Monday, December 3, 2018



                   _*वसीला : (पार्ट- 1)*_
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_*ⓩअत्तारिफात सफह 225 पर वसीला का मायने ये बयान किया गया है कि "जिस के ज़रिये रब का क़ुर्ब व नज़दीकी हासिल की जाये उसे वसीला कहते हैं" बेशक अम्बिया व औलिया का वसीला लगाना उनकी ज़िन्दगी में भी और बाद वफात भी बिला शुबह जायज़ है और क़ुर्आनो हदीस में बेशुमार दलायल मौजूद हैं, मुलाहज़ा फरमायें मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान : ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो*_

_*📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 35*_

_*वसीले के ताल्लुक़ से इससे ज़्यादा साफ और सरीह हुक्म शायद ही क़ुर्आन में मौजूद हो मगर फिर भी कुछ अन्धो को ये आयतें नहीं सूझती, खैर आगे बढ़ते हैं फिर मौला इरशाद फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान : ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो*_

_*📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 153*_

_*इस आयत में सब्र और नमाज़ को वसीला बनाने का हुक्म है, और पढ़िये*_

_*और जब वो अपनी जानो पर ज़ुल्म कर लें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें*_

_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_

_*इस आयत को बार बार पढ़िये और इसका मफहूम समझिये, नमाज़ ना पढ़ी रोज़ा ना रखे हज ना किया ज़कात नहीं दी शराब पी चोरी की ज़िना किया झूट बोला सूद खाया रिशवत ली गर्ज़ कि कोई भी गुनाह किया मगर की तो मौला की ही नाफरमानी, तो जब तौबा करनी होगी तो डायरेक्ट अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लेंगे फिर ये हुज़ूर की बारगाह में भेजने का क्या मतलब, मतलब साफ है कि गुनाह छोटा हो या बड़ा 1 हो या 1 करोड़ अगर माफी मिलेगी तो हुज़ूर के सदक़े में ही मिलेगी वरना बिना हुज़ूर के तवस्सुल से अगर माफी चाहता है तो सर पटक पटक कर मर जाये फिर भी मौला माफ नहीं करेगा, इस आयत की पूरी तशरीह आगे करता हूं मगर अब जबकि बात में बात निकल आई है तो पहले इसकी दलील मुलाहज़ा फरमा लें मौला तआला क़ुर्आन में फरमाता है कि*_

_*कंज़ुल ईमान : फिर सीख लिए आदम ने अपने रब से कुछ कल्मे तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की*_

_*📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 37*_

_*तफसीर : तिब्रानी हाकिम अबु नुऐम व बैहकी ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुनिया में आये तो आप अपनी खताये इज्तेहादी पर 300 साल तक नादिम होकर रोते रहे मगर आपकी तौबा क़ुबूल ना हुई, अचानक एक दिन अल्लाह ने आपके दिल में ये इल्क़अ फरमाया कि वक़्ते पैदाईश मैंने जन्नत के महलों पर उसके सुतूनों पर दरख्तों और उसके पत्तों पर हूरों के सीनो पर गुल्मां की पेशानियों पर ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह जल्ला शानहु व सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखा देखा है, ज़रूर ये कोई बुज़ुर्ग हस्ती है जिसका नाम अल्लाह ने अपने नाम के साथ लिखा हुआ है तो आपने युं अर्ज़ की अल्लाहुम्मा असअलोका बिहक्क़े मुहम्मदिन अन तग़फिरली यानि ऐ अल्लाह मैं तुझसे हज़रत मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े से मगफिरत चाहता हूं तब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी तौबा क़ुबूल फरमाई*_

_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 7*_

_*💡सोचिये जब सारी दुनिया के बाप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले की ज़रूरत है तो फिर हम और आप की औकात ही क्या है कि हम बिना हुज़ूर का वसीला लिए मौला से कुछ ले सकें या अपनी मग़फिरत करा सकें, इसीलिए तो मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि*_

_*ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला*_
_*बटती है कौनैन में नेअमत रसूल अल्लाह की*_
_*वो जहन्नम में गया जो उनसे मुस्तग़नी हुआ*_
_*है खलील उल्लाह को हाजत रसूल अल्लाह की*_

_*(सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम)*_

_*📮जारी रहेगा....*_
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