_*मज़ार बनाना कैसा*_
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_*🔘 क्या अल्लाह के मुक़द्दस बन्दों की मज़ार बनाना सही नहीं है*_
_*और क्या क़ब्र वालो से मदद लेना जायज़ नहीं है,*_
_*आइये क़ुरआन से पूछते हैं*_
_*1). तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे*_
_*📕 पारा 15, सूरह कहफ़, आयत 21*_
_*किसी की क़ब्र पर इमारत बना देना ही तो मज़ार कहलाता है और पढ़िये*_
_*2). आये तुम्हारे पास ताबूत जिसमे रब की तरफ़ से दिलों का चैन है और कुछ बची हुई चीज़ें हैं मुअज़्ज़्ज़ मूसा वा हारून के तर्के की कि उठाते लायेंगे फ़रिशते बेशक उस मे बड़ी निशानी है अगर ईमान रखते हो*_
_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 248*_
_*तफ़सीर - बनी इसराईल हमेशा दुआ करते वक़्त व जंग मे जाते वक़्त ये ताबूत अपने आगे रखा करते थे जिससे वो हमेशा कामयाब होते उस ताबूत मे नबियों कि क़ुदरती तसवीरें उन के मकान के नकशे हज़रत मूसा व हारून का असा उन के कपड़े नालैन व इमामा शरीफ़ वगैरह थे*_
_*📕 तफ़सीर ख़ज़ाएनुल इरफान, पारा 2, ज़ेरे आयत*_
_*ज़रा ग़ौर करें कि बनी इसराईल अपने सामने वो ताबूत रखकर दुआ करते थे जिसमे कि नबियों की तसवीरें उनके मकान के नकशे उनका असा उन के कपड़े नालैन व इमामा शरीफ़ वगैरह रखे थे और अल्लाह उसे दिलों का चैन फ़रमा रहा है तो आज अगर हम किसी अल्लाह के वली की बारगाह मे दुआ करने चले जाये जहां खुद अल्लाह का बन्दा मौजूद है तो ये क्युं शिर्क हो जायेगा और पढ़िये*_
_*3). और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ुर हाज़िर हों फ़िर अल्लाह से माफ़ी चाहें और रसूल उनकी शफ़ाअत फ़रमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायेंगे*_
_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_
_*इसकी तफ़सीर करने से पहले मैं आपसे एक सवाल पूछ्ता हूं ये बताइये कि क्या क़ुरान का हुक्म सिर्फ़ हुज़ूर के ज़माने तक ही था या क़यामत तक के लिये है क्या गुनाहगार सिर्फ़ हुज़ूर के ज़माने तक ही थे क्या अब गुनाहगार नहीं हैं तो अब अगर कोई गुनाह करेगा तो वो क्या करेगा अल्लाह फ़रमा रहा है कि माफ़ी के लिये हुज़ूर की बारगाह मे जाना होगा और वहाबी कहता है कि मज़ार पर जाना उनसे मदद मागना शिर्क है किसकी बात सुनी जाये अल्लाह की या इन खबीस वहाबियों की आगे पढ़िये जवाब मिल जायेगा इंशा अल्लाह*_
_*तफ़सीर - हुज़ूर सल्ल्ललाहो तआला अलैही वसल्लम की वफ़ात के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक़ अपने सर पर डाली और क़ुरान की वो आयत पढ़ी फ़िर बोला कि हुज़ूर मैने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मै आपके सामने अपने गुनाह की माफ़ी चाहता हूं हुज़ूर मेरी शफ़ाअत कराइये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आती है कि जा तेरी बखशिश हो गई,*_
_*📕 तफ़सीर ख़ज़ाएनुल इरफान, पारा 5, ज़ेरे आयत*_
_*अब देखिये कितने मसले हल हुए*_
_*! सालेहीन से बाद वफ़ात भी मदद लेना जायज़ है*_
_*! उन की मज़ार पर हाजत के लिये जाना जायज़ है*_
_*! उन्हे लफ़्ज़ 'या' से निदा करना भी जायज़ है*_
_*! और बेशक़ वो मदद भी फ़रमाते है*_
_*मगर यहां पर एक सवाल उठता है कि बहुत सारे ऐसे मुसलमान है कि जो ना तो मदीना शरीफ़ गये हैं और ना जा सकते हैं तो क्या उनकी बखशिश ना होगी इस के जवाब मे हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह तआला अलैहि तफ़सीरे नईमी में इसी आयत के मातहत फरमाते हैं कि जिसकी इसतेताअत रौज़ये अनवर तक जाने की ना हो तो वो तसव्वुर मे मदीना चला जाये अपने किये पर शरमिंदा हो और युं अर्ज़ करे असअलोका शफ़ाअता या रसूल अल्लाह सल्ल्ललाहो तआला अलैही वसल्लम ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल्ललाहो तआला अलैही वसल्लम हमारी शफ़ाअत फ़रमाइये तो इंशा अल्लाह उसकी बखशिश हो जायेगी*_
_*और रही बात क़ब्रो की ज़ियारत की तो खुद हुज़ूर सल्ल्ललाहो तआला अलैही वसल्लम हर साल शुहदाये उहद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले जाते थे और आपके बाद तमाम खुल्फ़ा का भी यही अमल रहा,*_
_*📕 शामी, जिल्द 1, सफ़ह 604, मदारेजुन नुबुव्वत, जिल्द 2, सफ़ह 135*_
_*जब एक नबी अपने उम्मती कि क़ब्र पर जा सकता है तो फ़िर एक उम्मती अपने नबी की या किसी वली की क़ब्र पर क्युं नही जा सकता..!*_
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