_*रुखे मुस्तफा*_
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*_हस्सानुल हिन्द आशिक़े माहे नुबूवत परवानये शम्ये रिसालत इमाम इश्क़ो मुहब्बत हुज़ूरे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर के बारे मे इरशाद फरमाते हैं कि_*
*_चांद से मुंह पे ताबां दरख्शां दुरूद_*
*_नमक आग़ीं सबाहत पे लाखों सलाम_*
*_जिस के माथे शफाअत का सेहरा रहा_*
*_उस जबीने सआदत पे लाखों सलाम_*
*_जिन के आगे चिरागे क़मर झिलमिलाये_*
*_उन अज़ारों की तलअत पे लाखों सलाम_*
*_जिस से तारीक दिल झिलमिलाने लगे_*
*_उस चमक वाली रंगत पे लाखों सलाम_*
*_शबनमे बागे हक़ यानि रुख़ का अरक़_*
*_उसकी सच्ची बराक़त पे लाखों सलाम_*
*_01) हज़रते अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ज़्यादा हसीन किसी को नहीं देखा और जब मैं चेहरये अक़दस को देखता हूं तो ये मालूम होता है कि आफताब चेहरये मुबारक में जारी है_*
_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 205*_
*_02) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सूरत और सीरत में तमाम लोगों से ज़्यादा हसीनो जमील थे_*
_*📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 258*_
*_03) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का चेहरा मुबारक इतना नूरानी था कि जब वो नूर दीवार पर पड़ता तो दीवारें भी चमक उठतीं_*
_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 6, सफह 210*_
*_04) उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमातीं हैं कि मैं सहरी के वक़्त कुछ सी रही रही थी कि सुई गिर गई और बड़ी तलाश के बावजूद ना मिली, इतने में रसूले खुदा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कमरे में तशरीफ लाये तो उनके चेहरे मुबारक के नूर से पूरा कमरा मुनव्वर हो गया और मैंने बा आसानी सुई ढूंढ़ ली_*
_*📕 खसाइसे कुबरा, जिल्द 1, सफह 156*_
_*📕 नसीमुर्रियाज़, सफह 328*_
_*📕 जवाहिरुल बहार, सफह 814*_
*_05) जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुश होते तो आपका चेहरा मिस्ल आईने के हो जाता कि दीवारें आपके चेहरे में नज़र आ जाती_*
_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 4, सफह 80*_
*_06) हज़रत अब्दुल्लाह बिन रुवाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वजूद में वहिये इलाही, मोजेज़ात और दीगर दलाइले नुबूवत का असर और ज़हूर ना भी होता तब भी आपका चेहरा मुबारक ही दलीले नुबूवत को काफी था_*
_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 4, सफह 72*_
*_07) हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि यहूदियों के बहुत बड़े आलिम थे फरमाते हैं कि जब मैंने पहली बार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने जान लिया कि ये चेहरा किसी झूटे का नहीं हो सकता_*
_*📕 अलमुस्तदरक, जिल्द 4, सफह 160*_
*_08) हज़रते रबिया बिन्त मऊज़ रज़ियल्लाहु तआला अंहा सहाबिया से किसी ने हुज़ूर के बारे में दरयाफ्त किया तो आप फरमातीं हैं कि ऐ बेटे अगर तू उनका हुस्न देखता तो यक़ीनन पुकार उठता कि सूरज तुलु हो रहा है_*
_*📕 बैहक़ी, जिल्द 1, सफह 154*_
_*📕 दारमी, सफह 23*_
*_09) तिर्मिज़ी शरीफ की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को कोई नज़र भरकर देख नहीं पाता था सिवाये अबू बक्र व उमर के और उन्ही अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मेरे आक़ा फरमाते हैं कि " ऐ अबू बक्र मुझे मेरे रब के सिवा हक़ीक़तन किसी ने पहचाना ही नहीं_*
_*📕 मतालेउल मिरात, सफह 129*_
*_10) अल्लाह ने अपने महबूब को हुस्ने तमाम अत फरमाया है मगर हम पर ज़ाहिर ना किया और ये अल्लाह का एहसान है वरना हमारी आंखें हुज़ूर के दीदार की ताक़त ना रखती_*
_*📕 ज़रक़ानी, जिल्द 5, सफह 198*_
*_11) शायरे रिसालत मआब हज़रते हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है कि जब मैने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने अपनी आंखो को हथेलियों से बन्द कर लिया कि कहीं मेरी आंखो की रौशनी ना चली जाये_*
_*📕 जवाहिरुल बहार, जिल्द 2, सफह 347*_
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