_*मुताफर्रिकात*_
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_*कंज़ुल ईमान - और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी*_
_*📕 पारा 15, सूरह असरा, आयत 34*_
_*कंज़ुल ईमान - झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते*_
_*📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 105*_
_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने बाप और अपने भाइयों को दोस्त ना रखो अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखेगा तो वही लोग सितमगर हैं*_
_*📕 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23*_
_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो अपने घरों के सिवा और घरों में ना जाओ जब तक कि इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम ना कर लो*_
_*📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 27*_
_*कंज़ुल ईमान - ज़िना के पास ना जाओ यक़ीनन वो बे हयाई और बहुत बुरी राह है*_
_*📕 पारा 15, बनी इस्राइल, आयत 32*_
_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालों तुम्हें हलाल नहीं कि औरतों के वारिस बन जाओ ज़बरदस्ती.......... और उनसे अच्छा बर्ताव करो फिर अगर वो तुम्हें पसंद ना आयें तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हें पसंद ना हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे*_
_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 19*_
_*कंज़ुल ईमान - अगर ज़मीन में जितने पेड़ हैं सब कलमें हो जायें और समन्दर उसकी स्याही हो उसके पीछे 7 समन्दर और हों तो अल्लाह की बातें खत्म ना होगी, बेशक अल्लाह इज़्ज़तो हिकमत वाला है*_
_*📕 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 27*_
_*कंज़ुल ईमान - हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का*_
_*📕 पारा 21, सूरह लुक़मान, आयत 14*_
_*कंज़ुल ईमान - ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो*_
_*📕 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 7*_
_*कंज़ुल ईमान - ऐ ईमान वालो ना मर्द मर्दों से हंसे अजब नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों और ना औरतें औरतों से दूर नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों, और आपस में तअना ना करो और एक दूसरे के बुरे नाम ना रखो, क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फासिक़ कहलाना, और जो तौबा ना करे तो वही ज़ालिम है*_
_*📕 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 11*_
_*कंज़ुल ईमान - मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है. बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं, और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए*_
_*📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 30-31*_
_*कंज़ुल ईमान - अल्लाह की शान ये नहीं है कि ऐ आम लोगों तुम्हे ग़ैब का इल्म दे हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे*_
_*📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 179*_
_*कंज़ुल ईमान - खराबी है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बे ख़बर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं*_
_*📕 पारा 30, सूरह माऊन, आयत 4*_
_*कंज़ुल ईमान - और तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वो इसके सबब से है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया और बहुत कुछ तो वो माफ फरमा देता है*_
_*📕 पारा 25, सूरह शूरा, आयत 30*_
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