_*बहारे शरीअत, हिस्सा- 01 (पोस्ट न. 009)*_
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_*☝🏻अकीदा - अल्लाह तआला ने हर भलाई और बुराई को अपने अजली इल्म के मुवाफिक मुकद्दर कर दिया है यानी जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था उसने अपने इल्म से जाना और वही लिख लिया। इसका यह मतलब हरगिज नहीं कि जैसा उसने लिख दिया वैसा ही हमको करना पड़ता है बल्कि हम जैसा करने वाले थे वैसा उसने लिख दिया है। अगर अल्लाह ने जैद के जिम्मे में बुराई लिखी तो इसलिये कि जैद बुराई करने वाला था अगर जैद भलाई करने वाला होता तो वह उसके लिये भलाई लिखता। अल्लाह तआला के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया। यह तकदीर की बातें हैं और तकदीर की बातों का इन्कार नहीं किया जा सकता। तकदीर के इन्कार करने वालों को हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने इस उम्मत का मजूस बताया है।*_
_*☝🏻अक़ीदा : - कज़ा या तकदीर की तीन किस्में हैं ।*_
_*1). मुबरमें हक़ीक़ी : कि इल्म इलाही में किसी शय पर मुअल्लक नहीं।*_
_*2). मुअल्लके महज : जो फरिश्तों के लिखे में किसी चीज पर उसका मुअल्लक होना। जाहिर फरमा दिया गया है यानी जो दुआ या सदकों से बदल जाए।*_
_*3). मुअत्लके शबीह व मुबरम : जिसके मुअल्लक होने का फ़रिश्तों के लेखों में जिक्र नहीं लेकिन अल्लाह के इल्म में मुअल्लक है। इस कज़ा की घटना होने न होने का दोहरा उल्लेख किसी शर्त के साथ है।*_
_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 8*_
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