Saturday, October 13, 2018



               _*बोलचाल में कुफ़्री बातें*_
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_*आम लोग बातचीत में कुफ़्र के शब्द बोल कर इस्लाम से खारिज हो जाते हैं और ईमान से हाथ धो बैठते हैं इसका ख़्याल रखना निहायत जरूरी है क्युंकि हर गुनाह की बख़्शिश है लेकिन अगर कुफ़्र बक कर ईमान खो दिया तो बख़्शिश और जन्नत में जाने की कोई सूरत नहीं बल्कि सब दिन जहन्नम में जलना लाजिमी है।*_

_*हदीस शरीफ में है कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि शाम को आदमी मोमिन होगा तो सवेरे को काफिर और सुबह को मोमिन होगा तो शाम को काफिर।*_

_*कालिमात कुफ्र कितने हैं और किस किस बात से कुफ्र लाजिम आता है इसकी तफ़सील बयान करना दुशवार है लेकिन हम अवाम भाईयों के लिए चन्द हिदायतें लिखे देते हैं। इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा।*_

_*1) आप बा-अदब हो जाइये। अल्लाह तआला उसके रसूल, फरिशते, खानए काबा, मसाजिद, कुर्आने करीम, दीनी किताबें, बुजुर्गाने दीन, उलमा-ए-किराम, वालिदैन; इन सब का अदब ताजीम और महब्बत दिल में बिठा लीजिये। बा-अदब इन्सान का दिल एक खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता है कि न खुद उसके मुँह से गलत बात निकलती है और कोई और बके तो उसके नागवार गुजरती है। इसीलिए अनपढ़ बा-अदब अच्छा है पढ़े लिखे बे-अदब से।*_

_*खुदाए तआला फ़रमाता है:*_

*وَمَنُ یُّعَظِّمُ شَعَاٸِرَا اللّٰہِ فَاِنَّھَامِنُ تَقُوَی الُقُلُوُبِ،*

_*तर्जमा:- जो अल्लाह की निशानियों की ताजींम करे तो यह दिलों की परहेजगारी है।*_

_*2) हंसी मजाक तफरीह व दिललगी की आदत मत बनाइये और कभी हो तो उसमे दीनी मजहबी बातों को मत लाइये। खुदा तआला, उसकी जात व सिफात, अम्बिया-ए-किराम, फरिशते, जन्नत, दोज़ख़, अ़ज़ाब, सवाब, नमाज, रोजा, वगैरह अहकामे शरअ़ का ज़िक्र हंसी तफ़रीह में कभी न लाइये वरना ईमान के लिए खतरा पैदा हो सकता है। शआ़इरे इलाहिय्यह (अल्लाह की निशानियों) के साथ मजा़क कुफ्र है।*_

_*3) बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश करने के लिए बोल देते हैं जिनका बोलना और खुशी के साथ सुनना कुफ्र है। उन लोगों और एेसी बातें करने वालों से दूर रहना ज़रूरी है। मसलन:*_

_*सब धर्म समान है,*_

_*खिदमते ख़ल्क ही धर्म है,*_

_*देश पहले है धरम बाद में है,*_

_*हम पहले फ़लां मुल्क के वासी हैं और मुसलमान बाद में,*_

_*राम रहीम दोनों एक हैं,*_

_*वेद व कुर्आन में कोई फ़र्क नहीं,*_

_*मस्जिद व मन्दिर दोनों खुदा के घर हैं या दोनों जगह खुदा मिलता है,*_

_*नमाज पढ़ना बेकार आदमियों का काम है,*_

_*रोजा वह रखे जिस को खाना न मिले,*_

_*नमाज पढ़ना न पढ़ना सब बराबर है,*_

_*हम ने बहुत पढ़ ली कुछ नही होता है,*_

_*यह सब कलिमात खालिस कुफ्र गैर इस्लामी काफिरों की बोलियां हैं जिन को बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता है।*_

_*सियासी लोग इस किस्म की बातें गैर मुस्लिमों को खुश करने, उनके वोट लेने के लिए बकते हैं हालांकि देखा यह गया है कि वह उनसे खुश भी नहीं होते और गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालों को आमतौर से वोट देते हैं। इस तरह इन नेताओं को न दुनिया मिलती है न दीन। और जिन ग़ैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन ईमान बचा कर भी मिल सकते हैं। फिर चन्द रोज दुनिया के इक़्तिदार, नोटों और वोटों की खातिर क्या अपना ईमान बेचा जाएगा?*_

_*4) मुसलमानों मे जो नए नए फिरके राइज हुए हैं उन से दूर रहना निहायत जरूरी है। यह ईमान व अकीदे के लिए सब से बड़ा खतरा हैं मजहबे अहलेसुन्नत बुजुर्गो की रविश पर काइम रहना ईमान व अकीदे की हिफाजत के लिए निहायत लाज़िम हैं और मजहबे अहलेसुन्नत की सही तर्जमानी इस दौर में आलाहज़रत मौलाना अहमद रजा खा़ँ बरेलवी अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान ने फरमाई है। उनकी तालीमात एेन इस्लाम हैं।*_

*_📕 ग़लत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह, सफ: नम्बर 13_*
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