_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 053)*_
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_*नबी से महब्बत*_
_*हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुज़ूर की शान में जो अल्फाज इस्तेमाल किए जायें वह अदब में डूबे हुए हों। कोई ऐसा लफ्ज़ जिससे ताजीम में कमी की बू आती हो कभी जुबान पर न लाए।*_
_*अगर हुजूर को पुकारना हो तो उनको उनके नाम के साथ न पुकारो मुहम्मद या मुस्तफा या मुर्तजा न कहो बल्कि इस तरह कहो :*_
_*📝तर्जमा :- "ऐ अल्लाह के नबी, ऐ अल्लाह के रसूल, ऐ अल्लाह के हबीब ज्यारत की दौलत मिल जाए तो रोजे के सामने चार हाथ के फासले से अदब के साथ हाथ बाँध कर (जैसे नमाज़ में खड़े होते हैं) खड़ा हो कर सर झुकाए हुए सलात ओ सलाम अर्ज करे। बहुत करीब न जायें और न इघर उधर देखें और खबरदार कभी आवाज बलन्द न करना क्योंकि उम्र भर का सारा किया धरा अकारत (बेकार) जाएगा।*_
_*हुजूर से महब्बत की निशानी यह भी है कि हुजूर की बातें उनके काम और उनका हाल लोगों से पूछे और उनकी पैरवी करे। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अकवाल, अफआल किसी अमल और किसी हालत को अगर कोई हिकारत की नजर से देखे वह काफिर है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 23*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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