_*आदाबे मस्जिद*_
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_*दाहिना पैर मस्जिद में दाखिल करें और पढ़ें बिस्मिल्लाही अस्सलातु वस्सलामु अलैका या सय्यिदिल मुरसलीन व आला आलिका व आला जमीअ असहाबिका व आला इबादिल लाहिस सालिहीन अल्लाहुम्मफ तहली अब्वाबा रहमतिका नवैतु सुन्नतल एतिकाफ*_
*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم افتح لى ابواب رحمتك نوىت سنت اعتكاف*
_*निकलते वक़्त बायां पैर पहले निकालें और पढ़ें बिस्मिल्लाही अस्सलातु वस्सलामु अलैका या सय्यिदिल मुरसलीन व आला आलिका व आला जमीअ असहाबिका व आला इबादिल लाहिस सालिहीन अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका मिन फ'दलिका*_
*بسم الله الصلات واسلام علىك ىا سىد المرسلىن واعلى الك واعلى جمىع اصحابك واعلى عباد الله اصالحىن اللهم انى اسًلك من فضلك*
_*मस्जिद में दाखिल होते वक़्त अगर लोग मौजूद हों और वो ज़िक्रो तिलावत में मशगूल ना हों तो उन्हें सलाम करें वरना पढ़ें अस्सलामो अलैना मिर्रब्बना व आला इबादिल लाहिस सालिहीन*_
*السلام علينا من ربنا وعلى عباد الله الصالحين*
_*वक़्ते मकरूह ना हो तो 2 रकात तहयतुल मस्जिद पढ़ें*_
_*मस्जिद में खरीदो फरोख्त न करें*_
_*गुमी हुई चीज़ मस्जिद में न ढूंढ़े*_
_*ज़िक्र के सिवा हरगिज़ आवाज़ को बुलंद ना करें*_
_*लोगों की गर्दनें ना फलांगें*_
_*जहां जगह मिले बैठ जायें*_
_*इस तरह ना बैठें कि दूसरों को तक़लीफ हो*_
_*नमाज़ी के आगे से ना गुजरें*_
_*मस्जिद में थूके नहीं*_
_*उंगलियां ना चटकायें*_
_*मस्जिद में खाना पीना या सोना सिवाये मोअतकिफ़ के दूसरों को नाजायज़ है*_
_*नमाज़ के बाद मुसल्ला हटा देना अच्छा है मगर कुछ लोग सिर्फ कोना मोड़ देते हैं और उनका ख्याल ये होता है कि शैतान इस पर बैठेगा, ये बे अस्ल है*_
_*औरतों का मस्जिद मे जाना मना है*_
_*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 16,सफह 119-122*_
_*नजासत से पागलों और बहुत छोटे बच्चों को मस्जिद से दूर रखें युंही हर मूज़ी को मस्जिद में आने से रोका जाये इसी लिए उल्मा फरमाते हैं कि सुन्नियों की मस्जिद में वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी राफ्ज़ी अहले हदीस जमाते इस्लामी व दीगर बदमज़हबो को आने से रोकना वाजिब है*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 582*_
_*बिला उज़्रे शरई मस्जिद की छत पर चढ़ना मकरूह है यहां तक कि गर्मी की वजह से मस्जिद की छत पर नमाज़ पढ़ना भी मकरूह है कि ये मस्जिद की बे अदबी है हां मस्जिद नमाज़ियों से फुल हो गई है तो अब छत पर नमाज़ पढ़ सकते हैं*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 575*_
_*आज़ाये वुज़ू के पानी का मस्जिद में गिराना नाजायज़ो हराम है लिहाज़ा इसे वुज़ू खाने से उठने पर ही सुखा लें*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 733*_
_*कच्ची प्याज़ या लहसुन या कोई भी बदबूदार खाना खाकर या जिसके मुंह से बहुत ज़्यादा बदबू उड़ती हो वो हरगिज़ मस्जिद में ना जाये बल्कि उसको जमाअत की हाज़िरी भी माफ है घर में नमाज़ पढ़े*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 598*_
_*मस्जिद में दुनिया की जायज़ बात करना नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खा जाती है और मस्जिद में हंसना क़ब्र में अंधेरा लाता है*_
_*📕 अहकामे शरियत,हिस्सा 1,सफह 109*_
_*ⓩ मगर आजकल तो मआज़ अल्लाह मस्जिदों में लोग व्हाट्सप्प और फेसबुक चलाते भी दिख जाते हैं,और अब तो रमज़ान शुरू होने वाला है कुछ हराम-खोर तरावीह के नाम पर मस्जिदों में हुल्लड़ मचाने के लिए कमर भी कस चुके होंगे,2-4 रकात नमाज़ पढ़कर इंटरवल करेंगे और फिर पूरे वक़्त वही हराम-खोरी कभी इधर की बात तो कभी उधर की बात*_
_*मस्जिद में मोअतक़िफ का भी इस तरह खाना पीना या बिस्तर या सामान रखना कि नमाज़ की जगह घिरे या मस्जिद का फर्श गंदा हो सख्त नाजायज़ो हराम है*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 594*_
_*मस्जिद में भीख मांगना हराम है,जो मस्जिद में भीख मागंने वाले को 1 रूपये देगा तो उसको 70 रूपये कफ्फारह देना होगा*_
_*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 436*_
_*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 113*_
_*ⓩ अक्सर मसजिदों में देखा जाता है कि जैसे ही इमाम साहब ने सलाम फेरा फौरन एक आवाज़ आती है कि भाई मैं फलां हूं फलां जगह से आया हूं बहुत परेशान हूं ऐसे लोगों को देना सख्त मना है बल्कि गुनाह है जब ही तो कफ्फारह देने को कहा गया,हां ज़रूरत मन्द आदमी अगर अपनी हाजत पहले ही इमाम साहब से कहदे और फिर इमाम साहब उसके लिये लोगों से कहें तो ऐसा करना जायज़ बल्कि सुन्नत है क्योंकि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम अक्सर अपने गरीब सहाबा की मदद के लिये ग़नी सहाबा में ऐलान करते थे,हां जो फक़ीर मस्जिद के बाहर बैठे रहतें हैं बिला शुब्ह उन को दिया जाये*_
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