर यहां उसकी सज़ा मौत ही है,*_
_*📕 तम्हीदे ईमान, सफह 42*_
_*ⓩ अब सोचिये खुदा और रसूल के ये मुजरिम जो क़त्ल के मुस्तहिक़ हो चुके उनसे बात करना उनसे सलाम जवाब करना उनके साथ खाना पीना उनके यहां रिश्तेदारी करना किस हद तक शर्म की बात है, और क्या इस मेल-जोल पर हम खुदा का क़हर मोल नहीं ले रहे हैं ये आखिरी रिवायत पढ़ लीजिए समझदार के लिए बहुत है*_
_*फुक़्हा - मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फलां बस्ती पर अज़ाब नाज़िल करदे तो जिब्रील अलैहिस्सलाम बोले कि मौला उस बस्ती में तेरा एक नेक बन्दा है जो एक आन के लिए भी तेरी इबादत से ग़ाफिल ना रहा, मौला फरमाता है कि फिर भी सब पर अज़ाब नाज़िल कर बल्कि पहले उस नेक पर अज़ाब नाज़िल कर क्योंकि उसने गुनाह को देखकर भी अनदेखा कर दिया*_
_*📕 अशअतुल लमआत, जिल्द 4, सफह 183*_
_*हदीस - जब कोई क़ौम में गुनाह होता है और कोई नेक बन्दा रोकने की ताक़त रखने के बावजूद भी उसे ना रोके तो सब अज़ाबे इलाही के मुस्तहिक़ होंगे*_
_*📕 मिश्कात, सफह 437*_
_*ⓩ अस्तग़फ़ेरुल्लाह, क्या ही इबरतनाक रिवायत है, सिर्फ गुनाह को गुनाह और मुजरिम को मुजरिम ना समझने पर अज़ाब की वईद आई है तो अंदाजा लगाइये कि जो खुद उस गुनाह में शामिल हो जाए वो कैसे मौला के अज़ाब से बचेगा, और आजकल तो ऐसे मुसलमानों की कसरत है जो दुश्मनाने रसूल को दुश्मन ही नहीं समझते हालांकि अगर कोई उनके मां-बाप को गाली देदे तो हाथा पाई पर उतर आएंगे मगर जो नबी की शान में गुस्ताखियां करते फिरते हैं उन्हें अपना अज़ीज़ समझते हैं, मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को अपने हबीब से सच्ची मोहब्बत करने की तौफीक़ अता फरमाए और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन*_
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