_*सवानेह हयात*_
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_*9 सफर*_
_*हज़रत अमीर अबुल ओलाई सरताज अलैहिर्रहमा, आगरा*_
_*हज़रत ग़ौसुस ज़मां जान मुहम्मद किर्मानी अलैहिर्रहमा, वलीदपुर*_
_*10 सफर*_
_*हज़रत सय्यद शाह ज़हूर क़ादरी अलैहिर्रहमा*_
_*11 सफर*_
_*हुजूर मुफस्सिरे आज़म हज़रत मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जीलानी मियां अलैहिर्रहमा (वालिद हुज़ूर ताजुश्शरीया), बरेली शरीफ*_
_*मौलाना इब्राहीम रज़ा खान*_
_*आप सिलसिलाये आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़विया नूरिया के 42वें मशायखे किराम हैं, आपकी विलादत 10 रबिउल आखिर 1325 हिज्री बामुताबिक़ 1907 ईसवी बरेली शरीफ में हुई, आपके वालिद का नाम हुज्जतुल इस्लाम हज़रत मुहम्मद हामिद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और वालिदा का नाम कनीज़ आईशा था, आलाहज़रत अज़ीमुल बरकर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपके दादा थे उन्होंने ही आपके कान में अज़ान दी और एक खजूर चबाकर आपके मुंह में डाला, आपका नाम मुहम्मद रखा गया वालिद ने इब्राहीम और वालिदा ने जीलानी मियां तजवीज़ किया और लक़ब मुफस्सिरे आज़म हुआ*_
_*आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपका अक़ीक़ा बड़ी धूम धाम से किया,4 साल 4 महीने और 4 दिन की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी की गई और 7 साल की उम्र में दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में दाखिल कराया गया जहां से आपने 19 साल की उम्र में 1344 हिजरी में तमाम उलूम से फराग़त हासिल की और हुज्जतुल इस्लाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपके सर पर दस्तार बाँधी, आपको हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व आपके वालिद की भी इजाज़तो खिलाफत हासिल थी*_
_*आपका निकाह आपके चचा यानि हुज़ूर मुफ्तिए आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बड़ी साहबज़ादी निगार फातिमा से हुआ जिनसे आपको 8 औलादें हुई 5 बेटे और 3 बेटियां, बेटों के नाम हस्बे ज़ैल हैं*_
_*हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खान*_
_*हज़रत अल्लामा अख्तर रज़ा खान (हुज़ूर ताजुश्शरिया)*_
_*हज़रत क़मर रज़ा खान*_
_*हज़रत मन्नान रज़ा खान*_
_*हज़रत तनवीर रज़ा खान*_
_*आपने चंद किताबें तस्नीफ फरमाई है जिसमे ज़िक्रुल्लाह, नेअमतुल्लाह, हुज्जतुल्लाह, फ़ज़ाइले दरूद शरीफ, तफ़्सीरे सूरह बलद और तशरीह कसीदए नोमनिआ शामिल है*_
_*1372 हिजरी में आपने हरमैन शरीफैन का सफर किया और वहां के बड़े बड़े उल्माए किराम ने भी आपको इजाज़तो खिलाफ़त अता की, आप एक बेहतरीन उस्ताज़ और आला मुन्तज़िर थे आपकी तक़रीर से बहुत सारे वहाबियों ने तौबा करके इस्लाम कुबूल किया, आप एक साहिबे करामत बुज़ुर्ग थे*_
_*करामत - एक बार एक पैदाइशी गूंगा शख्स आपकी बारगाह में लाया गया आपने उसके लिए दुआ फरमाई और फौरन ही वो बोलने लगा, आपकी इस करामत को देखकर बहुत सारे गैर मुस्लिमो ने तौबा की और इस्लाम क़ुबूल किया*_
_*करामत - एक शख्स को खून के इल्ज़ाम में बे कसूर पकड़ लिया गया था उसके घर वाले आपके पास दुआ के लिए आये तो आपने उसके लिए दुआ की एक तावीज़ दिया और दरूद शरीफ का विर्द करने को कहा, 10 दिन बाद वो लोग फिर आये और अपने साथ उसी शख्स को साथ लाये जो कि बे कसूर साबित हो चुका था और उसे रिहा कर दिया गया*_
_*आपका विसाल 11 सफर 1385 हिज्री पीर के दिन हुआ, हज़रत मुफ़्ती सय्यद अफज़ल हुसैन साहब ने आपकी नमाज़े जनाज़ा इस्लामिया इंटर कालेज में पढ़ाई और आला हज़रत के आस्ताने में ही आपको दफन किया गया*_
_*📕 द चेन ऑफ लाइट, जिल्द 2, सफह 203*_
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