_*वसीला : (पार्ट- 2)*_
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_*कंज़ुल ईमान : और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें*_
_*📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 64*_
_*तफसीर : आपकी वफाते अक़दस के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक अपने सर पर डालकर यही आयत पढ़ी और बोला कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मैं आपके हुज़ूर अल्लाह से माफी चाहता हूं मेरी शफाअत कराईये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आई कि जा तेरी बख्शिश हो गयी*_
_*📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 105*_
_*ⓩ इतना तो बद अक़ीदा भी मानता ही है कि क़ुर्आन का हुक्म सिर्फ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक तक ही महदूद नहीं था बल्कि वो क़यामत तक के लिए है तो जब क़यामत तक के लिए उसका हर कानून माना जायेगा तो ये क्यों नहीं कि हुज़ूर से शफाअत कराई जाये, क्या माज़ अल्लाह खुदा ने क़ुर्आन में ये कहा है कि मेरे महबूब की ज़िन्दगी तक ही उनकी बारगाह में जाना बाद विसाल ना जाना बिल्कुल नहीं तो जब रब ने ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया तो फिर अपनी तरफ से दीन में हद से आगे बढ़ने की इजाज़त इनको कहां से मिली, खैर मौला हिदायत अता फरमाये अब देखिये इससे बहुत सारे मसले हल हुए*_
_*1). सालेहीन का वसीला लेना जायज़ है*_
_*2). उनसे शफाअत की उम्मीद रखना जायज़ है*_
_*3). बाद विसाल उनकी मज़ार पर जाना जायज है*_
_*4). उन्हें लफ्ज़े या के साथ पुकारना जायज़ है*_
_*5). वो अपनी मज़ार में ज़िंदा हैं*_
_*6). और सबसे बड़ी बात कि वो बाद वफात भी मदद करने की क़ुदरत रखते हैं*_
_*हदीस : हज़रत उस्मान बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक अंधा आदमी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि आप अल्लाह से दुआ करें कि वो मुझे आंख वाला कर दे तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि तु चाहे मैं दुआ करूं या तु चाहे तो सब्र कर कि ये तेरे लिए ज़्यादा बेहतर है, इस पर उसने दुआ करने के लिए कहा तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अच्छा अब वुज़ू कर 2 रकात नमाज़ पढ़ और युं दुआ कर "ऐ अल्लाह मैं तुझसे मांगता हूं और तेरी तरफ मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वसीले से तवज्जह करता हूं जो नबीये रहमत हैं और या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मैं हुज़ूर के वसीले से रब की तरफ इस हाजत में उम्मीद करता हूं कि मेरी हाजत पूरी हो या अल्लाह मेरे हक़ में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शफाअत कुबूल फरमा" वो शख्स गया और नमाज़ पढ़ी दुआ की जब वो वापस आया तो आंख वाला हो चुका था*_
_*📕 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 197*_
_*ⓩ इमाम तिर्मिज़ी फरमाते हैं कि ये हदीस सही है यही हदीस निसाई इब्ने माजा हाकिम बैहकी तिब्रानी वगैरह में भी मिल जायेगी, अब मोअतरिज़ कहेगा कि नबियों का वसीला तो फिर भी लिया जा सकता है मगर औलिया का वसीला लेना जायज़ नहीं तो उसकी भी दलील मुलाहज़ा फरमायें*_
_*📚 हदीस : हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जब जब हम पर कहत का ज़माना आता तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का वसीला लगाते और युं दुआ करते कि "ऐ अल्लाह हम तेरी बारगाह नबी को वसीला बनाया करते थे तू हमें सैराब फरमाता था अब हम तेरी बारगाह में नबी के चचा को वसीला बनाते हैं" हज़रते अनस फरमाते हैं कि हर बार पानी बरसता,*_
_*📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 137*_
_*📮जारी रहेगा....*_
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