Friday, September 28, 2018



             _*हज़रत शीश अलैहिस्सलाम*_
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*_हज़रत शीश अलैहिस्सलाम के बारे में ज़्यादा कुछ किताबों में नहीं लिखा है मगर जितना मेरी नज़र में आया दर्ज करता हूं_*

*_हज़रते हव्वा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा 40 मर्तबा हामिला हुईं, 39 बार 2 बच्चे साथ में पैदा हुए एक लड़का और एक लड़की, और चालीसवीं बार में हज़रत शीश अलैहिस्सलाम अकेले पैदा हुए_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 56*_

*_आपका लक़ब हिब्तुल्लाह है वो युं कि आपको अल्लाह ने हज़रते हाबील के बदले में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को अता फरमाया था_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 1, सफह 242*_

*_आपके निकाह का खुतबा हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पढ़ाया, आपकी उम्र 912 साल हुई और आपकी मज़ार के बारे में इख्तिलाफ है बाज़ जबले अबी क़ुबैस में बताते हैं_*

_*📕 ज़रकानी, जिल्द 1, सफह 65*_

*_और बाज़ लोग हिंदुस्तान के शहर आयोध्या में जो कि शहर फैज़ाबाद के करीब है वहां बताते हैं_*

_*📕 तफसीरे नईमी, जिल्द 3, सफह 664*_

            _*हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम*_

*_आपका नाम अख्नूख है कसरते दर्स की वजह से आपको इदरीस का लक़ब मिला_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 32*_

*_आपका नस्ब नामा यूं है अख्नूख बिन यूरिद बिन महलाबील बिन अनूश बिन क़ैतान बिन शीश बिन आदम_*

_*📕 अलइतक़ान, जिल्द 2, सफह 175*_

*_आप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी में पैदा हो चुके थे, आपको हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का 100 साल का ज़माना मिला मगर नबी होने का ऐलान आपने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के 200 साल बाद किया_*

_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 73*_

*_आपने 65 साल की उम्र में बरुखा नामी औरत से निकाह किया जिससे आपको मतुशल्ख नाम का एक फरज़न्द हुआ_*

_*📕 माअरेजुन नुबूवत, जिल्द 1, सफह 67*_

*_सबसे पहले सितारों के ज़रिये हिसाब करना, कलम से लिखना, सिला हुआ कपड़ा पहनना, चीज़ों का वज़न और कपड़ों की पैमाईश करना, और असलहों की ईजाद आपने ही की_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 63*_

*_आप पर 30 सहीफे नाज़िल हुए_*

_*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान, सफह 369*_

*_आप ज़िंदा हैं मगर कहां हैं इसमें इख्तिलाफ है, बुखारी शरीफ की रिवायत के मुताबिक आप चौथे आसमान पर हैं और कअब अहबार की रिवायत के मुताबिक आप जन्नत में हैं, वाकया कुछ यूं है कि एक रोज़ आप खेतों में काम कर रहे थे सूरज की तपिश से आपकी पीठ मुबारक जल गई, आपने सोचा कि जब ये सूरज ज़मीन से 2000 साल की दूरी पर है तो हमारा ये हाल है तो जो फरिश्ता सूरज को चलाने पर मामूर होगा उसका क्या हाल होगा, ये सोचकर आपने रब की बारगाह में दुआ की कि ऐ मौला उस फरिश्ते पर जो कि सूरज पर मामूर है उसवपर रहम फरमा नबी की दुआ थी सो फौरन क़ुबूल हुई और फरिश्ते को आराम मिला, तो उसने रब की बारगाह में अर्ज़ किया कि ऐ मौला मुझपर ये नरमी किस लिए तो मौला फरमाता है कि मेरे बन्दे इदरीस ने तेरे लिए दुआ की है जिसका तुझे फायदा मिला है,तो फरिश्ता अर्ज़ करता है कि ऐ मौला मुझे अपने बन्दे का शुक्रिया अदा करने का मौक़ा दे, तो मौला ने उसको इजाज़त दे दी, वो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर उनका शुक्रगुज़ार हुआ और आपसे कहा की अगर आपको मेरी कोई भी ज़रूरत हो तो बताएं मैं आपकी पूरी मदद करूंगा, तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने जन्नत को देखने की तम्मन्ना ज़ाहिर की तो वो कहने लगा कि मैं खुद तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता मगर मेरी पहचान इस्राईल से है मैं आपको उनके पास ले चलता हूं वो आपकी ज़रूर मदद करेंगे, तब आप हज़रते मलकुल मौत के पास हाज़िर हुए और पूरा वाक़िया कह सुनाया तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बग़ैर मरे हुए तो कोई जन्नत में नहीं जा सकता हां मैं ये कर सकता हूं कि आपकी रूह क़ब्ज़ करके फौरन आपके जिस्म में डाल दूं तो ये मुमकिन है, तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ठीक है ऐसा ही करो तो उन्होंने रूह क़ब्ज़ करके फौरन जिस्म में डाल दी फिर उन्हें जहन्नम के ऊपर बने हुए पुल यानि पुल-सिरात से गुज़ारकर जन्नत में पहुंचा दिया और खुद बाहर रुक गए कि आप जन्नत की सैर करके वापस तशरीफ ले आयें, जब बहुत देर हो गई तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम ने आपको आवाज़ दी कि हज़रत अब चला जाए तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि कहां चला जाये रब फरमाता है कि हर बन्दे को मौत का मज़ा चखना है सो मैं चख चुका फिर फरमाता है कि हर बन्दे को पुल-सिरात से गुज़रना होगा सो मैं वहां से भी गुज़र चुका फिर फरमाता है कि जो एक बार जन्नत में दाखिल हो गया वो कभी भी उससे बाहर नहीं निकाला जायेगा तो अब मैं यहां आ चुका और यहां से कहीं नहीं जाऊंगा, जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम को ये दलील दी तो मौला ने फरमाया कि ऐ इस्राईल मेरे बन्दे ने सच कहा और जो कुछ किया वो मेरे इज़्न से ही किया सो उसे वहीं रहने दो_*

_*📕 तज़किरातुल अम्बिया, सफह 64*_

*_ये वाक़िया दोशम्बे के दिन पेश आया_*

_*📕 नुज़हतुल मजालिस 4, सफह 47*_

*_किस उम्र में ये वाक़िया पेश आया इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 350 साल कहा और बाज़ ने 400 साल और बाज़ ने 450 साल की उम्र बताई_*

_*📕 अलइतकान, जिल्द 2, सफह 175*_
_*📕 जलालैन, हाशिया 9, सफह 276*_
_*📕 तफसीरे सावी, जिल्द 3, सफह 73*_
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