_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 052)*_
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_*नबी से महब्बत*_
_*हुज़ूर से महब्बत की पहचान यह भी है। कि हुजूर के आल, असहाब, महाजिरीन, अन्सार तमाम सिलसिले और तअल्लुक रखने वालों से महब्बत रखी जाए और अगरचे अपना बाप, बेटा भाई और खानदान का कोई करीबी क्यों न हो अगर हुजूर से उसे किसी तरह की दुश्मनी हो तो उससे अदावत रखी जाए अगर कोई ऐसा न करे तो वह हुज़ूर के महब्बत के दावे में झूठा है।*_
_*सब जानते हैं। कि सहाबए किराम ने हुजूर सल्ललल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की महब्बत में अपने रिश्तेदारों करीबी लोगों बाप भाईयों और वतन को छोड़ा क्यूंकि यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत भी हो और उनके दुश्मनों से भी महब्बत बाकी रहे। यह दोनों चीजें एक दूसरे की जिद हैं और दो अलग अलग रास्ते हैं एक जन्नत तक पहुँचाता है और एक जहन्नम के घाट उतारता है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 22/23*_
_*📮जारी रहेगा.....*_
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