Wednesday, September 26, 2018



                            _*शबे क़द्र*_
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_*ⓩ सबसे पहले एक मैसेज की वज़ाहत कर दूं कि आज कल सोशल मीडिया पर एक मैसेज आ रहा है कि रमज़ान के आखिरी जुमा को 4 रकात नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की नमाज़ अदा हो जायेगी, तो ये सिवाये जिहालत के कुछ नहीं है ऐसा हरगिज़ नहीं है कि आप 4 रकात नमाज़ पढ़ लीजिये और आपकी 700 साल की नमाज़ अदा हो जाये बल्कि 4 रकात नमाज़ से आपकी 4 रकात नमाज़ ही होगी वो भी तब जब कि आप किसी क़ज़ा नमाज़ को अदा करने की नियत करें वरना ये भी नफ्ल होगी, लिहाज़ा इस तरह के मैसेज हरगिज़ ना शेयर करें*_

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 4, सफह 48*_

_*फुक़्हा - हुज़ूर सलल्ललाहु तआला अलैही वसल्लम की तमन्ना पर रब ने आपकी उम्मत को शबे क़द्र अता की जो 1000 महीनो की इबादत से अफज़ल है*_

_*📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब, सफह 647*_

_*फुक़्हा - जो शबे क़द्र मे इतनी देर इबादत के लिये खड़ा रहा जितनी देर मे चरवाहा अपनी बकरी दूह ले तो वह रब के नज़दीक साल भर रोज़ा रखने वाले से बेहतर है*_

_*📕 क्या आप जानते हैं, सफह 367*_

_*फुक़्हा - जिसने इस रात खड़े बैठे जैसे भी ज़िक्रे इलाही किया तो जिब्रीले अमीन अपने पूरी फरिश्तों की जमाअत के साथ उसके लिये मग्फिरत की दुआ करते हैं*_

_*📕 अनवारुल हदीस, सफह 289*_

_*फुक़्हा - जो शबे क़द्र की बरकत से महरूम रहा वो बड़ा बदनसीब है*_

_*📕 बहारे शरीयत, हिस्सा 5, सफह 92*_

_*फुक़्हा - ज़्यादा तर बुज़ुर्गो का क़ौल है कि शबे क़द्र रमज़ान की 27वीं शब ही है*_

_*📕 कंज़ुल ईमान, पारा 30, सफह 710*_
_*📕 तफसीरे अज़ीज़ी, पारा 30, सूरह क़द्र*_
_*📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब, सफह 649*_
_*📕 कशफुल ग़िमा, जिल्द 1, सफह 214*_

_*ⓩ बहरे कैफ जो लोग इन 5 ताक रातों यानि 21, 23, 25, 27, 29 में इबादते इलाही मे मसरूफ रहते हैं बिला शुबह वो अल्लाह के नेक बन्दे हैं मौला तआला उनकी इबादतों को क़ुबूल फरमाये और अपने उन अच्छे बन्दों के सदक़े हम जैसे बदकारों की भी इबादतों को क़ुबूल फरमाये*_

_*आअमाल - 4 रकात नमाज़ 2,2 करके इस तरह पढ़ें कि सूरह फातिहा के बाद सूरह तकासुर 1 बार और सूरह इख्लास 3 बार, इसको पढ़ने से मौत की सख्तियां आसान होंगी*_

_*📕 नुज़हतुल मजालिस, जिल्द 1, सफह 129*_

_*आअमाल - 2 रकात नमाज़ बाद सूरह फातिहा के सूरह इख्लास 7 बार सलाम के बाद 'अस्तग़फिरुल्लाह' 7 बार, इसको पढ़ने से उसके वालिदैन पर रहमत बरसेगी*_

_*📕 बारह माह के फज़ायल, सफह 436*_

_*आअमाल - 2 रकात नमाज़ बाद सूरह फातिहा के सूरह इख्लास 3 बार, इस नमाज़ का सवाब तमाम मुसलमानों को बख्शें और अपने लिए मग़फिरत कि दुआ करें तो रब तआला उसे बख्श देगा*_

_*📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब, सफह 650*_

_*दुआये शबे क़द्र - अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ूवुन तुहिब्बुल अफ़्वा फ़ाअफ़ु अन्नी اللهم انك عفو تحب العفو فاعف عني*_

_*तर्जुमा - ऐ अल्लाह बेशक तू माफ करने वाला है और माफी को दोस्त रखता है मुझे भी माफ करदे*_

_*ⓩ याद रहे कि जब तक फर्ज़ ज़िम्मे पर बाक़ी हो कोई भी नफ्ल इबादत मसलन नमाज़ रोज़ा वज़ायफ क़ुबूल नहीं किया जाता, क़ज़ा नमाज़ का पढ़ना फर्ज़े अज़ीम है अब अगर नमाज़े क़ज़ा हैं तो पहले उन्हें पढ़ें हुक्म तो यहां तक है कि अस्र और इशा की पहली सुन्नत की जगह और तमाम पंज वक्ता नवाफिल की जगह अपनी क़ज़ा नमाज़ें पढ़ें, जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*फुक़्हा - एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र, नियत यूं करें "सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर" कहकर नियत बांध लें युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे,क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे, बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करने के बाद ज़ुहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ "अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदना मुहम्मदिंव व आलिही" कहकर सलाम फेर दें, वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ "अल्लाहुम्मग़ फिरली" कह लेना काफी है*_

_*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62*_
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