Thursday, October 3, 2019



    _*📕 करीना-ए-जिन्दगी भाग - 005 📕*_
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_*📚 [हदीस :-]....हज़रत अब्दुल्ला इब्ने उमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है कि सरकार मद़ीनाﷺ ने गै़ब की खबर देते हुए इरशाद फरमाया------*_

_*📚 "बेशक कौमे बनी इस्राईल  [हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम की क़ौम ] बहत्तर [ 72 ] फ़िरक़ों में बट गयी और मेरी उम्मत  तिहत्तर [ 73 ] फ़िरक़ों में बट जाएगी सब के सब ज़हन्नमी होंगे सिर्फ़ एक फ़िरक़ा जन्नती होगा । सहाब-ए-किराम, ने अर्ज किया--वोह  जन्नती फ़िरक़ा कौन सा होगा ।*_

_*✍ ....  हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया--*_

_*...."जो मेरे और मेरे सहाबा के तरीके़ पर चलेगा।"*_

_*📕 तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2, सफा नं 89*_

             _*....अल्हमदुलिल्लाह ! बेशक वह जन्नती फ़िरक़ा अहले सुन्नत वल ज़माअ़त के सिवा कोई नही ! क्यों कि हम सुन्नी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूरे अकरम ﷺ  के मरतबे व अ़ज़मत के और बुजुरगाने दीन की शान व इज़्ज़त के काएल हैं।*_

             _*....हम सुन्नियों का अ़क़ीदा है कि यह तमाम फ़िरक़े जैसे----- शिया, वहाबी, तबलीगी, देवबन्दी, मौदूदी, कादयानी, नेचरी, चक़डालवी,  सबके सब गुमराह, बद दीन, क़ाफ़िर, और दीन से फिरे  हुए मुनाफ़िक़ है।*_

               _*.....अब ज़्यादा तर लोग सुन्नी, वहाबी, के इस इख़्तिलाफ़ को चन्द मौलवीयों का झगड़ा समझते हैं। या फिर फातिहा, उर्स, नियाज़ का झगड़ा समझते हैं येह उनकी बहुत बड़ी गल़त फहमी है।*_

        _*....खुदा की क़सम सुन्नियों का वहाबियों से सिर्फ़ इन बातों पर इख़्तिलाफ़ नहीं है। बल्कि हम अहले सुन्नत का वहाबियों से सिर्फ़ इस बात पर सबसे बड़ा बुनियादी इख़्तिलाफ़ है। कि इन वहाबियों के उलमा व पेशवा ने अपनी किताबों में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूर अकरम ﷺ और अम्बिया ए किराम, सहाब-ए-किराम, व बुजुरगाने दीन की शाने अ़कदस मे गुस्ताख़ियां लिखी है और उनकी अ़ज़मत व शान से खेला उन्हें बिद़अ़ती, क़ाफ़िर, व बेदीन, बताया [ माज़अल्लाह ] और मौजूदा वहाबी ऐसे ही ज़ाहिल उलामा को अपना बुज़ुर्ग व पेशवा मानते हैं। और उन्हीं की तआ़लीमात  व अकाईद ए बातील को दुनिया भर में फैलाते फिरते हैं। या कम अज कम उन्हे मुसलमान समझते है!*_

_*💎  [आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।*_

_*💎 तर्जुमा :-... जिस दिन हम हर ज़माअत को उसके इमाम के साथ बुलाएगे ।*_

_*📕 तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 15, सूरए बनी इस्राईल़, आयत नं 71*_

         _*अब हम आप लोगों के सामने इन लोगों के अक़ाएद [ faith ] उन्हीं की किताबों से पेश कर रहे हैं। जिसे पढ़कर आप खुद ही फ़ैसला़ कीजिए कि क्या ऐसी बातें कहने वाले यह लोग मुसलमान कहलाने का हक रखते है?  फैसला आप के हाथ में है।*_

              _*[क्या यह मुसलमान है ]*_

            _*....वहाबी ज़माअत का बहुत बड़ा आलिम  "मौलवी इस्माईल देहलवी" अपनी किताब [ तक्वियतुल ईमान ] में लिखता है------*_

_*✍🏻 (1).... जो कोई (किसी बुज़ुर्ग की)  नियाज़ करे, किसी बुजुर्ग को अल्लाह की बारगाह  में सिफारिश करने वाला समझे तो यह शिर्क है! और  वह शख्स और " अबूज़हल" शिर्क में बराबर हैं। [ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 तक्वियतुल ईमान, सफा नं 20*_

_*✍🏻 (2)....  यकीन जान लेना चाहीये की हर मख़लूक ख्वाह छोटी हो या बडी [ जैसे अम्बिया, फिरिश्ते, औलिया, उलामा, आम मुसलमान] अल्लाह की शान के आगे चमार से भी ज़्यादा ज़लील है। [माज़अल्लाह ]*_

_*📕 तक्वियतुल ईमान, सफा नं 30*_

_*✍🏻 (3).... अल्लाह के मकर (मक्कारी) से डरना चाहीए की , धोके से डरना चाहिए कि अल्लाह बन्दो से मक्कारी भी करता है। [ माज़अल्लाह ]*_

_*📕 तक्वियतुल ईमान, सफा नं 76*_

_*✍🏻 (4).... तमाम नबी और खुद हुज़ूरﷺ अल्लाह के बेबस बन्दे है और हमारे बड़े भाई  है। [माज़अल्लाह]*_

_*📕 तक्वियतुल ईमान, सफा नं 99*_

_*✍🏻 (5).... हुज़ूर अकरमﷺ मर कर मिट्टी में मिल गए। [माज़अल्लाह]*_

_*📕 तक्वियतुल ईमान, सफा नं 100, प्रकाशक :- दारूस्सालाफिया मुम्बई*_

_*बाकी अगले पोस्ट में....*_

_*📮 जारी रहेगा इंशा'अल्लाह....*_
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